शनिवार, 27 अगस्त 2016

तन को स्वस्थ, मन को आनंदित बनाए पंचकोश का ज्ञान


मुस्कान मेल पैगाम

पहले मुस्कुराइए फिर नज़रें आगे दौड़ाइए।

ये नहीं चलेगा कि आप अपनी मोहिनी सूरत को रोनी बनाकर मुस्कान मेल देखने चले आइये।
बिल्कुल नहीं चलेगा।

आपको पता हो या नहीं मैं जानता हूँ कि आप और केवल आप दुनिया में सबसे सुंदर हैं।

अपने नाजुक सुंदर होठों पर मुस्कान लाइए ना
ये देखिए
आ गयी
पतली सी मुस्कुराहट....................

बिल्कुल छुरी वाली मुस्कुराहट

देखिए, सर्जिकल ब्लेड वाली आपकी इस मुस्कान से किसी की मौत हो सकती है ।

इसलिए ये वाली नहीं

चीज़ वाली मुस्कान लाइए.....................

ये हुई ना बात।

जब चीज़ वाली चौड़ी मुस्कान

चेहरे पर आती है ना........

तो

होंठ, पतले हों या मोटे,

गोरे हों या काले,

लिपस्टिक लगे हों या चिपस्टिक,

आप बहुत खूबसूरत दिखते हैं.........

सच्ची.......

बिल्कुल सच्ची.......

क्या कहा ? .......

 चलिए , मेरा भरोसा मत कीजिए। आइने में अभी देख लीजिए।

वैसे यदि आइना नहीं हो तो कोई बात नहीं, जो कोई नजदीक है, उसकी 

आंखों में झांक कर अपने प्यारे से चेहरे को देखिए।

अब हुआ भरोसा।

है ना दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा आपका।  

कोई पास नहीं है ? कोई बात नहीं

मैं हूं ना

अपने इस लेख के माध्यम से.........

अपनी आवाज के माध्यम से........................

मैं यह घोषित करता हूं कि

आप दुनिया में सबसे ज्यादा खूबरसूरत  हैं ।

देखिए जिस दिन अपने मन में यह विश्वास आ जाता है कि हम दुनिया में 

सबसे सुन्दर हैं, सबसे योग्य हैं और हम अपनी ज़िन्दगी अपने फैसलों के 

अनुसार चलाएंगे उस दिन से हमारे अन्दर एक बुनियादी बदलाव आना शुरु हो जाता है।
   
  जिस दिन हम अपनी खुशी के लिए दूसरों के दिए  सर्टिफिकेट की 

परवाह किए बिना अपने फैसले पर यकीन करने लगते हैं उस पल से 

हमारे तन और मन में आनन्द का एक नया दरवाजा खुलना शुरु होता है।

लेकिन यह दरवाज़ा है कहां ...

कैसे खुले यह दरवाज़ा.........

ये सच है कि इस दरवाजे को ढूंढना और खोलना आसान नहीं है।

लेकिन ये भी सच है कि यह दरवाज़ा कहीं बाहर नहीं है

इसे ढूंढने के लिए

पाने के लिए

खोलने के लिए

हमें ही कोशिश करनी पड़ती है। हमारे अलावा कोई दूसरा हमारी कोशिश नहीं कर सकता। हां 
सहायता जरूर कर सकता है।

आप ये कोशिश कर सकें..

इसीलिए तो मुस्कान मेल आपके पास रोज पहुंच रहा है

कि

आप अपने को जानिए

अपने तन मन की बनावट को जानिए।

अपना दरवाज़ा ढूंढ निकालिए और अपनी चाहत को पूरी कर डालिए।

कोशिश शुरु तो कीजिए।

कोशिश के शुरु करने के लिए ज़िन्दगी में इस पल से बेहतर और कोई पल नहीं होता। बस अभी से शुरु हो जाइए।

लेकिन पहले मुस्कुराइए क्योंकि ये रास्ता मुस्कान हाइवे पर आगे बढ़ता है।
         

क्षिति जल पावक गगन समीरा पंच तत्व यह अधम शरीरा के माध्यम से मुस्कान मेल यही तो कर 

रहा है। जानकी जयंती यानि 15 अप्रैल 2016 से शुरु होकर लगभग सौ दिनों से लगातार प्रातःकाल 

आप तक पहुंचना और आपको भरोसा दिलाना, आपसे मुस्कराने की अपील करना और क्या है

बस यही भरोसा दिलाना ना कि आप दुनिया में सबसे सुंदर हैं। आप कोशिश कर सकते हैं  ।

 आप स्त्री हों या पुरुष

युवा या बुजुर्ग

मेरे लिए आप इस धरती पर सबसे खूबसूरत जीव हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं आप से प्यार करता 

हूं 

और आप मुझसे। क्यों भरोसा नहीं हुआ .............

देखिए आप मेरी आवाज सुनते हैं ना। अभी इस पल आपकी बेपनाह सुंदर आंखे इन शब्दों को पढ़ 

रही हैं ना.....

क्यों भला.......

यही प्यार है। यही स्नेह है। यही चाहत है । यही एक दूसरे के लिए सम्मान है।

और यह प्यार,

यह स्नेह

यह एक दूसरे के लिए चाहत

कुछ पाने के लिए नहीं हैं।

बस देना है।

और देना भी क्या

एक मुस्कुराहट

बस इतनी सी बात।  

हम ऐसी जानकारियां एक दूसरे को दें जिससे हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे।  

तन स्वस्थ रहेगा तो मन प्रसन्न रहेगा। तन स्वस्थ और मन प्रसन्न रहेगा तो मुस्कुराएगा ही।

मुस्कान मेल का जन्म मुस्कान बांटने के लिए हुआ है। एक दूसरे से बिना किसी अपेक्षा के स्नेह 

देने के लिए हुआ है।

जब हम बिना किसी अपेक्षा के अपने पास उपलब्ध कोई भी जानकारी या सामान दूसरे को

ईमानदारी के साथ बांटते है ना

देते हैं ना

तो

इस बांटने से

देने से

पाने वाले को भी लाभ होता है

और

देने वाले को भी लाभ होता है।

यही लोक कल्याण है।

यही शिव संकल्प है।

यही सत्यम शिवम सुन्दरम है।

ये मत सोचिए कि जो दे रहा है

उसे लाभ नहीं होता है। देने वाले को भी बहुत लाभ होता है।

क्या लाभ होता है जिस पल देना शुरु कीजिएगा उस पल से समझना शुरु होगा।

बस ये याद रखिए कि ऐसी वस्तु , ऐसा धन या ऐसा ज्ञान दूसरे को मत दीजिए जो आपका अपना 

नहीं है।

मन , कर्म और वचन से जो कुछ आपका अपना है वही आप दूसरे को दे सकते हैं। जो किसी दूसरे 

का है वो आप नहीं दे सकते।

अपना कमाया हुआ धन

अपने तन और मन पर किये प्रयोग का परिणाम

ही आप दूसरों को दे सकते हैं।  

फारवर्डेड मैसेज या किताबों में पढ़ी बातें यदि आपके अपने जीवन में शामिल नहीं हैं तो आपकी 

कही बातों का कोई असर नहीं होगा।

कुछ पल या कुछ दिनों तक ऐसा हुआ भी तो इसका लाभकारी परिणाम टिकेगा नहीं। इसका 

नुकसान आज नहीं तो कल आपको ही भुगतना पड़ेगा।

स्माइल मेल के माध्यम से यही संकल्प लिया गया है कि जो भी जानकारी मुझे अपने स्वाध्याय 

से, तप से और लगातार दशकों के अभ्यास और प्रयोग से मिली है उसे बिना किसी अपेक्षा के दूसरों 

के साथ शेयर करूंगा। 

बाटूंगा।

भारत वर्ष में युग-युग से ऐसा होता आया है। अभी भी मुस्कान मेल यही कर रहा है।

मुसकान मेल के माध्यम से जो भी जानकारी बांटी जाती है वह पूरी जिम्मेदारी के साथ बांटी जाती 

है। हर रोज सुबह आप जो कुछ सुनते हैं वह मेरा अपना सत्य होता है। मैं आपको कोई गलत 

जानकारी जानबूझ कर नहीं दे सकता।

जब आप मेरे संपर्क में होते हैं तो आपको किस रूप में अगला कदम उठाना है , उसका क्या लाभ 

हो सकता है, नुकसान हो सकता है, यह बिल्कुल साफ साफ बताता हूं। ऐसा इसलिए कि जो मेरा 

अनुभव है वह आपका भी अनुभव हो सकता है।

देखिए मेरे तन मन पर जो घटित हुआ है उससे मिलता जुलता आपका भी अनुभव हो सकता है। 

एक मानव और दूसरे मानव में बहुत ज्यादा का अंतर नहीं होता। कुछ-कुछ थोड़ा सा मिलता जुलता 

है और कुछ-कुछ थोड़ा सा अलग होता है। लेकिन हर मानव कुल मिलाकर मानव ही तो होता है ना।

ऐसा ही है ना .....

   इसी बात पर हो जाए एक मुसकान...

आइए अब हम अपने तन मन की बनावट को कोश यानि सूक्ष्म सेल के स्तर पर समझने का 

प्रयास करें। इसे जानकर हम अपने आप को बेहतर तरीके से जान सकेंगे।

यदि तन में

या

मन में

कहीं कोई पीड़ा है

कसक है

तो

उसका बेहतर समाधान कर सकेंगे।

सनातन भारतीय परंपरा और योग शास्त्र की किताबों में जो कुछ संस्कृत सूत्रों के माध्यम से कहा 

गया है उसे पढ़िएगा तो संस्कृत भाषा की जानकारी चाहिए। सूत्र अपने आप में पूर्ण हैं। थोड़े 

अभ्यास से इन्हें पढ़ कर समझा जा सकता है।

लेकिन इन्हें ठीक ठीक जानने के लिए इन ग्रंथों के प्रति, ग्रंथ लिखने वाले के प्रति और ग्रंथ में 

कही जा रही बातों के प्रति

आपके मन में

श्रद्धा होनी चाहिए

आस्था होनी चाहिए

विश्वास होना चाहिए

कि

इनमें जो कहा जा रहा है

वह सत्य है

मेरे लिए लाभकारी है

मैं इस पर भरोसा

करता हूं

करती हूं।

मन में श्रद्धा-आस्था और विश्वास नहीं है तो वह ग्रंथ आपके लिए उचित नहीं है । इससे आपको लाभ नहीं होगा।  

लेकिन आप संस्कृत नहीं जानते हैं और इसकी हिंदी या अंग्रेजी व्याख्या पढ़ कर समझना चाहते हैं 

तो उलझने के आसार अधिक हैं। ऐसा इसलिए कि व्याख्या करने वालों ने इसे बुरी तरह उलझा 

दिया है। व्याख्या करने वाले विद्वानों के अलग - अलग मत हैं। हर मत के समर्थक और विरोधी हैं। 

ये विद्वान हैं। इनका उद्देश्य अपने मत के अलावा दूसरे के मत को बकवास साबित करना है ताकि 

अपने मत के प्रचार प्रसार से अपना भला हो। अपना रोज़गार बढ़े।

इसलिए इन विद्वानों की व्याख्या पढ़कर आपके उलझने का खतरा अधिक है। किसे सच मानें किसी 

झूठ मानें इससे बचना है तो जो कुछ जहां कहा जा रहा है उसे अपनी बुद्धि से परखिए।

आपकी बुद्धि में जितनी बात समझ में आए उसे अपने तन और मन के साथ जोड़ कर देखिए। यदि 

आपके तन और मन की कसौटी पर वह बात सच है तभी उसे सच मानिए नहीं तो झूठ कहिए। 

यही फार्मूला आप किसी भी किताब के साथ किसी भी गुरु पर आजमा सकते हैं। किसी के लिखे या 

कहे जा रहे तथ्यों पर आजमा सकते हैं।

जितनी बात आपकी समझ में आए बस उतना ही सत्य आपके लिए है बाकी असत्य है और उन 

बातों का कोई लाभ नहीं है।

हमारे आपके तन और मन के पांच कोश माने गए हैं। ये पांच कोश पूरे जगत और ब्रह्मांड की 

बनावट को समझने के लिए भी उपयोग किए जाते हैं। लेकिन हमें अभी जगत और ब्रह्मांड को छोड़ 

कर केवल अपने तन मन के स्तर पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

ये पांच कोश इस प्रकार हैं।
1.   

   अन्नमय कोश
2.   
    प्राणमय कोश
3.     
   मनोमय कोश
4.   
   विज्ञानमय कोश
5.   
   आनन्दमय कोश

अन्नमय कोशः देखिए जब धरती पर जीवन की शुरुआत हुई तो उससे पहले पांचो तत्व धरती जल अग्नि वायु और आकाश की व्यवस्था हुई। जल से जीवन का सृजन शुरु हुआ। सबसे पहले बहुत सूक्ष्म जीव आए जो जीव और अजीव के बीच की स्थिति में आए। इन सूक्ष्म जीव से वनस्पतियां यानि पौधे आए । पौधों के बाद पशु रूप में प्राणी आए।

हम मानव पशु रूपी प्राणी के ही उन्नत रूप हैं। हमारा जीवन वनस्पतियों की कृपा पर आधारित है। यह ठीक है कि मांसाहारी मानव, पशु या पक्षी या अन्य जीव मांस खाते हैं लेकिन उनका आहार भी वनस्पति खाकर अपना जीवन चलाने वाले दूसरे जीव पर आधारित है।

इस प्रकार हम सब जीवों का जीवन वनस्पति पर आधारित है। ये वनस्पतियां अपनी रक्षा के लिए जीवों पर आधारित हैं। इस तरह परस्पर एक दूसरे की रक्षा करके जीवन चक्र चलता रहता है।

इस वनस्पति को

या

अपने आहार को

भोजन को

हम अन्न मान लें तो

अन्न से निर्मित जो हमारा तन है वह अन्नमय कोश कहलाता है।

यही अन्नमय कोश सूक्ष्म जीवों का भी है। सबसे छोटा जीव वायरस और बैक्टीरिया को लें तो उनका भी प्रथम कोश अन्नमय कोश है। यानि जीवन जिस किसी में है उसका पहला कोश जो सबसे स्थूल है , देखने में नजर आता है वह अन्नमय कोश है।

अन्नमय कोश की रक्षा आहार लेकर ही हो सकती है। हम आप जो भी हों यदि जीवित रहना है तो हमें आहार लेना ही होगा। इस आहार में भी वही पांच तत्व क्षिति जल पावक गगन समीरा शामिल हैं। हम मानव यह आहार वनस्पति के रूप में मुख्य रूप से लेते हैं।

हमारे शरीर का जो भी हिस्सा दिखायी देता है या समझ में आता है वह इसी अन्नमय कोश का प्रभाव है। इस कोश की रक्षा उचित आहार लेकर की जाती है।

यानि इसका सीधा सा मतलब हुआ कि हमें स्वस्थ तन चाहिए तो अपने अन्नमय कोश को जानकर अपनी आयु के अनुकूल उचित आहार अवश्य लेना चाहिए।

इतनी बातें हो गयीं और अब तक हम मुस्कुराए नहीं। इतनी सीरियस चर्चा बिना मुस्कान के नहीं होनी चाहिए। चलिए हो जाए एक मुस्कान इसी बात पर।  

प्राणमय कोशः अन्नमय कोश जितना स्थूल है उससे सूक्ष्म है प्राणमय कोश। प्राण देखने में तो नहीं आता लेकिन इसका अनुभव हम अच्छे से कर पाते हैं। प्राण हमारे तन के हर अंग के हर हिस्से में है। जब तक तन में प्राण है तभी तक जीवन है। जिस पल प्राण तन से निकल जाए उस पल से तन वापस अपने मूल पांच तत्व क्षिति जल पावक गगन समीरा को वापस लौटने लगता है।

यह प्राण हर जीव को चाहिए। जीवन के सूक्ष्तम रूप से सबसे अधिक उन्नत रूप हर किसी को प्राण चाहिए। हम मानव यह प्राण वायु के माध्यम से अपने तन के अंदर लेते हैं और विभिन्न रूपों में इसके उपयोग के बाद अपने तन से बाहर निकाल देते हैं।

इस प्राणमय कोश का अनुभव तन के अंदर वायु की गति से किया जा सकता है। यदि प्राणायम के लिए हम नियमित समय निकालें और अपने अंदर वायु के आगमन और प्रस्थान पर ध्यान दें तो बस एक प्राणायम का अभ्यास हमें पूरी तरह नीरोग रखने में सक्षम है।

प्राणायाम की विभिन्न विधियां हैं। इन्हें हमें सीखना चाहिए और इसका लाभ उठाना चाहिए।   
प्राणमय कोश केवल अपने तन के स्तर पर नहीं कार्यरत है बल्कि यह विश्व और ब्रह्मांड के स्तर पर भी काम करता है।

जब हम अपने तन के साथ प्राण को जोड़ कर प्रयोग करते हैं तो अनेक अनुभूतियां होती हैं। इनमें स्वस्थ तन और प्रसन्न मन के साथ संपूर्ण ब्रह्मांड की व्यवस्था को देखने समझने की दृष्टि विकसित होती है।

हम इस दृष्टि को विकसित करने का प्रयास जब चाहे तब करें लेकिन भी हमें यहां मुस्कुराना चाहिए।
ज्ञान जहां बोझिल होने लगे उस पड़ाव पर रुक कर मुस्कुराना मुस्कान मेल के नियम हैं। इसलिए हम मुस्कुराएं।
आप भी मुस्कुराइए ना।

देखिए आपने पूजा पाठ होते कहीं देखा है ?
यदि हिंदू समाज से हैं तो हवन होते देखा है ना
हवन में शामिल हर व्यक्ति कुछ- कुछ देर पर स्वाहा बोलता है ना
ठीक इसी तरह मुस्कुराना और अपने साथ होने वाले को मुस्कुराने के लिए आग्रह करना मुस्कान मेल का स्वाहा है।

यदि आप हिंदू समाज से नहीं हैं तो अपनी आस्था के अनुसार जो भी शब्द आपके रिचुअल्स में चलता हो जैसे आमीन ..............

उसकी तरह मुस्कुराइए शब्द जोड़ लीजिए और वाकई मुस्कुराइए।
इससे मुस्कान आपकी ज़िन्दगी में स्थायी आदत बन जाएगी। हर पल आनन्दित रहने की शुरुआत हो जाएगी।

मनोमय कोशः अन्नमय कोश और प्राणमय कोश दोनों से और सूक्ष्म है मनोमय कोश। मनोमय कोश का प्रसार जहां तक हमारा आपका मन जा सकता है वहां तक हो सकता है। यदि हम इसे केवल अपने तन के अंदर देखने और ढूंढने की कोशिश करें तो इसे अपने नरवस सिस्टम यानि तंत्रिका तंत्र से जोड़ कर समझ सकते हैं।

हम सामान्यतः अपने तन के ऊपरी आवरण को देख पाते हैं अंदरूनी अंगों को थोड़ा बहुत समझ पाते हैं। लेकिन जब अन्नमय कोश के साथ प्राणमय कोश को जोड़ कर मनोमय कोश की यात्रा पर चलते हैं तो हम अपने तन की विभिन्न क्रियाओं पर नियंत्रण की ओर आगे बढ़ते हैं।


   आधुनिक विज्ञान यह जानकारी देता है कि हमारे तन की क्रियाएं दो तरह की हैं एक ऐसी क्रिया जिन्हें हम अपनी इच्छा से करते हैं दूसरी ऐसी क्रियाएं जो हमारी इच्छा के बिना भी होते रहती हैं। 

लेकिन जब हम अन्नमय कोश की सहायता से प्राणमय कोश को लेकर मनोमय कोश के दरवाजों तक पहुंचें तो वह हर क्रिया जो अनैच्छिक हैं जैसे हृदय की धड़कन, सांसों का आवागमन इनके नियंत्रण की ओर बढ़ते हैं।    

यहां आप पूछ सकते हैं कि क्या मैंने ऐसा किया है।

नहीं

मैं अभी इस स्तर तक नहीं पहुंच सका हूं।

लेकिन ऐसे लोगों से मिल चुका हूं जिन्होंने इस स्तर को पार किया है और विज्ञानमय कोश की यात्रा पूरी कर आनन्दमय तन की अवस्था को प्राप्त कर चुके हैं। यहां तक की यात्रा कर सकने वाले लोगों की संख्या धरती पर हमेशा बेहद कम होती है। लेकिन वे होते अवश्य हैं और जो श्रद्धाभाव के साथ उन तक पहुंचते हैं उन्हें श्रद्धालु की योग्यता और पात्रता के अनुसार प्रयोग करके दिखाते भी हैं।

सवाल यह है कि मनोमय कोश को जानना और प्रयोग किसलिए आवश्यक है। जवाब यह है कि यह जानना हर किसी के लिए आवश्यक नहीं है। जिन्हें अपने आप में दिलचस्पी हो, अपने आस पास की समस्याओं के समाधान में दिलचस्पी हो और जिनके मन में लोक कल्याण की भावना हो उन्हें यह जानकारी लेनी चाहिए।

जीव और जगत के अंतर्संबंधों को जानना चाहिए और अपने युग की समस्याओं के समाधान के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए। यदि आप केवल अपने तन मन की सेहत चाहिए तो अन्नमय कोश और प्राणमय कोश को समझिए और अपने स्थूल शरीर पर काम कीजिए।

बस इतने से आपका तन तन्दुरुस्त रहेगा और आजीवन आप स्वस्थ रहेंगे। आपका हर अंग प्रत्यंग ठीक ठीक काम करेगा और आप पूरी प्रसन्नता से जीवन यापन करेंगे।

यदि आप पर ईश्वर की कृपा हुई तो इससे आगे की यात्रा पर चलने की इच्छा खुद ब खुद होगी और यात्रा पर चलाने वाला भी मिल जाएगा।

बस अभी तो लगे रहिए और मुस्कुराते रहिए।
मुस्कुराए ना आप

कैसी वाली मुस्कान है
छुरी वाली

या

चीज वाली
जो भी है चलेगी

मुस्कुराहट तो मुस्कान है जैसी भी हो दौड़ेगी।  

विज्ञानमय कोशः विज्ञानमय कोश पहले के तीन कोश अन्नमय कोश, प्राणमय कोश और मनोमय कोश से भी सूक्ष्म है। इस विज्ञान मय का अर्थ विशिष्ट ज्ञान मय समझिए। जब अपने तन के अंदर तीन सूक्ष्म कोशों की यात्रा पूर्ण होती है तो विशिष्ट ज्ञान का दरवाजा खुलता है।

सच पूछिए तो इस विशिष्ट ज्ञान का दरवाजा प्राणमय कोश के रास्तों पर चलने से खुलने लगता है। स्थूल से सूक्ष्म का पहला स्तर प्राणमय कोश का प्रयोग ही ऐसे अनेक अनुभव तन के स्तर पर देने लगता है कि हम आप हैरान रह जाते हैं।

उदाहरण स्वरूप रोमांच होना तो समझते हैं ना। यानि अपने तन के रोम का खड़े हो जाना।
जब हमें ठंढ लगती है
जब हम डर जाते हैं
जब हम सिहरने लगते हैं
जब कोई हमें गुदगुदा रहा होता है
जब हम बहुत उत्साह में होते हैं
जब बेहद खुश होते हैं
जब हम बेहद दुखी होते हैं
जब हम आक्रोश में होते हैं
जब हम किसी
मंदिर
मस्जिद
गुरुद्वारे
चर्च
उपासना स्थल में होते हैं
तो पुलकित होकर रोमांच होता है
हमारे तन के रोम खड़े हो जाते हैं

लेकिन यही अनुभूति
आप प्राणायाम के कुछ अभ्यासों से प्राप्त कर सकते हैं

इसे थोड़ा सा विकसित किया जाए तो कोई भी व्यक्ति ना केवल अपने तन के रोम बल्कि सर के घने लंबे बालों को भी सीधा ऊपर खड़े कर ले सकता है।

जरा सोचिए आपने एक लंबी सांस ली या किसी खास विधि से सांस ली और आपके सर के लंबे बाल सीधे ऊपर आसमान की ओर

इसी अभ्यास का अगला स्तर हो सकता है ना केवल बालों को बल्कि अपने पूरे तन को बिना किसी सहारे के आसमान में ऊपर उठा लेना।

यह कोई चमत्कार नहीं है। ना ही हाथ की सफाई है। बस अपने तन के अन्नमय कोश और प्राणमय कोश को साधने की बात है।

 तो जब अन्नमय कोश और प्राणमय कोश के साथ मनोमय कोश की यात्रा विज्ञानमय कोश के दरवाजों से होने लगती है तो अपने तन के अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड की यात्रा हो सकती है। विज्ञानमय कोश का प्रयोग समझने और जानकारी रखने वाला व्यक्ति अपने तन के माध्यम से कुछ भी करने में समर्थ होता है।

सरल शब्दों में कहें तो ऐसा व्यक्ति जीवित तन में ईश्वर के समान होता है।

सवाल है क्या ऐसा कोई व्यक्ति आज है। मेरी जानकारी में कम से कम एक व्यक्ति तो हैं जिनसे मैं जानकी जयंती के दिन यहीं दिल्ली में छतरपुर मंदिर में कुछ वर्ष पूर्व मिल चुका हूं। वे सिद्ध पुरुष हैं और उन्हें शिव के समान मैं मानता हूं।

जिस मंत्र शक्ति पर मुझे बचपन से आस्था रही है। जो प्रयोग मैंने जीव और जगत के साथ किए हैं उससे अलग हट कर जो कुछ मेरी नजरों के सामने घटित हुआ उस दिन, वह इस बात का प्रमाण है कि अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश के साथ  मंत्रों के माध्यम से, सूत्रों के माध्यम से शास्त्रों में जो कुछ कहा जाता है वह सत्य है।    

अपने सत्य से बड़ा और कोई तथ्य नहीं होता और जिस तथ्य की साक्षी मेरी अपनी आंखें हैं मेरी अपनी इन्द्रियां हैं उन्हें सत्य मानना और आप तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य है।

इसी बात पर हो जाए मुस्कान।

मुस्कान इस पल आपकी मेरे लिए सबसे बड़ा सत्य है। हमेशा आप मुस्कुराते रहें यही हमारा उद्देश्य है।

आनन्दमय कोश

आनन्दमय कोश को मैं अतिक्रमण की अवस्था मानता हूं। हालांकि इसे उच्चतम अवस्था माना गया 

है। लेकिन मुझे लगता है कि आनन्द छोटी-छोटी अनुभूतियों से प्राप्त हो सकता है।

होता है।

सबसे स्थूल अन्नमय कोश को नहीं जानते हुए भी यदि तन की देखभाल जाने अनजाने होती रहे तो भी आनन्द की अवस्था प्राप्त हो सकती है।

होती है।

इतने से भी हम हर पल मुस्कुरा सकते हैं।

लेकिन जब हम क्रमिक रूप से पांचों कोशों को जानकर हम अपने तन मन की बनावट और इस 

जगत की बनावट और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने लगते हैं तो जानने के लिए और कुछ बचा 

नहीं रह जाता। हर पल  आनन्द की अवस्था इसी संपूर्णता को माना गया है।

जब सब कुछ समझ जाएं तो हर पल मुस्कुराना और आनन्दित रहना सहज हो जाता है।

हम सभी आनन्दमय अवस्था में रहें।

बिना कुछ किए धरे ऐसा हो

 मुस्कान मेल की बस इतनी सी चाहत है।

हो जाए मुस्कान इसी बात पर।

आप मुस्कुराए ना।

इसी तरह जब आप मुस्कुराते हैं ना तो आप बेहद सुंदर लगते हैं।



बाई टेक केयर।  

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