आज सत्रह नवंवर है जब मैं वर्ष 2023 में दिल्ली में अक्टूबर -नवंबर महीने में दमघोंटू वायु प्रदूषण लंबे समय के लिए घिरने में पराली जलाने, आतिशबाजी, जीवाश्म ईँधन और अन्य कारकों करने से इसके बढ़ने और पीपल सहित अन्य वृक्ष, वनस्पतियों द्वारा इसे घटाने में योगदान के बारे में कुछ तथ्य रख रहा हूँ।
dreamdwarka
गुरुवार, 16 नवंबर 2023
दीवाली २०२३ पर प्रदूषण अपेक्षाकृत कम फैला है
आज १३ नवंबर २०२३ है और मेरे नजरों के सामने है खुला आसमान जिसमें दोपहर डेढ़ बजे के आसपास स्मॉग हल्का सा है। हवा साफ नहीं है। मेरे पास प्रदूषण का स्तर या कहें कि हवा की शुद्धता का स्तर जाँचने की मशीन या कोई उपाय नहीं है।प्रदूषण है लेकिन अपेक्षाकृत कम है। दमघोंटू जहर आसमान में छाया हुआ नहीं है।
वर्ष २०१६ से प्रत्येक वर्ष वायुप्रवाह का एक पैटर्न आश्विन और कार्तक महीने में अनुभव कर रहा हूँ मैं। २०१६ में नोटबंदी के दिन से प्रदूषण की स्थिति गंभीर होनी शुरु हुई थी और आज तक प्रत्येक वर्ष अक्टूबर महीने के अन्तिम सप्ताह से लेकर दिसंबर के पहले स्पताह तक वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर रहती है।
१३ नवंबर को उपरोक्त विचार लिखे गए थे और इसे प्रकाशित आज किया गया है।
आज १७ नवंबर है जब मैं इसे प्रकाशित करने के लिए अंतिम रूप दे रहा हूँ । उचित है कि स्वतंत्र रूप में यहाँ से आगे की बात अलग पोस्ट में दर्ज करूं।
शुक्रवार, 10 नवंबर 2023
छोटी दीवाली 2023 पर ड्रीम द्वारका मिशन प्रगति रिपोर्ट
तो
कहना बस इतना है
कि
सपने मरे नहीं हैं
बीज अभी भी सुप्तावस्था से निकलकर अंकुरित होकर पौधा बन पल्लवित पुष्पित नहीं बना है। बीज जिन्दा है।
इस बीच क्या हुआ है वह आज छोटी दीपावली पर रखना उचित लग रहा है। मैं अक्सर शुभ दिन और मुहुर्त की प्रतीक्षा करता हूँ। यह जीवन प्रतीक्षा में ही निकल नहीं जाए यह चिन्ता भी लगी रहती है पर ड्रीम द्वारका के लिए जो कुछ हो सका है वह रखना अच्छा लग रहा है।
लगभग छह वर्ष पहले (2016-2017) मैंने आँवले के कुछ बीज अपनी छोटी सी बालकनी में प्लास्टिक के छोटे से कप में उगाने के लिए रखे थे। कुछ अंकुरित हुए। इनमें से दो उचित जगह पर लगाए गये। एक हमारी शक्ति स्वरूपा जीवन संगिनी अंशु जी ने अपने कार्यस्थल दक्षिण पश्चिम दिल्ली के ककरौला गाँव स्थित प्राथमिक विद्यालय परिसर में लगाए और एक पौधा उनकी ही सहयोगिनी महिला कर्मी अपने घर के निकट के मन्दिर के लिए माँग ले गयी थी। इन दोनो पौधों ने इस वर्ष फल देना शुरु कर दिया है।
ध्यातव्य हो कि वर्ष 2015 में अक्षय नवमी तिथि के आसपास भारत वर्ष की सांस्कृतिक, शैक्षिक और धार्मिक राजधानी काशी नगरी में हमने ड्रीम द्वारका परियोजना का सपना संजोया था । महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इंजीनयरिंग संस्थान के अतिथि आवास में भोलेनाथ की नगरी माँ काशी के आँचल तले ड्रीम द्वारका मिशन का सपना देखा गया था। और वापस दिल्ली लौटकर औपचारिक रूप से इसकी घोषणा इस मंच पर कर दी गई थी।
और आज दो ही सही आंवला के पौधे फल देना आरम्भ कर हमारे सपने को जिन्दा रखे हुए हैं।
रविवार, 11 जून 2023
डिजिटल मंच पर पावन का प्रवेश
पावन एक एप आधारित तन्त्र है जिसका उद्देश्य अपने नाम की तरह ही लोगों के जीवन को पावन तरीके से सुखमय बनाना है। कुछ युवा उद्यमियों द्वारा स्थापित यह एप जीवन से जुड़े विविध पक्षों पर लोगों को सकारात्मक जानकारी देता है। इस पर रखे गए अधिकांश तथ्य मुझे वास्तविक जीवन से जुड़े लगे हैं।
प्रत्येक जीव और विशेष रूप से हम सभी मानवों का लक्ष्य स्वस्थ तन और प्रसन्न मन पाना है। इन दो लक्ष्यों को पाने के क्रम में ही सृष्टि और जगत के लगभग सभी अन्य लक्ष्य आ जाते हैं।
हमारी समस्या सबसे बड़ी यही है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक चेतना का विकास होने के बाद से ही तन को सदैव इच्छानुसार स्वस्थ और मन को हर स्थिति में प्रसन्न रखना अधिकाँश लोगों के लिए संभव नहीं होता।
मेरी मातृभाषा मैथिली में एक कहावत है
राजा दुखी प्रजा दुखी जोगी के दुख दुन्ना ।
आशय राजा और प्रजा दोनों दुखी हैं और जोगी जो घर परिवार के झँझट से मुक्त हो चुका कब का उसका दुख दूना है। समकाल के जोगियों को देखकर अक्सर मुझे जबर्दस्त हँसी आती है।
ठीक कबीर की तरह जो कहते हैं पानी बीच मीन पिआसी , सुन-सुन मोहे आवत हाँसी। यानि मछली पानी में है और प्यास से मरी जा रही है जिसे देखकर मुझे हँसी आ रही।
बात बिल्कुल ठीक है। हम आप सभी में से अधिकांश इसी मछली की तरह हैं जो अपनी अतृप्त प्यास के लिए भटकने को अभिशप्त है।
पावन पर उपलब्ध सामग्रियों को देखकर लगा कि ऐसे अतृप्त लोगों के लिए, वास्तविक पीड़ा भोग रहे लोगों के लिए पावन एक अच्छा विकल्प बन सकता है। डिजिटल मंच पर पावन का प्रवेश एक नजर में मुझे सुखद लगा है। अभी हाल ही में मुझे इस एप के बारे में जानकारी मिली। और जानकारी के लिए आप भी एप डाउनलोड कर सकते हैं।
गुरुवार, 5 मई 2022
अरिपन फाउन्डेशन दरभंगा क, रहल अछि नीक काज, कृत्रिम बुद्धि यानि एआई के होयत प्रयोग ओ मैथिली बनतीह ग्लोबल
अरिपन फाउन्डेशन दरभंगा क प्रतिनिधि संजय बाबू विगत दिन फोन कएलनि । कहलनि जे अहांक संपर्क सूत्र फलना ठामसं भेटल अछि । हम सब कृत्रिम बुद्धि यानि एआई प्रयोग के ल,क, आइआइटी मद्रासक संग सहयोग कएलहुँ अछि । मैथिली भाषाक उपयोगके सार्वजनिन ओ सार्वकालिक बनेबाक लेल हम सब काज क, रहल छी। एहिमे अहांक सहयोग हमरा सबके चाही ।
एकटा ईमेल सेहो कएलनि आ विस्तृत जनतब दैत एहि अभियानसं जुड़बाक आग्रह कएलनि । योजना हमरा पसंद आयल । कारण तकनीकक स्तर पर मैथिली पछुआयल छथि । चौपाड़ि ओ दरबारी संस्कृति एखनो मैथिलीकें गछाड़ने छनि आ बाबानाम केवलम संग बन्धु बांधवी, जमाय ससुर गठबंधन हावी अछि । फलस्वरूप मैथिली पाछू मुंहे घुसकुनिया दैत मात्र एक दू जातिक भाषा बनि सिमटि गेल छथि ।
एआई उपयोग एक झटकामे मैथिलीक जमीन ओ अकासमे परिवर्तन आनि सकैत अछि । मिथिलाक सभ वर्ण ओ क्षेत्रकें एक सिनेहिया बन्हनमे बान्हि सकैत अछि । मुदा की अरिपन, एहिमे सक्षम होयत .....
हम मानैत छी, भ, सकैयै । जं अरिपन फाउन्डेशन इमानदारीसं प्रयास करय । ठीक-ठाक लोक,क संगौर करय । जे अवसर भेटि रहल छैक तकर भरपूर दोहन करय तं संभव अछि । की , कोना ......ताहि पर विचार राखब बादमे । एखन समयक दबाव अछि तँय मात्र संकेत रूपमे लिखलहुँ अछि।
एआई उपयोगसं कोना होयत मैथिली भाषाक विकास ओ लोक एकजुट होयताह ताहि पर विचार बादमे राखब।
हम हुनक टीम संग जुड़बाक स्वस्ति देलियनि अछि । औपचारिक आवश्यकता काल्हि देर राति पूर क, समाद द, देलियनि । आब देखी, कहियासं बनैत अछि संग काज करबाक सुयोग।
इति शुभम ।
गुरुवार, 19 मार्च 2020
कोरोना के कोहराम और वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच 25 मार्च 2020 को शुरु हो रहा है नव संवत्सर , कीजिये जमकर स्वागत
वैश्विक कोरोना महामारी के भय और आर्थिक संकट की आशंकाओं के बीच हम सबका उत्थान हो ।