रविवार, 4 सितंबर 2016

वाराह जयंतीः 2016 ड्रीम द्वारका संकल्प के साथ मुस्कान मेल यात्रा और सूकर अवतार की प्रासंगिकता

वाट्सएप पर Smile Mail Audio message 


कार्तिक शुक्ल नवमी यानि अक्षय नवमी तिथि पर 20 नवंबर 2015  को शुरु हुई ड्रीम द्वारका परियोजना के विचार धीरे धीरे अनेक लोगों तक पहुँचने लगे हैं। इंटरनेट पर वाट्सएप पर Smile Mail Audio message के माध्यम से प्रति दिन सैकड़ों लोगों तक अनेक नगरों, प्रांतो, देशों में मुस्कुराने की अपील की जा रही है। इसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं।

पांच वाट्सएप समूह और एक ब्लॉग के माध्यम से स्वस्थ तन, प्रसन्न मन, सुखी, शांत और संतुष्ट जीवन का संदेश लोगों तक पहुंच रहा है। लोग अभिरूचि ले रहे हैं।

सबसे अच्छी बात है कि लोगों की प्रतिक्रियाएं आधे घंटे के भीतर अनेक दिन देखने को मिली हैं। यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि  जो कुछ कहा जाता है लोग उसे नियमित सुनते हैं और सुनकर अपनी राय रखते हैं।
यह कम नहीं है।

लोग सुनें और साथ चलें ताकि हम अपनी समस्याओं के निदान के लिए मिल कर चलें यही ड्रीम द्वारका का लक्ष्य है। 


हालांकि ड्रीम द्वारका के जिस तन की अपेक्षा थी वह अब तक पूरी नहीं हुई है। कब तक होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है पर इसके विकल्प के तौर पर यह ब्लॉग नियमित होने लगा है।

सीमित साधनों में संतोष के लिए यह भी कम नहीं है।

इस ब्लॉग तन पर यदि वाट्सएप  Smile Mail Audio message  का समावेश हो सकता तो इसकी पहुंच और तेज गति से बढ़ती लेकिन अभी यह विकल्प ब्लॉग नहीं देता है।

वाट्सएप पर पोस्ट Smile Mail Audio message की विडियो फिल्म बन सकती है पर इसके जोखिम बड़े हैं। आवाज़ के माध्यम से ये संदेश जितने प्रभावी बनते हैं विडियो में उससे अधिक प्रभावी हो सकते हैं ।  पर इसके लिए समुचित संसाधनों का होना आवश्यक है। कम संसाधन से तैयार विडियो संदेश अपना प्रभाव खो सकते हैं। इसलिए जिस रूप में जैसा चल रहा है वह जारी रहेगा।  

पूरे एक साल की यात्रा पर लेखा जोखा रखूंगा कि हमने कितनी लंबी यात्रा की और कितने पड़ावों को पार कर लक्ष्य तक पहुंचे।

वाराह जयंती संदेश 


आज यानि 04 सितंबर 2016 को दिल्ली में  भाद्रपद यानि भादो के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि है। आज की तिथि में काल क्रम में पहले कभी वाराह अवतार हुआ था। इसकी जयंती आज भी मनाई जाती है। वाराह क्षेत्र में, वाराह मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। ये अलग बात है कि फिलहाल भारत देश में या दुनिया भर में  वाराह देव या देवी के बहुत कम मंदिर बचे हैं । हालांकि एक दौर ऐसा रहा है जब इनको समर्पित अनेक मंदिर थे और बड़ी संख्या में मतावलंबी भी रहे हैं।

वाराह जयंती  मानव के उद्भव -विकास और जल प्रलय की विभिन्न अवस्थाओं को समझने के लिए बड़ी ही महत्वपूर्ण तिथि है। जो मैं देख पा रहा हूं अतीत के कालखंड, स्मृतियों, पुराणों के संकेत और वर्तमान की परिस्थितियों को देख कर वह विगत अवधारणाओं को बदल कर नयी दृष्टि से देखने और समस्याओं का समाधान ढूंढने का संकेत दे रहा है।

सनातन भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले लोगों की ओर से सामान्यतः वाराह अवतार के बारे में विचार करते समय वैज्ञानिक दृष्टि रख कर विचार करते समय कहा जाता है कि
मत्स्यावतार यानि जल में जीवन की शुरुआत होने की अवस्था का विवरण
कूर्मावतार यानि जल से जमीन पर जीवन की शुरुआत होने की अवस्था का विवरण
और सूकर अवतार यानि वाराह अवतार के साथ धरती पर जीवन पूरी तरह विकसित होेने की अवस्था का विवरण देने वाला अवतार

मुझे लगता है कि इस सोच को नए तथ्यों के आलोक में देखने की जरूरत है।

मैं समझता हूं कि
मत्स्यावतार यानि मानवों की स्मृति में प्रथम जल प्रलय के बाद की स्थिति
कूर्मावतार यानि मानवों की स्मृति में द्वितीय जल प्रलय के बाद की स्थिति
वाराह अवतार यानि मानवों की स्मृति में तृतीय जल प्रलय के बाद की स्थिति

का वर्णन करते हैं।

वाराह अवतार यानि शूकर अवतार के साथ तृतीय जल प्रलय को जोड़ने का आधार उस संकेत से मिल रहा है जिसमें यह कहा गया है कि

हिरण्याक्ष  पृथ्वी को बलपूर्वक जल के अंदर रसातल में ले जाता है और अपने यहां कैद करके रखता है। पृथ्वी को ऊपर लाने में देवता असमर्थ हो गए। यह असमर्थता धरती के ऊपर मौजूद जल की स्थिति के बारे में संकेत दे रही है। 

दरअसल यह जल मल से भरा हुआ था।

यहां प्रश्न यह है कि धरती की सतह से ऊपर का संपूर्ण जल 
मल से, विष्ठा से इस तरह आविष्ट कैसे हुआ ?  
क्यों हुआ ? 
किसने किया ? 

वाराह पुराण की कथाएं इन सवालों का विवरण या जवाब नहीं दे रही हैं । सवाल भी इनमें नहीं उठाया गया है। बस यह संकेत है कि देवता विष्ठा में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। 

हिरण्याक्ष के साथ संघर्ष के लिए देवता रसातल नहीं जा सकते थे क्योंकि विष्ठा से घिरे आवरण के अंदर रसातल में जाकर धरती को बाहर निकालना देवताओं के वश में नहीं था । देवता विष्ठा में प्रवेश नहीं कर सकते हैं इसलिए उन्हें विष्णु से आग्रह करना पड़ा और विष्णु को सूकर अवतार लेकर धरती का उद्धार करने का उपक्रम करना पड़ा क्योंकि एक मात्र सूकर ही ऐसा जीव है जो मल के साथ प्रसन्नता पूर्वक रह सकता है क्योंकि मानव मल उसका प्राकृतिक आहार है।

मानव मल सूकर का प्राकृतिक आहार के साथ संबंध है सूकर अवतार का  


इस तथ्य पर विचार आवश्यक है। 

मानव शरीर संरचना और सूकर शरीर संरचना आपस में मिलते जुलते हैं। यहां तक कि हृदय प्रत्यारोपण के लिए सूकर के हृदय के इस्तेमाल पर गंभीरता से विकल्प के रूप में विचार हो रहा है, प्रयोग चल रहे हैं। सूकर के अनेक अंगों का उपयोग मानव अंग के विकल्प के रूप में हो सकता है, इस पर प्रयोग दशकों से चल रहे हैं। 

ऐसे में मानव -सूकर संबंध और सूकर अवतार पर नए सिरे से विचार आवश्यक हो जाता है। 

अपने उद्भव के बाद से सूकर की प्राकृतिक संरचना  और आहार विहार की अवस्था में काल क्रम में कोई खास बदलाव नहीं आया है। सूकर आज भी जल स्रोत के नजदीक रहता है। यह जल स्रोत साफ है या गंदा इससे  सूकर के स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बेहद प्रदूषित जल में जहां बायोमास बेहद कम है सूकर के जीवनयापन में कोई खास बाधा नहीं आती है। 

हालांकि आधुनिक समय में इसे लेकर कोई प्रयोग नहीं हुए हैं। पर मानव मल के निस्तारण के लिए नए सिरे से इस पर प्रयोग हो सकते हैं। चीन में हाल-हाल तक मानव मल के साथ सूअर पालन की परंपरा रही है और दुनिया भर के साथ भारत में भी आधुनिक शौचालयों की व्यवस्था से पहले शूकरों द्वारा मानव मल के निस्तारण में प्रयोग होता रहा है। सूकर मानव मल को बड़े चाव से खाता है क्योंकि मानव मल इसके लिए पौष्टिक आहार है।
मानव मल सूअर के लिए पौष्टिक आहार है इसमें चौंकने या नकारने वाली कोई बात नहीं बल्कि यह वैज्ञानिक तथ्य है कि हर जीव ( पौधे या पशु -पक्षी) का तन या उसके तन से निकला उत्सर्जित पदार्थ दूसरे जीव के लिए प्राकृतिक पौष्टिक आहार है। 

उदाहरण के लिए मानव के लिए शहद रूपी अति पौष्टिक आहार और कुछ नहीं बल्कि मधुमक्खियों की उगली हुई उल्टी है जिसे खास विधि से मधुमक्खियां तैयार करती हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसे आहार के रूप में इस्तेमाल कर सकें। 

पागुर करने वाले सभी जीव जैसे गाय भैंस अपने निगले आहार को फिर से अपने मुंह में वापस लाकर चबाती और निगलती हैं ताकि वह सुपाच्य हो सके। अनेक चिड़िया अपने निगले आहार को अपने पेट से निकाल कर थोड़ा चबाकर वापस अपने छोटे बच्चों को खिलाती है। यह सामान्य आहार विहार व्यवस्था है। 

इसलिए चौंके नहीं। 

वाराह जयंती पर आज इस तथ्य पर ये विचार इसीलिए किया जा रहा है कि 
जब सूकर अवतार हुआ 
उससे पहले के जलप्रलय से पहले मानव मल के निस्तारण की समस्या ने क्या रूप लिया 
यह कौन जानता है ?
कौन कह सकता है पूरे विश्वास के साथ अतीत में ठीक ठीक ऐसा ही हुआ ?
या आने वाले दिनों में फिर ऐसा नहीं होगा ?

आधुनिक विज्ञान जितने सवालों का जवाब देता है उससे कहीं अधिक सवाल बिन जवाब के रह जाते हैं। 

मैं समझता हूं इन सवालों के जवाब हमें दुनिया भर की दंत कथाओं या पुराण कथाओं से मिल सकते हैं ।

हमें इन कथाओं में उपलब्ध संकेतों को समझना होगा। इन संकेतों को समझ कर समय रहते सवालों का जवाब ढूंढना होगा ताकि हम अपने युग की समस्याओं का समाधान ढूूंढ पाएं।

धरती पर अन्य जीवों की तुलना में जिस रूप में मानवों की संख्या बढ़ रही है , मानव जिस रूप में सभी जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है उसमें एक समय आ सकता है जब जल प्रलय हो और धरती के ऊपर प्रदूषण रूपी मल की मोटी परत छायी हुई हो 

ऐसे में इस समस्या के निस्तारण के लिए प्रजापालक देव विष्णु को सूकर के रूप में एक बार फिर अवतार लेना पड़ेगा। बेहतर है हम इसकी नौबत ही नहीं आने दें। 

क्या ख्याल है आपका ?

( इस आलेख में वाराह पुराण और अन्य पुराणों से समुचित संदर्भ बाद में जोड़े जाएंगे। ) 

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