शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

ड्रीम द्वारका परियोजना का लोकार्पण

वर्ष 2015 में 20 नवंबर को आज  कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को  अक्षय नवमी  के अवसर पर पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट की ओर से एक नई परियोजना की शुरुआत हो रही है।

ड्रीम द्वारका परियोजना क्या है

यह परियोजना ड्रीम द्वारका के नाम से जानी जाएगी।

इस परियोजना के लिए आज एक  ब्लाग लोकार्पित हो रहा है।  यह ब्लाग ड्रीम द्वारका के नाम से जाना जाएगा।

सनातन भारतीय परंपरा के अनुसार  द्वापर युग में भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के नाम से प्रसिद्ध थी। वर्तमान में इसके अवशेष समुद्र में डूबे बताए जाते हैं।

समकाल में  भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिण पश्चिम हिस्से में द्वारक सब सिटी है। यह भारत के सबसे सुनियोजित उपनगर के रूप में प्रख्यात है।

द्वारका में साफ सुथरी चौड़ी सड़कें, निश्चित अनुपात में बंटे सेक्टर,  भव्य सोसाइटी फ्लैट्स और डीडीए के फ्लैट्स के चारों ओर बाग बगीचे और हरियाली है। रिहायशी ठिकाने और एजुकेशन के हब के रूप में यह सबसिटी विकसित हो रही है।

इस सबसिटी को हर किसी के सपने के अनुरूप बनाने के लिए ड्रीम द्वारका परियोजना अक्षय नवमी तिथि को शुरु की जा रही है।

पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट की ओर से यह परियोजना इस उद्देश्य के साथ शुरु की जा रही है कि ड्रीम द्वारका के माध्यम से इससे जुड़ने वाले हर व्यक्ति का सपना साकार हो सके। 

 पारिजात है स्वर्ग लोक का दुर्लभ फूल

सनातन भारतीय परंपरा के अनुसार पारिजात एक फूल का नाम है। इसकी खुशबू अलौकिक मानी जाती है।


भगवान कृष्ण काल से संबंधित एक लोककथा के अनुसार एक बार देव मुनि नारद स्वर्ग लोक से कृष्ण से मिलने आए। उनके गले में पारिजात फूलों की माला थी। इस माला की सुंदरता और खुशबू दोनों से श्रीकृष्ण की रानियों के मन में यह इच्छा आयी कि ऐसा पौधा  उनके बगीचे में हो ताकि वे भी ऐसे फूल की माला पहन सकें और इसकी खुशबू का आनंद ले सकें।

उन्होंने अपनी इच्छा जतायी और नारदजी से कहा कि हमें भी यह पौधा चाहिए।

नारद जी मुस्कराए। वही मुस्कान जो हम आप उस समय मुस्कुराते हैं जब किसी का दिल जलाना होता है ।

........ ना भैया ना ये तेरे बस की बात नहीं.........

नारदजी ने कहा यह पारिजात पुष्प है। यह स्वर्गलोक के राजा इन्द्र के राजउद्यान में ही उगता है । मृत्यलोक की बात तो छोड़ो देवियों , यह फूल देव राज के अलावा किसी अन्य देवताओं के उद्यान में भी नहीं उगाया जा सकता। इसके उगाने पर पाबंदी है जिसे यह फूल चाहिए वह देवराज से याचना करता है और फूल ले जा सकता है अन्यथा जब देवराज किसी पर प्रसन्न होते हैं , उन्हें उपहार स्वरूप यह माला देते हैं ।

आपको माला चाहिए तो मेरी माला ले लो लेकिन इसके पौधे की कामना  मत करो। यह आपके उद्यान में नहीं आ सकता।
बेचारी रानियों का मन छोटा हो गया।

नारदजी तो किशन कन्हैया से मिल मिलाकर चले गए लेकिन जो आग उन्होंने रानियों के दिल में जला डाली उसकी अगन ने किशन कन्हैया को झुलसा डाला।

कौन पति होगा जो पत्नी के तानों से त्रस्त नहीं होता और कौन पति होगा जिसे अपनी रूठी हुई प्रिया का मुख देखान सुखद लगे। 

कृष्ण जी ने इन्द्र देव से कहा कि यह पारिजात पुष्प का पौधा हमें अपने उद्यान के लिए चाहिए। इन्द्रदेव ने कहा कि फूल तो मैं भिजवा सकता हूं लेकिन पौधा नहीं मिल सकता क्योंकि यह स्वर्ग लोक से मृत्यु भुवन नहीं जा सकता। जिस तरह देव लोक के देवता स्वर्ग से मृत्युलोक जा आ सकते हैं वैसे ही यहां का सामान भी भेजा जा सकता है लेकिन धरती पर स्थिर रूप से ना तो देव रह सकते हैं और ना ही देवलोक के पौधे।

आखिर कार इस मुद्दे पर देवलोक के राजा इन्द्र और श्रीकृष्ण के बीच लड़ाई हुई और इन्द्र पराजित हो गए और उन्हें यह पौधा मृत्युलोक भेजना पड़ा।

कहते हैं पारिजात का वृक्ष इस शर्त के साथ धरती पर आया कि मैं कृष्णजी के काल तक तो धरती पर रहूंगा और उसके बाद लुप्त हो जाउंगा क्योंकि मेरी भी अपनी मर्यादा है। 

कृष्णजी ने कहा युद्ध में पराजितों के शर्त नहीं स्वीकार किए जाते । तुम्हें धरती पर ही रहना होगा।

पारिजात फूल ने कहा आपकी बात ठीक है लेकिन पराजित इन्द्र हुए हैं मैं नहीं । मैं भी जीव हूं । ईश्वर का अंश हूं और अपने फैसले का अधिकार मेरे कर्मफल पर निर्भर है। यदि मैं अपने कर्मफल को लेकर सत्य में स्थिर हूं और  अपने प्राण विसर्जित कर दूं  तो क्या मुझे जबर्दस्ती आप रोक सकते हैं ।

कृष्ण के पास इसका उत्तर नहीं था। उन्होंने व्यवस्था दी सत्य में पूर्ण स्थिर किसी जीव के कर्मफल उसी पर निर्भर हैं इसलिए तुम्हारे अधिकार को कोई छीन नहीं सकता। 

पारिजात ने मुस्कराते हुए कहा प्रभु मैं आपकी शरण में हूं आपने इन्द्र के साथ मुझे भी प्राप्त कर लिया । आपके प्रस्थान के बाद मैं धरती से लुप्त हो जाउंगा । लेकिन जो आपके समान पराक्रमी होगा और मुझे प्राप्त करने के लिए यत्न करेगा तो मैं उसके उद्यान में आ जाउंगा।


इस तरह पारिजात का फूल आज भी धरती पर है ऐसा कहा जाता है। 

हम यह मानते हैं कि स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र को पराजित करने का सामर्थ्य मृत्युलोक में जन्मे कृष्ण में था। वे जिस तरह पारिजात को अपने उद्यान में ले आए उसी तरह उसी कृष्ण के अंश स्वरूप हम और आप कोई भी जीव अपने इच्छित परिणाम को अपने परिश्रम से प्राप्त कर सकते हैं।

पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट क्या है

पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट लगभग पांच वर्ष पुरानी गैर लाभकारी संस्था है जो यह मानती है कि हम और आप मिल कर अपने परिवेश को और बेहतर बना सकते हैं।

हमारे पास जो उपलब्ध ज्ञान है उसे एक दूसरे के साथ बांटने का संकल्प लें तो जीवन में सफलता के उच्चतम शिखर तक सकते हैं। 

ड्रीम द्वारका परियोजना अक्षय नवमी के अवसर पर इसी संकल्प के साथ शुरु हो रही है कि हम अपने परिवेश और अपने जीवन को बेहतर बनाएंगे।

अपनी अपनी द्वारका नगरी को बेहतर बनाएंगे।

पहले चरण में यह परियोजना द्वारका सबसिटी में आज से शुरु हो रही है। अगले अक्षय नवमी पर हम अपने काम काज के मूल्यांकन के साथ द्वारका के बाहर विस्तार पर भी ध्यान केन्द्रित करेंगे।

आइए हम मिल कर चलें। 
   

 
       

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