सोमवार, 11 नवंबर 2024

12 नवंबर 2024 देवोत्थान एकादशीः द्वारका उपनगरी में शिकारे का प्रवेश, दिल्ली आसमान में दमघोंटू माहौल, वायु प्रवाह अब तक मॉनसूनी, पूरब से पश्चिम बह रही हवा

आज देवोत्थान एकादशी है। आज के दिन मैं व्रत रखता हूँ। वैसे हर एकादशी व्रत रहता है अब। मंगलवार को भी व्रत दिवस । और पूर्णिमा से तो व्रत करने का संकल्प शुरु हुआ है अपना। सो आज देवता उठ रहे हैं आज लंबे शयन के बाद। और मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ यहाँ विचारों को व्यक्त करने से। 15 नवंबर तक एक नयी किताब लिख लेने का दबाव है जो काफी अधूरा है और शायद 20 नवंबर तक पहला ड्राफ्ट तैयार कर पा सकूंगा। लेकिन किताब पर लिखना छोड़ यहाँ लिखना आज जरूरी लग रहा । सो सुबह साढ़े नौ बजे से अभी साढ़े बारह बजे अपराह्न तक का समय अपने इसी मंच के लिए लगा दिया। पर सृजन के इस सुख के सामने सब कुछ व्यर्थ।

खैर   

भारत में नोटबन्दी वर्ष 2016 से देश की राजधानी दिल्ली लगातार एक परंपरा और अनिवार्य प्रथा की तरह अक्टूबर महीने के अन्तिम सप्ताह से लेकर दिसम्बर के पहले सप्ताह तक प्रदूषण से जूझती है। इस बार भी दम फूल रहा है इस महानगर का। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि सख्त प्रतिबन्ध के बाद भी दिल्ली में पटाखे क्यों चले? 12-11-24 आज की अखबार यानि कल की सुनवाई में सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है क्यों न पटाखे पर पाबन्दी पूरे वर्ष भर के लिए लगा दी जाय?

समस्या के मूल में कोई नहीं जाना चाहता। जब तक जड़ की धुलाई, छंटाई, कटाई नहीं होगी प्रतिबन्ध जैसे उपाय कॉस्मेटिक सर्जरी और फेस लिफ्टिंग साबित होनी तय है। फसल के अनुपयोगी डंठलों का समाधान जबतक प्रोत्साहन उपायों से नहीं तय किया जायेगा तब तक किसान अपनी पेट पर पट्टी बाँध कर इन्हें अपने खर्चे पर मिट्टी के नीचे दबाना , कम्पोस्ट बनाना नहीं शुरु करेगा। किसान जब ट्रैक्टर और मशीनों से खेती करेगा तो उसके लिए कतई आवश्यक नहीं कि वह फसल के अवशेष की चिन्ता करे। उसे संभाल कर रखे ताकि वे उसके पालतू पशु का आहार बन सकें।

विजया दशमी पर रावण दाह से आतिशबाजी का सीजन आरंभ होता है।पंच दिवसीय पर्व दीवाली पर जमकर सामूहिक पटाखे चलते हैं। फिर छठ  और फिर कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली गुरु नानक जयंती तक लगातार दीपोत्सव के साथ पटाखे चलते रहते हैं।  

देवोत्थान एकादशी यानि आज से शादी के लग्न मुहुर्त शुरु होते हैं और मार्च अप्रैल तक अलग-अलग तिथियों पर विवाह संस्कार संपन्न होते रहते हैं। शादी ब्याह में अपनी सामर्थ्य के अनुसार जमकर आतिशबाजी होती है। कोई भी सरकार या न्यायालय दंडात्माक प्रावधानों से इन संस्कारों के अवसर पर  आतिशबाजी को रोक नहीं सकती है। त्यौहारों पर पटाखों को चलाना रोक नहीं सकती है।

महादेव जानते हैं कि सर पर हाथ रखने से भस्म करने का वरदान मुझे भी भस्म कर सकता है पर भक्त है तो वरदान देंगे ही और वर पाकर दानव उन्हें ही सबसे पहले भस्म कर अपने वरदान का प्रभाव समझना चाहेगा। इसी भस्मासुर की पटकथा राजनीतिज्ञ विजया दशमी पर हर साल लिखते हैं। पहला प्रदूषक बम तीर छोड़कर रावण के पुतले को जलाना होता है। इसके साथ ही दमघोंटू जाड़े की शुरुआत हो जाती है। 

कौन रोकेगा रावण के पुतले जलाना ? प्रदूषण का एक जड़ यहाँ है। है किसी में हिम्मत ? 

2024 में वायु प्रवाह की दिशा अभी तक पूर्व से पश्चिम की ओर है। क्यों है, इसके जितने कारण और तर्क ढूंढे जायें । ऐसा कठोर सत्य है। पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर वायु प्रवाह सर्दी लेकर आती है। अपने साथ ठंड लाती है। इस वर्ष अभी तक हवा के सहारे शीतल पैगाम नहीं आया है। सर्दी नहीं आयी है। 

पर सूरज की किरणें झुककर हम तक पहुँच रही हैं। दक्षिणायन सूर्य लगातार दक्षिण की ओर अग्रसर हो रहे हैं इनके ताप की शक्ति घटती जा रही है। अभी और घटेगी पर इन्हें और बल देकर सरदी लाने वाली हवा का रुख नहीं बदल रहा है।


है किसी आदम की औलाद में यह ताकत कि इसके रुख को पलट दे ? कितना तुच्छ लाचार और बौना है आज का इन्सान ?

१२ नवंबर को जिस समय मैंने यह पोस्ट किया उसके अगले दिन १३ नवंबर से ही वायु का प्रवाह लगभग थम गया। गति १० किलोमीटर प्रति घंटे से नीचे आ गयी परिणामस्वरूप  दो दिनों तक यही स्थिति बनी रहने से  वायु गुणवत्ता सूचकांग ए.क्यू आइ ४०० के ऊपर चला गया। और एस-ओ.पी के अंतर्गत सरकार ने १४ नवंबर से आनन-फानन में ग्रैप ३ लागू कर दिया है। 

देव-दीपावली, गुरुनानक जयंती १५ नवंबर से एक दिन पहले से यह व्यवस्था लागू है। देखें कब तक वायु की गुणवत्ता सुधरती है।  

26 अगस्त 2024 को जन्माष्टी पर अपने पुराने प्रकृति पर्यवेक्षण मैदान में इस वर्ष सैकड़ो चीलें नजर आयी थी। क्यों आयी थीं उस समय नहीं समझ पाया था। अब समझ रहा हूँ। 

8-11-2016 के अपने इसी ब्लाग से एक स्क्रीन शॉट शेयर कर रहा हूँ। 



पिछले एक महीने यानि अक्टूबर के पहले सप्ताह से एक शिकारा दम्पत्ति की आवाज सुन रहा हूँ अपने इस प्रयोगांगन में। ये प्रयोग वस्तुतः पर्यवेक्षण ही है। पर सूक्ष्म पर्यवेक्षण और इसके परिणाम को क्रमबद्ध कर निष्कर्ष निकालना ही तो प्रयोग है। एक वैज्ञानिक यही तो करता है।

एक ऋषि यही तो करते थे। वैदिक ऋषि द्रष्टा हैं। मन्त्र का दर्शन करते हैं। यह दर्शन जब अपनी कसौटी पर पक कर बार-बार सत्य निकलता है तो मन्त्र को सूत्रबद्ध कर देते है।

इस शिकारे को देखना यही तो है।

मेरी खिड़की के सामने  सागवान का पेड़ है। इसका एक पौधा चम्पा के पौधे के साथ अपनी मातृभूमि पटना और पाणिग्रहण स्थल  बिहार की औद्योगिक नगरी पंडौल में हमने लगाया था। दोनो सूख गये। स्नेह जब अपना रस खो देता है तो परिस्थितियाँ अनुकूल होते हुए भी वृक्षदेव सूख जाते हैं। सो मेरे वे चारो वृक्ष देव दोनों स्थान पर लग कर भी सूख गये। आज नहीं हैं।

पर जब इस द्वारका नगरी में हम पति-पत्नी आये तो हमारे एक फ्लैटनुमा घर परिसर में सागवान के कई वृक्ष हैं। इस परिसर में उदित हो रहे सूर्य देव की रश्मियाँ पीपल के पत्तों को सहलाते हुए हमारे बेडरूम तक पहुँचती है। अशोक भी हंसता मुस्कुराता स्वागत करता है इन प्रातःकालीन अंशुओं का । ऑस्ट्रेलियन कीकड़ कहे जाने वाले पीपल से होड़ लेते कई वृक्ष भी बाल रवि किरणों के साथ इठलाते रहते हैं। मस्त नीम भी इनका स्वागत करता है। 


हमारी अंगनाइमे छोटे से, पर बड़े प्यारे से हरसिंगार देव भी हैं जो संध्या वेलामे ही अपनी कलियों के साथ चन्द्रमा की चारु किरणों से अठखेलियाँ करते हुए हमारे होश उड़ा दे रहे आजकल। सुबह सवेरे अपने प्रातःपूजन के लिए हम अपनी फुलडाली में बड़े सम्मान के साथ इनके सौरभ बिखेरते फूल चुन लेते हैं।

ये जो शिकारा आया है, मांसाहारी पक्षी की श्रेणी का छोटे आकार के पक्षियों की संख्या नियन्त्रित करने वाला नया दम्पत्ति उसकी सिटी जैसी तेज, तीखी और सतर्क आवाज मैं सुनता रहता हूँ । अपनी बॉलकनी से ढूंढती रहती हैं मेरी नजरें इन्हें। जोड़े का एक साथी उत्तर पूर्व दिशा से आवाज दे रहा और दक्षिण पूर्व से आ रही दूसरी साथी की आवाज। कौन सवाल करने वाला या वाली और कौन जवाब देने वाली या वाला अभी तक देख और समझ नहीं पाया। 

इस तेज शिकारी चिड़िया की झलक दिखती रहती है। इनकी आवाज सुनता रहता हूँ। और अब रहस्य खुल गया है जन्माष्टमी पर अपने पर्यवेक्षण प्रयोगशाला में चीलों की बैठक और आसमान में सैकड़ों चीलों के दो दिन तक घूमते रहने का रहस्य।

चीलों की ये द्वारका में जन्माष्टमी पर हुई महत्वपूर्ण  बैठक में दिल्ली एन.सी.आर . के प्रधानों का आगमन हुआ था। द्वारका उपनगरी में अपने राजपाट का निरीक्षण करने के लिए हुआ था। उन्होंने अपने संसाधनो का आकलन किया था। द्वारका के  हरे भरे बढ़ते वृक्षदेवों की गिनती हुई थी। इन पर बसेरा लेने वाले छोटे बड़े पक्षियों का अन्दाजा लगाया गया था। 

और फिर निर्णय लिया गया। मध्यम और छोटे खग बढ़ गये हैं । इनका नियन्त्रण आवश्यक है। और चीलों ने अपनी राजशाही में शिकारा को बसाने का निर्णय लिया।

तो पिछले २२ वर्षों के अपने द्वारका उपनगरी में पिछले लगभग सवा महीने से जो हम स्थायी रूप से तेज-तीखी सिटी जैसी पुकार सुन रहे हैं। वह शिकारा अब हमारा पड़ोसी बन गया है।

पंजाबी का एक मुहावरा है चील के बच्चे मुंडेरों पर नहीं पलते लेकिन चीलों ने हरे भरे वन का हम मानवों द्वारा हनन होते देख हमारी मुंडेरों पर रहना सीख लिया है। जो चील दूर एकांत में घोंसला बनाते थे वह द्वारका उपनगरी में सोसाइटी के सागवान पर पलने लगे हैं। पश्चिम दिशा में हमारी सोसाइटी प्रांगण में सागवान के वयस्क पेड़ पर पिछले एक दशक से चीलों का घोंसला है। पहले एक घोंसला था जिसमें हमने पतझर के दिनों में माता-पिता चील को तीखी धूप में अपने दोनो डैने घंटो तक लगातार फैलाये रख अपने बच्चों को छाया देते हुए देखा है। सागवान पर एक भी पत्ता नहीं होता पर ये माँ बाप लगातार अपने डैनों को फैलाये रखते थे।

https://youtube.com/shorts/55dYjKM3A6Y?si=ULu2dL6FsnprcDAH

2024 में आज चीलों का घोंसला डुप्ले में बदल गया है। दो घोंसले एक साथ एक के ऊपर एक हैं। चील के बच्चे हमारी मुंडेर पर उड़ना सीख रहे हैं अब।

लेकिन 2002 में नयी-नयी जवानी पा रहे इस सागवान के पेड़ पर कौओं का एक जोड़ा रहता था। इसके घर पर 2012 में चील जोड़े ने कब्जा कर लिया। हमने चील और कौए की लड़ाई होती हुई अपने फ्लैट की खिड़की से कभी नहीं देखी या देखने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ। जो भी उचित समझें संवाद डाल लें  अपनी ओर से। बस एक दिन पता लगा कौये नहीं अब चील का एक जोड़ा हमारा पड़ोसी बनने के लिए यहाँ आ गया है। असल में  चील ने कब्जा कर लिया या कौओं ने अपना ये फ्लैट बेच दिया वही दोनों परिवार जाने। कौओं के छोटे बच्चों को पलते भी हमने कभी इस पर नहीं देखा था पर चीलों के कई बच्चे पिछले एक दशक से यहाँ पलते बढ़ते हमने देखा है।     

https://www.youtube.com/watch?v=72QwEmPd46E

इससे पहले 2009 में हमने दिल्ली की द्वारका उपनगरी के अपने आसमान में कुछ चीलों को उड़ते हुए देखा था। वर्ष  2011 में चीलों की एक बड़ी सभा हमारे सामने पूर्व दिशा के मैदान में आयोजित हुई थी। हमने दो तीन दिनों तक चीलों को इसमें बैठे हुए देखा था। अब इसका अर्थ अच्छी तरह समझते हैं। 

2002 में हमारे सामने पूर्व दिशा मे पेट्रोल पंप के पीछे मैदान के कोने में ऑस्ट्रेलियन कीकड़ के दो पेड़ थे। इस पर केवल उल्लू के एक दो जोड़े बसते थे। शाम का धुंधलका छाते ही, रात के राजाओं का इस पेड़ पर आपस में मिलना जुलना होता था। कई उल्लुओं की आवाज हम सुनते थे। सुबह सवेरे इस जाड़े में हमारे छोटे-छोटे बच्चे जब मुँह अंधेरे स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे होते तो  ब्रश करते हुए बॉलकोनी में आकर इन सब उल्लुओं की आवाज सुनते। हमसे कई सवाल पूछते और हम कहते कि हमारा गुड मार्निग इनकी  गुड नाइट के समान है। अब ये सोने जाने से पहले एक दूसरे को गुड डे कह रहे है।

हमारे दोनों बच्चे भी द्वारका में प्रशासन द्वारा लगाये गये हजारों पेड़ पौधे के साथ बड़े हो रहे हैं।हमारी सोसाइटी परिसर के दक्षिण में एक सुन्दर सा हरा भरा पार्क २००२ से है। अनेक नये पेड़ कालक्रम में लगे हैं। 

पूरब दिशा में पीपल उस समय नन्हा सा वृक्ष अपने आप उगा था। पीपल का पड़ोसी नीम भी खुद बस गया था। किशोर अशोक हमारे परिसर में और ये कीकड़ नीम पीपल बाहर अपने  जवान होने का सपना देख रहे थे। 

एक बूढ़ा पीपल बहुत दूर था । उस पर हमारे दद्दू तोता महाराज थे। जो कभी कभार आ जाते हम सबको जगाने। इनके अलावा बस दो -चार कबूतर हुआ करते थे चिड़ियों के नाम पर ।  बाद में इस मैदान में टिटहरी का एक जोड़ा आया जो अब हमारा स्थायी पड़ोसी है। इसके बच्चे यहाँ पल बढ़ कर अपना नया ठिकाना ढूंढ लेते हैं। 

द्वारका सेक्टर छः के मैदान में होते हैं सार्वजनिक आयोजन

धीरे-धीरे हमारे चारों तरफ जैसे जैसे पेड़ बढ़ रहे हैं, हरीतिमा सघन हो रही है वैसे-वैसे तरह के पक्षी भी बढ़ रहे हैं। कोयल और महालक के साथ कौए का साथ देने के लिए कई प्रजाति की चिड़िया आ गयी हैं। थोड़ी सी छोटी गिरोह के साथ चलने वाली बुलबुल और हमेशा जोड़े में ही रहने वाली छोटी बुलबुल भी हमारे पड़ोसी हैं। बचपन में बांसों की झुरमुट से सुनी हरे बसंते को अब पहचानता हूँ। पहले एक जोड़े से अब अनेक जोड़े सुबह सवेरे एक दूसरे को जगाते हैं। बड़ी बुलबुल और छोटी बुलबुल के बीच मैना की संख्या भी बहुत बढ़ गयी है।

हरे बसंते से भी छोटा हरे रंग का ही छोटी दुम वाली एक चिड़िया पहले अपने जोड़े में अकेली नजर आती थी। अब ये अनेक जोड़े हैं। इनसे भी छोटी बेहद तेज सिटी बजाती और लगातार भाग दौड़ करती काली रंग की चिड़िया भी बहुत हो गयी है।


जाहिर सी बात है जब छोटे आकार की चिड़िया कई हैं तो शासक चील परिवार ने शिकारे को परमिशन दे दी। आ जा भई, आ जा । तू भी अपनी दुनिया हमारे राज में भी बसा ले।      

 

     


     

बुधवार, 4 सितंबर 2024

जन्माष्टमी २०२४ पर २६ अगस्त को लंबे अरसे के बाद द्वारका के आसमान में अपने छत के ऊपर लगभग एक सौ के आसपास चील दिखे हैं

 जन्माष्टमी २०२४ पर २६ अगस्त को लंबे अरसे के बाद द्वारका के आसमान में अपने छत के ऊपर लगभग एक सौ के आसपास चील दिखे हैं।


इसे भी बाद में विकसित करना है।

ड्रीम द्वारका प्रगति रिपोर्ट २०२४

 ड्रीम द्वारका प्रगति रिपोर्ट २०२४ रखने के लिए कुछ नया नहीं है। आज ०४ सितम्बर है । व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए एक याद रखने वाला दिन। आज जिस सोसाइटी सबका घर में रहता हूँ उसमें मैनेजमेन्ट कमिटी चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने थे। लेकिन कुल मिलाकर मात्र तीन नामांकन हुए जिनमें सो दो नामांकन एक ही पद प्रेसीडेन्ट के लिए एक ही समूह के दो लोगों ने पर्चे भर जबकि वाइस प्रेसीडेन्ट के लिए एक व्यक्ति सामने आया। इन तीन के अलावा  किसी ने भी नामं किसी पद के लिए उम्मीदवारी नहीं जतायी।


एक दुखद अध्याय सबका घर के लिए जिसमें कोई भी मैनेजमेन्ट कमिटी के लिए सभी नौ पद हेतु उम्मीदवारों के नाम के साथ आने की हिम्मत नहीं दिखाई।


इसे फिर बाद में विकसित करूंगा। 

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

वर्ष 2023 में दिल्ली में अक्टूबर नवंबर में दमघोंटू वायु प्रदूषण, पराली जलाने, आतिशबाजी करने से इसके बढ़ने और घटाने में पीपल सहित अन्य वृक्ष वनस्पतियों का योगदान

 आज सत्रह नवंवर है जब मैं वर्ष 2023 में दिल्ली में अक्टूबर -नवंबर महीने में दमघोंटू वायु प्रदूषण लंबे समय के लिए घिरने में पराली जलाने, आतिशबाजी, जीवाश्म ईँधन और अन्य कारकों करने से इसके बढ़ने और पीपल सहित अन्य वृक्ष, वनस्पतियों द्वारा इसे घटाने में योगदान के बारे में कुछ तथ्य रख रहा हूँ।

दीवाली २०२३ पर प्रदूषण अपेक्षाकृत कम फैला है

 आज १३ नवंबर २०२३ है और मेरे नजरों के सामने है खुला आसमान जिसमें दोपहर डेढ़ बजे के आसपास स्मॉग हल्का सा है। हवा साफ नहीं है। मेरे पास प्रदूषण का स्तर या कहें कि हवा की शुद्धता का स्तर जाँचने की मशीन या कोई उपाय नहीं है।प्रदूषण है लेकिन अपेक्षाकृत कम है। दमघोंटू जहर आसमान में छाया हुआ नहीं है।

वर्ष २०१६ से प्रत्येक वर्ष वायुप्रवाह का एक पैटर्न आश्विन और कार्तक महीने में अनुभव कर रहा हूँ मैं। २०१६ में नोटबंदी के दिन से प्रदूषण की स्थिति गंभीर होनी शुरु हुई थी  और आज तक प्रत्येक वर्ष अक्टूबर महीने के अन्तिम सप्ताह से लेकर दिसंबर के पहले स्पताह तक वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर रहती है।


१३ नवंबर को उपरोक्त विचार लिखे गए थे और इसे प्रकाशित आज  किया गया है।

आज १७ नवंबर है जब मैं इसे प्रकाशित करने के लिए अंतिम रूप दे रहा हूँ । उचित है कि स्वतंत्र रूप में यहाँ से आगे की बात अलग पोस्ट में दर्ज करूं।  



शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

छोटी दीवाली 2023 पर ड्रीम द्वारका मिशन प्रगति रिपोर्ट



 तो 

कहना बस इतना है 

कि 

सपने मरे नहीं हैं 

बीज अभी भी सुप्तावस्था से निकलकर अंकुरित होकर पौधा बन पल्लवित पुष्पित नहीं बना है। बीज जिन्दा है।

इस बीच क्या हुआ है वह आज छोटी दीपावली पर रखना उचित लग रहा है। मैं अक्सर शुभ दिन और मुहुर्त की प्रतीक्षा करता हूँ। यह जीवन प्रतीक्षा में ही निकल नहीं जाए यह चिन्ता भी लगी रहती है पर ड्रीम द्वारका के लिए जो कुछ हो सका है वह रखना अच्छा लग रहा है।

लगभग छह वर्ष पहले (2016-2017) मैंने आँवले के कुछ बीज अपनी छोटी सी बालकनी में प्लास्टिक के छोटे से कप में उगाने के लिए रखे थे। कुछ अंकुरित हुए। इनमें से दो उचित जगह पर लगाए गये। एक हमारी शक्ति स्वरूपा जीवन संगिनी अंशु जी ने अपने कार्यस्थल दक्षिण पश्चिम दिल्ली के ककरौला गाँव स्थित प्राथमिक विद्यालय परिसर में लगाए और एक पौधा उनकी ही सहयोगिनी महिला कर्मी अपने घर के निकट के मन्दिर के लिए माँग ले गयी थी। इन दोनो पौधों ने इस वर्ष फल देना शुरु कर दिया है।

ध्यातव्य हो कि वर्ष 2015 में अक्षय नवमी तिथि के आसपास  भारत वर्ष की सांस्कृतिक, शैक्षिक और धार्मिक राजधानी काशी नगरी में हमने ड्रीम द्वारका परियोजना का सपना संजोया था । महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इंजीनयरिंग संस्थान के अतिथि आवास में भोलेनाथ की नगरी माँ काशी के आँचल तले ड्रीम द्वारका मिशन का सपना देखा गया था।  और वापस दिल्ली लौटकर औपचारिक रूप से इसकी घोषणा इस मंच पर कर दी गई थी।

और आज दो ही सही आंवला के पौधे फल देना आरम्भ कर हमारे सपने को जिन्दा रखे हुए हैं।      


रविवार, 11 जून 2023

डिजिटल मंच पर पावन का प्रवेश

पावन एक एप आधारित तन्त्र है जिसका उद्देश्य अपने नाम की तरह ही लोगों के जीवन को पावन तरीके से सुखमय बनाना है। कुछ युवा उद्यमियों द्वारा स्थापित यह एप जीवन से जुड़े विविध पक्षों पर लोगों को सकारात्मक जानकारी देता है। इस पर रखे गए अधिकांश तथ्य मुझे वास्तविक जीवन से जुड़े लगे हैं। 

प्रत्येक जीव और विशेष रूप से हम सभी मानवों का लक्ष्य स्वस्थ तन और प्रसन्न मन पाना है। इन दो लक्ष्यों को पाने के क्रम में ही सृष्टि और जगत के लगभग सभी अन्य लक्ष्य आ जाते हैं।   

हमारी समस्या सबसे बड़ी यही है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक चेतना का विकास होने के बाद से ही तन को सदैव इच्छानुसार स्वस्थ और मन को हर स्थिति में प्रसन्न रखना अधिकाँश लोगों के लिए संभव नहीं होता।

मेरी मातृभाषा मैथिली में एक कहावत है  

राजा दुखी प्रजा दुखी जोगी के दुख दुन्ना ।

आशय राजा और प्रजा दोनों दुखी हैं और जोगी जो घर परिवार के झँझट से मुक्त हो चुका कब का उसका दुख दूना है। समकाल के जोगियों को देखकर अक्सर मुझे जबर्दस्त हँसी आती है।

ठीक कबीर की तरह जो कहते हैं पानी बीच मीन पिआसी , सुन-सुन मोहे आवत हाँसी। यानि मछली पानी में है और प्यास से मरी जा रही है जिसे देखकर मुझे हँसी आ रही।

बात बिल्कुल ठीक है। हम आप सभी में से अधिकांश इसी मछली की तरह हैं जो अपनी अतृप्त प्यास के लिए भटकने को अभिशप्त है।  

पावन पर उपलब्ध सामग्रियों को देखकर लगा कि ऐसे अतृप्त लोगों के लिए, वास्तविक पीड़ा भोग  रहे लोगों के लिए पावन एक अच्छा विकल्प बन सकता है। डिजिटल मंच पर पावन का प्रवेश एक नजर में मुझे सुखद लगा है। अभी हाल ही में मुझे इस एप के बारे में जानकारी मिली। और जानकारी के लिए आप भी एप डाउनलोड कर सकते हैं।