शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

22-11-2024: क्षिति जल पावक गगन समीरा-श्रृंख्ला- तन के विभिन्न अंग पर इनका प्रभाव-१- प्राण नियमन से खत्म हो गया सर में चक्कर देना और कान में इको सुनाई देने संबंधी शिकायत

 वर्ष २०१६- १७-१८ के दौरान मुस्कान मेल श्रृंख्ला में लगातार दैनिक प्रवचन चलता रहा था। मेरे तन मन के प्रयोग का निष्कर्ष इसमें लगातार अभिव्यक्त हो रहा था।  क्षिति जल पावक गगन समीर यानि पंच तत्व-पंच महाभूत को माध्यम बना कर जीवन के विभिन्न पक्ष अभिव्यक्त हो रहे थे। इस श्रृंख्ला को फिर से शुरु करने का मन इन दिनों कई बार हुआ पर फिर आलस हावी हो जा रहा है।


खैर.....


१० नवंबर 2024 के बाद सर में चक्कर आने की अनुभूति हुई। १२ और १३ नवंबर को कान में इको आने की अनुभूति पहली बार हुई। बहुत पहले माँ ने कहा था कि उसे भी कानों में झनझनाहट और तरह-तरह की आवाजें सुनाई देने की शिकायत हुई थी और उसने इसका समाधान भोलेनाथ से मांगना शुरु किया। महादेव को जल चढ़ाने के बाद थोड़ा सा जल अरघा से नीचे आया हुआ प्रसाद स्वरूप पी लेती थी और कुछ समय के बाद वह ठीक हो गई।


माँ का ये अनुभव अपने तन की सीमाओं को स्वीकार कर एक आधार ईश्वर को बना इससे निपटने का एक तरीका है।


मेरा अपना तरीका पंच तत्वों को समझना और इसे अपने तन पर प्रयोग कर परिणाम ढूंढना है ताकि इसका लाभ अन्य लोग भी शरीर गतिविधि को समझते हुए  उठा सकें।


इस क्रम में दोबारा योग और प्राणायाम का नियमित क्रम १५ नवंबर २०२४ कार्तिक पूर्णिमा से शुरु किया है।


कान- श्रुति- सुनना आकाश तत्व का गुण है। 

हमारे शरीर के पंच महाभूत में से 

पहली क्षिति-धरती- पृ्थ्वी तत्व है जिसका मुख्य गुण गंध है। लेकिन पृथ्वी में गंध, रस, रूप, स्पर्श और स्वर अन्य चार भी उपस्थित हैं।

दूसरा जल - तत्व का मुख्य गुण रस है। लेकिन इसमें रूप, स्पर्श और स्वर ये तीन भी उपस्थित हैं। जल का अपना गन्ध नहीं है और यह गन्ध पृथ्वी तत्व के कारण है। जल में किसी भी तरह के ठोस पृथ्वी पदार्थ के कारण ही गन्ध रहता है। ये गन्ध प्रिय है या अप्रिय पृथ्वी का है। रस वै ब्रह्म का सूत्र जल तत्व को समझ कर ही कहा गया है। सृजन का सार, सृष्टि का रहस्य और जीवन की उत्पत्ति इसी रस रूपी जल पर टिकी हुई है।

तीसरे तत्व अग्नि का मुख्य गुण रूप है। अग्निमें स्पर्श और स्वर ये दो भी उपस्थित हैं। अग्नि के ही कारण रूप परिवर्तन होता है। जितने भी चमत्कार या अलौकिक अनुभव हैं वह सब अग्नि के रूप बदलने की क्षमता के ही कारण है। अग्नि को वेदों में जो भारत कहा जाता है वह इसके इसी विशिष्ट भार वहन करने की क्षमता के कारण कहा जाता है। वह जो भार को तन रूप में वहन कर सके इसलिए भारत है। ये भारत शब्द कोश की व्याख्या नहीं मेरी अपनी व्याख्या है जो अक्षर और शब्द ब्रह्म पर विचार करते हुए पकड़ में आये हैं। ई = एम सी स्कावयर जो आइन्सटीन का फार्मूला है उसका आधार यही अग्नि- का एक स्वरूप एनर्जी है।   

चौथे तत्व वायु का मुख्य गुण स्पर्श है। ये स्पर्श करना सम्भव होता है गति के कारण। वायु यहां से वहाँ चल कर ही पहुँचता है और स्पर्श करता है । छू लेता है। तो ऐसे में वायु का  गुण स्पर्श गति पर आधारित है। वायु तत्व में गति के अतिरिक्त स्वर गुण हैं। हवा के चलने से सरसराहट, मरमराहाट या विभिन्न प्रकार की ध्वनियां आकाश गुण के कारण हैं। हवा के चलने से गन्ध पृथ्वी तत्व के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचती है। ताप का प्रसार, ताप चाहे गर्म है या शीतल इसी वायु का आधार ले आगे बढ़ता है।

आकाश तत्व का गुण स्वर है। स्वर यानि ध्वनि। आवाज। 


हमारे तन के तीन मुख्य विभाजन हैं। 

सबसे ऊपर मस्तक, जिसे गर्दन तक रख लिया जाय।

मध्य में धड़, जिसे गर्दन से लेकर कमर तक मान लिया जाय।

सबसे नीचे अधोअंग जिसे कमर से पैर के तलवे तक रख लिया जाए।

इन तीनों विभाजन में से प्रत्येक में ये पंच महाभूत अलग-अलग स्थान पर केन्द्रित होने चाहिए। जिन्हें ढूढना, पकड़ना और प्रयोग करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। 

लौटते हैं अपने दोनो कानों में से एक दाहिनमे में १० नवंबर २०२४ से शिकायत शुरु होना। जब कभी किसी को अपने सर में चक्कर आने लगे उसे अपने तन के संकेतों पर ध्यान देना चाहिए। सर में चक्कर आना कोई बीमारी नहीं है। यह बस संकेत है तन का । कहीं कोई समस्या है। इस समस्या की पहचान जो कर ले और समाधान के लिए प्रयोग करे वही योगी है। ऋषि है, द्रष्टा है।

सर में चक्कर के साथ मैं सतर्क होकर ढूढने लगा। इस क्रम में १३ नवंबर २०२४ को अपने कानों में कुछ असामान्य घटित होने की सूचना मिली। इस पर थोड़ा सा ध्यान देने से दाहिने कान में इको यानि अपनी ही आवाज गूंजने की अनुभूति हुई। १४ नवंबर को इसकी पुष्टि हुई। पूरे दिन कान में इको को परखता रहा। जीवन संगिनी अंशु को भी जानकारी दी। वह अपने सहज स्वाभाव के अन्तर्गत हंसने और मजाक उड़ाने लगी।

१५ नवंबर २०२४ को पूर्णिमा का व्रत करते हुए १७ वर्ष तीन महीने बीत कर चौथा महीना शुरु हुआ। योग अभ्यास नियमित तो चल रहा है। इसमें शारीरक अभ्यान अनेक बार अनियमित हो जाता है पर प्राणायम कभी नहीं छूटता क्याोंकि प्राणों का नियमन अब सांसों  मे ढल गया है।

इसलिए मैं स्वयं को योगी समझता और मानता हूँ । लेकिन एक बार फिर कार्तिक पूर्णिमा से आसन यानि शारीरिक अभ्यास के साथ प्राणायाम को शुरु करना लाभदायक रहा  है।


मेरे कानों में इको आना, झनझनाहट या जो भी समस्या थी वह दूर हो गई। ऐसा इसलिए कि कान यानि अपने तन के अन्दर आकाश तत्व के नियमन के लिए शून्य मुद्रा प्रयोग के साथ दोनों कान की कोशिकाओं, नलिकाओं और अन्य अंग के साथ वायु प्रवाह का प्रयोग मैंने किया। तप्त वायु तन के अनेक दोषों को दूर करती है। विकार को समस्याओं से मुक्त कर पुनः अपने स्वभाविक आकार में ले आती है।

यानि पृथ्वी तत्व रूपी कान के विभिन्न अंग पर प्राण नियमन यानि वायु के प्रवाह को नियन्त्रित कर आन्तरिक रूप से कान की विभिन्न नलिकाओं में संकुचन, विस्तार और कंपन उत्पन्न करने के लिए दबाव डाला गया। वायु प्रवाह को रोका गया। रोकने और दबाव डालने से सहज ही ताप का उदय होता है। यह बढ़ा हुआ ताप कोशिकाओं को गर्म करता है। उन्हें गर्म वायु स्पर्श से सहलाता है, उनकी मालिश करता है और इस तरह कान के अन्दर मौजूद विभिन्न अवयवों की कोशिकाओं को राहत देता है। इस तरह वे अपने मूल आकार में लौटकर पुनः अपने स्वस्थ स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं।


मेरे कान की इको समाप्त हो गई है। कोई झनझनाहट नहीं है।


इति शुभम। 

  

22 नवंबर 2024- दिल्ली में प्रदूषण की ताजा स्थिति और बचाव के उपाय

 22 नवंबर 2024- दिल्ली में प्रदूषण में कमी आई है। वायु गुणवत्ता अति गंभीर से घटकर बहुत खराब हो गई है जिसे पहले से बेहतर  कहा जा सकता है। पिछले तीन दिनों से लगातार धूप निकल रही है।

धूप निकलने से तापक्रम ऊपर चला गया है। दृश्यता स्तर सुधर गया है। वायु प्रवाह की गति थोड़ी बढ़ी है।


लेकिन वायु का प्रवाह पूरब से पश्चिम ही बना हुआ है। ये चिन्ता का विषय है लेकिन कोई उपाय भी तो किसी के पास नहीं है।


प्रदूषण से संबंधित विशेषज्ञों ने स्वीकार किया है कि दीवाली और पराली के कारण वायुमण्डल में हानिकारक सूक्ष्मकण बढ़ने का आकलन तो किया गया था लेकिन विवाह समारोह में होने वाली आतिशबाजी के प्रदूषण को नहीं जोड़ा गया था ।


सुप्रीम कोर्ट ने ग्रैप ३ और ४ के लिए लागू प्रतिबन्धों को हटाने से पहले न्यायालय से अनुमति लेने का निर्देश दिया है। इसलिए कल यानि २१-११-२४ से कार्यालायों मे उपस्थिति पचास प्रतिशत रखने के आदेश दिये गए हैं।


दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम दोनों ने यह निर्देश लागू कर दिया है। अंशु जी का कार्यस्थल भी इस दायरे में आ गया है। इसके आदेश कल २१-११-२४ की तिथि में पारित हुए पर आज जारी हुए हैं। 


इस मौसम में भी मेरा योग अभ्यास जो विगत पूर्णिमा यानि १५ नवंबर से नियमित फिर शुरु हुआ है, चल रहा है। मैं प्रातःकाल ९.०० बजे का बाद ही शारीरिक अभ्यास और प्राणायाम करता हूँ।      


शिकारा दम्पत्ति रोज सुबह पीपल के पेड़ पर आ रहा है। आज मैं ने इसकी रिकार्डिंग की है। आज ही अपलोड भी कर दूंगा।



स्वास्थ्य रक्षा के लिए तरल आहार अधिक से अधिक लेना हर किसी के लिए उचित है। आवश्यकतानुसार व्यायाम करते रहना चाहिए।


अभी बस इतना ही।


सोमवार, 11 नवंबर 2024

12 नवंबर 2024 देवोत्थान एकादशीः द्वारका उपनगरी में शिकारे का प्रवेश, दिल्ली आसमान में दमघोंटू माहौल, वायु प्रवाह अब तक मॉनसूनी, पूरब से पश्चिम बह रही हवा

आज देवोत्थान एकादशी है। आज के दिन मैं व्रत रखता हूँ। वैसे हर एकादशी व्रत रहता है अब। मंगलवार को भी व्रत दिवस । और पूर्णिमा से तो व्रत करने का संकल्प शुरु हुआ है अपना। सो आज देवता उठ रहे हैं आज लंबे शयन के बाद। और मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ यहाँ विचारों को व्यक्त करने से। 15 नवंबर तक एक नयी किताब लिख लेने का दबाव है जो काफी अधूरा है और शायद 20 नवंबर तक पहला ड्राफ्ट तैयार कर पा सकूंगा। लेकिन किताब पर लिखना छोड़ यहाँ लिखना आज जरूरी लग रहा । सो सुबह साढ़े नौ बजे से अभी साढ़े बारह बजे अपराह्न तक का समय अपने इसी मंच के लिए लगा दिया। पर सृजन के इस सुख के सामने सब कुछ व्यर्थ।

खैर   

भारत में नोटबन्दी वर्ष 2016 से देश की राजधानी दिल्ली लगातार एक परंपरा और अनिवार्य प्रथा की तरह अक्टूबर महीने के अन्तिम सप्ताह से लेकर दिसम्बर के पहले सप्ताह तक प्रदूषण से जूझती है। इस बार भी दम फूल रहा है इस महानगर का। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि सख्त प्रतिबन्ध के बाद भी दिल्ली में पटाखे क्यों चले? 12-11-24 आज की अखबार यानि कल की सुनवाई में सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है क्यों न पटाखे पर पाबन्दी पूरे वर्ष भर के लिए लगा दी जाय?

समस्या के मूल में कोई नहीं जाना चाहता। जब तक जड़ की धुलाई, छंटाई, कटाई नहीं होगी प्रतिबन्ध जैसे उपाय कॉस्मेटिक सर्जरी और फेस लिफ्टिंग साबित होनी तय है। फसल के अनुपयोगी डंठलों का समाधान जबतक प्रोत्साहन उपायों से नहीं तय किया जायेगा तब तक किसान अपनी पेट पर पट्टी बाँध कर इन्हें अपने खर्चे पर मिट्टी के नीचे दबाना , कम्पोस्ट बनाना नहीं शुरु करेगा। किसान जब ट्रैक्टर और मशीनों से खेती करेगा तो उसके लिए कतई आवश्यक नहीं कि वह फसल के अवशेष की चिन्ता करे। उसे संभाल कर रखे ताकि वे उसके पालतू पशु का आहार बन सकें।

विजया दशमी पर रावण दाह से आतिशबाजी का सीजन आरंभ होता है।पंच दिवसीय पर्व दीवाली पर जमकर सामूहिक पटाखे चलते हैं। फिर छठ  और फिर कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली गुरु नानक जयंती तक लगातार दीपोत्सव के साथ पटाखे चलते रहते हैं।  

देवोत्थान एकादशी यानि आज से शादी के लग्न मुहुर्त शुरु होते हैं और मार्च अप्रैल तक अलग-अलग तिथियों पर विवाह संस्कार संपन्न होते रहते हैं। शादी ब्याह में अपनी सामर्थ्य के अनुसार जमकर आतिशबाजी होती है। कोई भी सरकार या न्यायालय दंडात्माक प्रावधानों से इन संस्कारों के अवसर पर  आतिशबाजी को रोक नहीं सकती है। त्यौहारों पर पटाखों को चलाना रोक नहीं सकती है।

महादेव जानते हैं कि सर पर हाथ रखने से भस्म करने का वरदान मुझे भी भस्म कर सकता है पर भक्त है तो वरदान देंगे ही और वर पाकर दानव उन्हें ही सबसे पहले भस्म कर अपने वरदान का प्रभाव समझना चाहेगा। इसी भस्मासुर की पटकथा राजनीतिज्ञ विजया दशमी पर हर साल लिखते हैं। पहला प्रदूषक बम तीर छोड़कर रावण के पुतले को जलाना होता है। इसके साथ ही दमघोंटू जाड़े की शुरुआत हो जाती है। 

कौन रोकेगा रावण के पुतले जलाना ? प्रदूषण का एक जड़ यहाँ है। है किसी में हिम्मत ? 

2024 में वायु प्रवाह की दिशा अभी तक पूर्व से पश्चिम की ओर है। क्यों है, इसके जितने कारण और तर्क ढूंढे जायें । ऐसा कठोर सत्य है। पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर वायु प्रवाह सर्दी लेकर आती है। अपने साथ ठंड लाती है। इस वर्ष अभी तक हवा के सहारे शीतल पैगाम नहीं आया है। सर्दी नहीं आयी है। 

पर सूरज की किरणें झुककर हम तक पहुँच रही हैं। दक्षिणायन सूर्य लगातार दक्षिण की ओर अग्रसर हो रहे हैं इनके ताप की शक्ति घटती जा रही है। अभी और घटेगी पर इन्हें और बल देकर सरदी लाने वाली हवा का रुख नहीं बदल रहा है।


है किसी आदम की औलाद में यह ताकत कि इसके रुख को पलट दे ? कितना तुच्छ लाचार और बौना है आज का इन्सान ?

१२ नवंबर को जिस समय मैंने यह पोस्ट किया उसके अगले दिन १३ नवंबर से ही वायु का प्रवाह लगभग थम गया। गति १० किलोमीटर प्रति घंटे से नीचे आ गयी परिणामस्वरूप  दो दिनों तक यही स्थिति बनी रहने से  वायु गुणवत्ता सूचकांग ए.क्यू आइ ४०० के ऊपर चला गया। और एस-ओ.पी के अंतर्गत सरकार ने १४ नवंबर से आनन-फानन में ग्रैप ३ लागू कर दिया है। 

देव-दीपावली, गुरुनानक जयंती १५ नवंबर से एक दिन पहले से यह व्यवस्था लागू है। देखें कब तक वायु की गुणवत्ता सुधरती है।  

26 अगस्त 2024 को जन्माष्टी पर अपने पुराने प्रकृति पर्यवेक्षण मैदान में इस वर्ष सैकड़ो चीलें नजर आयी थी। क्यों आयी थीं उस समय नहीं समझ पाया था। अब समझ रहा हूँ। 

8-11-2016 के अपने इसी ब्लाग से एक स्क्रीन शॉट शेयर कर रहा हूँ। 



पिछले एक महीने यानि अक्टूबर के पहले सप्ताह से एक शिकारा दम्पत्ति की आवाज सुन रहा हूँ अपने इस प्रयोगांगन में। ये प्रयोग वस्तुतः पर्यवेक्षण ही है। पर सूक्ष्म पर्यवेक्षण और इसके परिणाम को क्रमबद्ध कर निष्कर्ष निकालना ही तो प्रयोग है। एक वैज्ञानिक यही तो करता है।

एक ऋषि यही तो करते थे। वैदिक ऋषि द्रष्टा हैं। मन्त्र का दर्शन करते हैं। यह दर्शन जब अपनी कसौटी पर पक कर बार-बार सत्य निकलता है तो मन्त्र को सूत्रबद्ध कर देते है।

इस शिकारे को देखना यही तो है।

मेरी खिड़की के सामने  सागवान का पेड़ है। इसका एक पौधा चम्पा के पौधे के साथ अपनी मातृभूमि पटना और पाणिग्रहण स्थल  बिहार की औद्योगिक नगरी पंडौल में हमने लगाया था। दोनो सूख गये। स्नेह जब अपना रस खो देता है तो परिस्थितियाँ अनुकूल होते हुए भी वृक्षदेव सूख जाते हैं। सो मेरे वे चारो वृक्ष देव दोनों स्थान पर लग कर भी सूख गये। आज नहीं हैं।

पर जब इस द्वारका नगरी में हम पति-पत्नी आये तो हमारे एक फ्लैटनुमा घर परिसर में सागवान के कई वृक्ष हैं। इस परिसर में उदित हो रहे सूर्य देव की रश्मियाँ पीपल के पत्तों को सहलाते हुए हमारे बेडरूम तक पहुँचती है। अशोक भी हंसता मुस्कुराता स्वागत करता है इन प्रातःकालीन अंशुओं का । ऑस्ट्रेलियन कीकड़ कहे जाने वाले पीपल से होड़ लेते कई वृक्ष भी बाल रवि किरणों के साथ इठलाते रहते हैं। मस्त नीम भी इनका स्वागत करता है। 


हमारी अंगनाइमे छोटे से, पर बड़े प्यारे से हरसिंगार देव भी हैं जो संध्या वेलामे ही अपनी कलियों के साथ चन्द्रमा की चारु किरणों से अठखेलियाँ करते हुए हमारे होश उड़ा दे रहे आजकल। सुबह सवेरे अपने प्रातःपूजन के लिए हम अपनी फुलडाली में बड़े सम्मान के साथ इनके सौरभ बिखेरते फूल चुन लेते हैं।

ये जो शिकारा आया है, मांसाहारी पक्षी की श्रेणी का छोटे आकार के पक्षियों की संख्या नियन्त्रित करने वाला नया दम्पत्ति उसकी सिटी जैसी तेज, तीखी और सतर्क आवाज मैं सुनता रहता हूँ । अपनी बॉलकनी से ढूंढती रहती हैं मेरी नजरें इन्हें। जोड़े का एक साथी उत्तर पूर्व दिशा से आवाज दे रहा और दक्षिण पूर्व से आ रही दूसरी साथी की आवाज। कौन सवाल करने वाला या वाली और कौन जवाब देने वाली या वाला अभी तक देख और समझ नहीं पाया। 

इस तेज शिकारी चिड़िया की झलक दिखती रहती है। इनकी आवाज सुनता रहता हूँ। और अब रहस्य खुल गया है जन्माष्टमी पर अपने पर्यवेक्षण प्रयोगशाला में चीलों की बैठक और आसमान में सैकड़ों चीलों के दो दिन तक घूमते रहने का रहस्य।

चीलों की ये द्वारका में जन्माष्टमी पर हुई महत्वपूर्ण  बैठक में दिल्ली एन.सी.आर . के प्रधानों का आगमन हुआ था। द्वारका उपनगरी में अपने राजपाट का निरीक्षण करने के लिए हुआ था। उन्होंने अपने संसाधनो का आकलन किया था। द्वारका के  हरे भरे बढ़ते वृक्षदेवों की गिनती हुई थी। इन पर बसेरा लेने वाले छोटे बड़े पक्षियों का अन्दाजा लगाया गया था। 

और फिर निर्णय लिया गया। मध्यम और छोटे खग बढ़ गये हैं । इनका नियन्त्रण आवश्यक है। और चीलों ने अपनी राजशाही में शिकारा को बसाने का निर्णय लिया।

तो पिछले २२ वर्षों के अपने द्वारका उपनगरी में पिछले लगभग सवा महीने से जो हम स्थायी रूप से तेज-तीखी सिटी जैसी पुकार सुन रहे हैं। वह शिकारा अब हमारा पड़ोसी बन गया है।

पंजाबी का एक मुहावरा है चील के बच्चे मुंडेरों पर नहीं पलते लेकिन चीलों ने हरे भरे वन का हम मानवों द्वारा हनन होते देख हमारी मुंडेरों पर रहना सीख लिया है। जो चील दूर एकांत में घोंसला बनाते थे वह द्वारका उपनगरी में सोसाइटी के सागवान पर पलने लगे हैं। पश्चिम दिशा में हमारी सोसाइटी प्रांगण में सागवान के वयस्क पेड़ पर पिछले एक दशक से चीलों का घोंसला है। पहले एक घोंसला था जिसमें हमने पतझर के दिनों में माता-पिता चील को तीखी धूप में अपने दोनो डैने घंटो तक लगातार फैलाये रख अपने बच्चों को छाया देते हुए देखा है। सागवान पर एक भी पत्ता नहीं होता पर ये माँ बाप लगातार अपने डैनों को फैलाये रखते थे।

https://youtube.com/shorts/55dYjKM3A6Y?si=ULu2dL6FsnprcDAH

2024 में आज चीलों का घोंसला डुप्ले में बदल गया है। दो घोंसले एक साथ एक के ऊपर एक हैं। चील के बच्चे हमारी मुंडेर पर उड़ना सीख रहे हैं अब।

लेकिन 2002 में नयी-नयी जवानी पा रहे इस सागवान के पेड़ पर कौओं का एक जोड़ा रहता था। इसके घर पर 2012 में चील जोड़े ने कब्जा कर लिया। हमने चील और कौए की लड़ाई होती हुई अपने फ्लैट की खिड़की से कभी नहीं देखी या देखने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ। जो भी उचित समझें संवाद डाल लें  अपनी ओर से। बस एक दिन पता लगा कौये नहीं अब चील का एक जोड़ा हमारा पड़ोसी बनने के लिए यहाँ आ गया है। असल में  चील ने कब्जा कर लिया या कौओं ने अपना ये फ्लैट बेच दिया वही दोनों परिवार जाने। कौओं के छोटे बच्चों को पलते भी हमने कभी इस पर नहीं देखा था पर चीलों के कई बच्चे पिछले एक दशक से यहाँ पलते बढ़ते हमने देखा है।     

https://www.youtube.com/watch?v=72QwEmPd46E

इससे पहले 2009 में हमने दिल्ली की द्वारका उपनगरी के अपने आसमान में कुछ चीलों को उड़ते हुए देखा था। वर्ष  2011 में चीलों की एक बड़ी सभा हमारे सामने पूर्व दिशा के मैदान में आयोजित हुई थी। हमने दो तीन दिनों तक चीलों को इसमें बैठे हुए देखा था। अब इसका अर्थ अच्छी तरह समझते हैं। 

2002 में हमारे सामने पूर्व दिशा मे पेट्रोल पंप के पीछे मैदान के कोने में ऑस्ट्रेलियन कीकड़ के दो पेड़ थे। इस पर केवल उल्लू के एक दो जोड़े बसते थे। शाम का धुंधलका छाते ही, रात के राजाओं का इस पेड़ पर आपस में मिलना जुलना होता था। कई उल्लुओं की आवाज हम सुनते थे। सुबह सवेरे इस जाड़े में हमारे छोटे-छोटे बच्चे जब मुँह अंधेरे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे होते तो  ब्रश करते हुए बॉलकोनी में आकर इन सब उल्लुओं की आवाज सुनते। हमसे कई सवाल पूछते और हम कहते कि हमारा गुड मार्निग इनकी  गुड नाइट के समान है। अब ये सोने जाने से पहले एक दूसरे को गुड डे कह रहे है।

हमारे दोनों बच्चे भी द्वारका में प्रशासन द्वारा लगाये गये हजारों पेड़ पौधे के साथ बड़े हो रहे हैं।हमारी सोसाइटी परिसर के दक्षिण में एक सुन्दर सा हरा भरा पार्क २००२ से है। अनेक नये पेड़ कालक्रम में लगे हैं। 

पूरब दिशा में पीपल उस समय नन्हा सा वृक्ष अपने आप उगा था। पीपल का पड़ोसी नीम भी खुद बस गया था। किशोर अशोक हमारे परिसर में और ये कीकड़ नीम पीपल बाहर अपने  जवान होने का सपना देख रहे थे। 

एक बूढ़ा पीपल बहुत दूर था । उस पर हमारे दद्दू तोता महाराज थे। जो कभी कभार आ जाते हम सबको जगाने। इनके अलावा बस दो -चार कबूतर हुआ करते थे चिड़ियों के नाम पर ।  बाद में इस मैदान में टिटहरी का एक जोड़ा आया जो अब हमारा स्थायी पड़ोसी है। इसके बच्चे यहाँ पल बढ़ कर अपना नया ठिकाना ढूंढ लेते हैं। 

द्वारका सेक्टर छः के मैदान में होते हैं सार्वजनिक आयोजन

धीरे-धीरे हमारे चारों तरफ जैसे जैसे पेड़ बढ़ रहे हैं, हरीतिमा सघन हो रही है वैसे-वैसे तरह के पक्षी भी बढ़ रहे हैं। कोयल और महालक के साथ कौए का साथ देने के लिए कई प्रजाति की चिड़िया आ गयी हैं। थोड़ी सी छोटी गिरोह के साथ चलने वाली बुलबुल और हमेशा जोड़े में ही रहने वाली छोटी बुलबुल भी हमारे पड़ोसी हैं। बचपन में बांसों की झुरमुट से सुनी हरे बसंते को अब पहचानता हूँ। पहले एक जोड़े से अब अनेक जोड़े सुबह सवेरे एक दूसरे को जगाते हैं। बड़ी बुलबुल और छोटी बुलबुल के बीच मैना की संख्या भी बहुत बढ़ गयी है।

हरे बसंते से भी छोटा हरे रंग का ही छोटी दुम वाली एक चिड़िया पहले अपने जोड़े में अकेली नजर आती थी। अब ये अनेक जोड़े हैं। इनसे भी छोटी बेहद तेज सिटी बजाती और लगातार भाग दौड़ करती काली रंग की चिड़िया भी बहुत हो गयी है।


जाहिर सी बात है जब छोटे आकार की चिड़िया कई हैं तो शासक चील परिवार ने शिकारे को परमिशन दे दी। आ जा भई, आ जा । तू भी अपनी दुनिया हमारे राज में भी बसा ले।      

 

     


     

बुधवार, 4 सितंबर 2024

जन्माष्टमी २०२४ पर २६ अगस्त को लंबे अरसे के बाद द्वारका के आसमान में अपने छत के ऊपर लगभग एक सौ के आसपास चील दिखे हैं

 जन्माष्टमी २०२४ पर २६ अगस्त को लंबे अरसे के बाद द्वारका के आसमान में अपने छत के ऊपर लगभग एक सौ के आसपास चील दिखे हैं।


इसे भी बाद में विकसित करना है।

ड्रीम द्वारका प्रगति रिपोर्ट २०२४

 ड्रीम द्वारका प्रगति रिपोर्ट २०२४ रखने के लिए कुछ नया नहीं है। आज ०४ सितम्बर है । व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए एक याद रखने वाला दिन। आज जिस सोसाइटी सबका घर में रहता हूँ उसमें मैनेजमेन्ट कमिटी चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने थे। लेकिन कुल मिलाकर मात्र तीन नामांकन हुए जिनमें सो दो नामांकन एक ही पद प्रेसीडेन्ट के लिए एक ही समूह के दो लोगों ने पर्चे भर जबकि वाइस प्रेसीडेन्ट के लिए एक व्यक्ति सामने आया। इन तीन के अलावा  किसी ने भी नामं किसी पद के लिए उम्मीदवारी नहीं जतायी।


एक दुखद अध्याय सबका घर के लिए जिसमें कोई भी मैनेजमेन्ट कमिटी के लिए सभी नौ पद हेतु उम्मीदवारों के नाम के साथ आने की हिम्मत नहीं दिखाई।


इसे फिर बाद में विकसित करूंगा।