बुधवार, 25 नवंबर 2015

वर्ष 2015 कार्तिक पूर्णिमा 25 नवंबर पर ड्रीम द्वारका का घोषणा पत्र ( १)


२५ नवंबर २०१५, द्वारका , नई दिल्ली ११००७५

सनातन भारतीय परंपरा और विश्वास के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर काल क्रम में अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं हुई हैं । तीन घटनाएँ उल्लेखनीय हैं । पहला जगत पालक विष्णु का  मत्स्यावतार, जगत संहारक शिव द्वारा असुर त्रिपुर का वध और तीसरी घटना सिक्ख धर्म के आदिगुरु नानक देव जी का अवतरण दिवस। 

इन तीन घटनाओं के अलावा भी अनेक घटनाएँ महत्वपूर्ण रूप से इस तिथि से जुड़ी हुई हैं। 

लेकिन काल के फलक पर खचित होती हैं केवल अति महत्वपूर्ण घटनाएं और स्मृति रूप में रह जाती हैं अनेक परंपराएं जो चलन में तो बनी रहती हैं , हमारे आंखों के सामने घटित हो रही होती हैं लेकिन हम देखते हुए भी उनके महत्व को समझ नहीं पाते  । 

इन्हीं परंपराओं में से एक है नदियों , सरोवरों, सागरों में स्नान , विशेष रूप से सागरतटीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों द्वारा सागर जल में नौका छोड़े जाने का महत्व, प्रासंगिकता, उपयोगिता और इन्हें क्यों अभी तक ढो रहे हैं लोग,, 

 इसे ढूंढ निकालने की आवश्यकता के साथ 

देव दीपावली  का अति सीमित गिने चुने स्थानों पर अभी भी  चलन...

इन सभी पर अपने विचार रखने की आवश्यकता है। लेकिन अभी इन पंक्तियों को आपके साथ साझा करते समय अपराह्न के एक बजकर ३० मिनट हो रहे हैं और अभी से लगभग डेढ़ घंटे के बाद भोलेनाथ की नगरी काशी के लिए प्रस्थान करना है। इसलिए इस प्रसंग पर आगे आने वाले दिनों में चर्चा की जाएगी।

आज ड्रीम द्वारका परियोजना के घोषणा पत्र का प्रथम चरण जारी हो रहा है। 

२२ नवंबर के पोस्ट को दोबारा पढ़ते हुए हमने देखा है कि कुछ प्रूफ संबंधी त्रुटियां रह गयी हैं।  कुछ स्थानों पर शब्दों के कट पेस्ट में कमी के कारण , विचार भी, बहुत साफ नहीं रह पाए हैं । इन्हीं कमियों के साथ आज का पोस्ट भी जारी हो रहा है

इस विश्वास के साथ कि हमसे जुड़ने वाले लोग हमारी कमियों को माफ करेंगे , 

हमारे उद्देश्यों की नैतिकता को समझेंगे और हमारे प्रयासों में साथ होंगे।


१ ......जल प्रलय का उल्लेख दुनिया की अधिकांश सभ्यताओं में देश, काल और पात्र  के नाम में फेरबदल के साथ मौजूद है। यह स्मृति है उस महाप्रलय की जिसके बाद सीमित संख्या में मानव बचे थे। 


एक बार फिर  जल प्रलय जैसी स्थितियां बन रही हैं। कुछ समझदार लोग इस रोकने या अधिक से अधिक समय तक टालने के लिए प्रयास भी कर रहे हैं लेकिन उनका प्रयास नाकाफी है
 
इस दिशा में सघन प्रयास की जरूरत है। 

२......   समकाल में काल को देखने की क्षमता रखने वाले लोग अति सीमित हैं । इन लोगों की कोई दिलचस्पी वर्तमान संकटों को टालने पर है या नहीं,  यह समझना कठिन है। ऐसे में काल अपनी गति से चल रहा है और हम आप इसके अच्छे बुरे परिणामों को प्राप्त करने के लिए विवश हैं।

३........फिलहाल धरती के सभी जीवों में से केवल एक जाति,  मानव अपने आप को विकसित होता मान रहा है ।  भयानक गति से धरती पर मानव की संख्या बढ़ रही है ।  

अन्य जीवों,  जातियों का ह्रास हो रहा है। संख्या घट रही है। लोप हो रहा है। 

४..... धरती के लिए यह स्थिति पहली बार नहीं है। ऐसा पहले कई बार हो चुका है जब किसी एक जाति की संख्या इतनी अधिक बढ़ गयी कि अन्य जातियों के लिए संकट उत्पन्न हो  गया तो जगत के संचालन कर्ता ने उस जाति की उपयोगिता आवश्यकता और प्रासंगिकता देखते हुए उसके आकार , संख्या में कमी कर दी । 

५......एक समय जिनकी संख्या सबसे अधिक थी उनमें से कुछ जातियां पूरी तरह विलुप्त भी कर दी गईं । आज केवल उनकी अस्थियां , जीवाश्म के रूप में बची हैं । कुछ का जीवाश्म और कोई अन्य प्रमाण भी नहीं है।  

 यह अतीत यानि इतिहास है । 

भविष्य क्या होगा त्रिकालदर्शी ही कह सकते हैं। 

 मैं त्रिकालदर्शी नहीं हूं । 

६....त्रिकालदर्शी नहीं होते हुए भी काल देखने की जो क्षमता इस तन और मन की है उसका आकलन करते हुए ड्रीम द्वारका के प्रथम द्रष्टा के रूप में मैं यह संकल्प लेता हूं कि अपनी द्वारका नगरी में जीवों की संख्या और जाति विविधता के लिए प्राणपन से प्रयास करूंगा।  

७...भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिणी पश्चिमी में विकसित हो रही द्वारका सब सिटी इस संकल्प का प्रथम चरण है । 

८.....द्वारका सुनियोजित वासस्थल और शिक्षा स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। एक बड़े वास स्थल और शिक्षा स्थल की आवश्यकताओं के अनुकूल आवश्यकतानुसार वाणिज्यिक केन्द्र भी यहां विकसित हो रहे हैं। 

१०......इन सबके बीच तालमेल से सबसिटी द्वारका में मानव जाति सहित अन्य जीवों की विभिन्न जातियों और उपजातियों  के संरक्षण और विकास  का सफल प्रयोग हो सकता है। 

११......इस दिशा में मेरा तन और मन उपलब्ध संसाधनों के साथ पारिजात संचेतना मंडल के तत्वाधान में अन्य लोगों, संगठनों , संस्थानों को इस प्रयास में जोड़ेगा। 

१२......मत्स्यावतार अपने समय में धरती पर विराजमान जीवों को जल प्रलय से बचाने के लिए हुआ था ......

१३.......हम सभी उसी जगत पालक विष्णु के अंश हैं..........

१४ ....... ड्रीम द्वारका परियोजना हमारे समय  के प्रलय से बचाने में सहायक हो........

इस धरती पर उपलब्ध सभी जीव, सभी आस्था , परंपरा और विश्वास के लोग हमारे साथ मिल कर चलें। 

हम अपनी द्वारका को सबके वास योग्य बनाने में समर्थ हों.........

( ..........जारी.......)  

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

ड्रीम द्वारका परियोजना का लोकार्पण

वर्ष 2015 में 20 नवंबर को आज  कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को  अक्षय नवमी  के अवसर पर पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट की ओर से एक नई परियोजना की शुरुआत हो रही है।

ड्रीम द्वारका परियोजना क्या है

यह परियोजना ड्रीम द्वारका के नाम से जानी जाएगी।

इस परियोजना के लिए आज एक  ब्लाग लोकार्पित हो रहा है।  यह ब्लाग ड्रीम द्वारका के नाम से जाना जाएगा।

सनातन भारतीय परंपरा के अनुसार  द्वापर युग में भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के नाम से प्रसिद्ध थी। वर्तमान में इसके अवशेष समुद्र में डूबे बताए जाते हैं।

समकाल में  भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिण पश्चिम हिस्से में द्वारक सब सिटी है। यह भारत के सबसे सुनियोजित उपनगर के रूप में प्रख्यात है।

द्वारका में साफ सुथरी चौड़ी सड़कें, निश्चित अनुपात में बंटे सेक्टर,  भव्य सोसाइटी फ्लैट्स और डीडीए के फ्लैट्स के चारों ओर बाग बगीचे और हरियाली है। रिहायशी ठिकाने और एजुकेशन के हब के रूप में यह सबसिटी विकसित हो रही है।

इस सबसिटी को हर किसी के सपने के अनुरूप बनाने के लिए ड्रीम द्वारका परियोजना अक्षय नवमी तिथि को शुरु की जा रही है।

पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट की ओर से यह परियोजना इस उद्देश्य के साथ शुरु की जा रही है कि ड्रीम द्वारका के माध्यम से इससे जुड़ने वाले हर व्यक्ति का सपना साकार हो सके। 

 पारिजात है स्वर्ग लोक का दुर्लभ फूल

सनातन भारतीय परंपरा के अनुसार पारिजात एक फूल का नाम है। इसकी खुशबू अलौकिक मानी जाती है।


भगवान कृष्ण काल से संबंधित एक लोककथा के अनुसार एक बार देव मुनि नारद स्वर्ग लोक से कृष्ण से मिलने आए। उनके गले में पारिजात फूलों की माला थी। इस माला की सुंदरता और खुशबू दोनों से श्रीकृष्ण की रानियों के मन में यह इच्छा आयी कि ऐसा पौधा  उनके बगीचे में हो ताकि वे भी ऐसे फूल की माला पहन सकें और इसकी खुशबू का आनंद ले सकें।

उन्होंने अपनी इच्छा जतायी और नारदजी से कहा कि हमें भी यह पौधा चाहिए।

नारद जी मुस्कराए। वही मुस्कान जो हम आप उस समय मुस्कुराते हैं जब किसी का दिल जलाना होता है ।

........ ना भैया ना ये तेरे बस की बात नहीं.........

नारदजी ने कहा यह पारिजात पुष्प है। यह स्वर्गलोक के राजा इन्द्र के राजउद्यान में ही उगता है । मृत्यलोक की बात तो छोड़ो देवियों , यह फूल देव राज के अलावा किसी अन्य देवताओं के उद्यान में भी नहीं उगाया जा सकता। इसके उगाने पर पाबंदी है जिसे यह फूल चाहिए वह देवराज से याचना करता है और फूल ले जा सकता है अन्यथा जब देवराज किसी पर प्रसन्न होते हैं , उन्हें उपहार स्वरूप यह माला देते हैं ।

आपको माला चाहिए तो मेरी माला ले लो लेकिन इसके पौधे की कामना  मत करो। यह आपके उद्यान में नहीं आ सकता।
बेचारी रानियों का मन छोटा हो गया।

नारदजी तो किशन कन्हैया से मिल मिलाकर चले गए लेकिन जो आग उन्होंने रानियों के दिल में जला डाली उसकी अगन ने किशन कन्हैया को झुलसा डाला।

कौन पति होगा जो पत्नी के तानों से त्रस्त नहीं होता और कौन पति होगा जिसे अपनी रूठी हुई प्रिया का मुख देखान सुखद लगे। 

कृष्ण जी ने इन्द्र देव से कहा कि यह पारिजात पुष्प का पौधा हमें अपने उद्यान के लिए चाहिए। इन्द्रदेव ने कहा कि फूल तो मैं भिजवा सकता हूं लेकिन पौधा नहीं मिल सकता क्योंकि यह स्वर्ग लोक से मृत्यु भुवन नहीं जा सकता। जिस तरह देव लोक के देवता स्वर्ग से मृत्युलोक जा आ सकते हैं वैसे ही यहां का सामान भी भेजा जा सकता है लेकिन धरती पर स्थिर रूप से ना तो देव रह सकते हैं और ना ही देवलोक के पौधे।

आखिर कार इस मुद्दे पर देवलोक के राजा इन्द्र और श्रीकृष्ण के बीच लड़ाई हुई और इन्द्र पराजित हो गए और उन्हें यह पौधा मृत्युलोक भेजना पड़ा।

कहते हैं पारिजात का वृक्ष इस शर्त के साथ धरती पर आया कि मैं कृष्णजी के काल तक तो धरती पर रहूंगा और उसके बाद लुप्त हो जाउंगा क्योंकि मेरी भी अपनी मर्यादा है। 

कृष्णजी ने कहा युद्ध में पराजितों के शर्त नहीं स्वीकार किए जाते । तुम्हें धरती पर ही रहना होगा।

पारिजात फूल ने कहा आपकी बात ठीक है लेकिन पराजित इन्द्र हुए हैं मैं नहीं । मैं भी जीव हूं । ईश्वर का अंश हूं और अपने फैसले का अधिकार मेरे कर्मफल पर निर्भर है। यदि मैं अपने कर्मफल को लेकर सत्य में स्थिर हूं और  अपने प्राण विसर्जित कर दूं  तो क्या मुझे जबर्दस्ती आप रोक सकते हैं ।

कृष्ण के पास इसका उत्तर नहीं था। उन्होंने व्यवस्था दी सत्य में पूर्ण स्थिर किसी जीव के कर्मफल उसी पर निर्भर हैं इसलिए तुम्हारे अधिकार को कोई छीन नहीं सकता। 

पारिजात ने मुस्कराते हुए कहा प्रभु मैं आपकी शरण में हूं आपने इन्द्र के साथ मुझे भी प्राप्त कर लिया । आपके प्रस्थान के बाद मैं धरती से लुप्त हो जाउंगा । लेकिन जो आपके समान पराक्रमी होगा और मुझे प्राप्त करने के लिए यत्न करेगा तो मैं उसके उद्यान में आ जाउंगा।


इस तरह पारिजात का फूल आज भी धरती पर है ऐसा कहा जाता है। 

हम यह मानते हैं कि स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र को पराजित करने का सामर्थ्य मृत्युलोक में जन्मे कृष्ण में था। वे जिस तरह पारिजात को अपने उद्यान में ले आए उसी तरह उसी कृष्ण के अंश स्वरूप हम और आप कोई भी जीव अपने इच्छित परिणाम को अपने परिश्रम से प्राप्त कर सकते हैं।

पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट क्या है

पारिजात संचेतना मंडल ट्रस्ट लगभग पांच वर्ष पुरानी गैर लाभकारी संस्था है जो यह मानती है कि हम और आप मिल कर अपने परिवेश को और बेहतर बना सकते हैं।

हमारे पास जो उपलब्ध ज्ञान है उसे एक दूसरे के साथ बांटने का संकल्प लें तो जीवन में सफलता के उच्चतम शिखर तक सकते हैं। 

ड्रीम द्वारका परियोजना अक्षय नवमी के अवसर पर इसी संकल्प के साथ शुरु हो रही है कि हम अपने परिवेश और अपने जीवन को बेहतर बनाएंगे।

अपनी अपनी द्वारका नगरी को बेहतर बनाएंगे।

पहले चरण में यह परियोजना द्वारका सबसिटी में आज से शुरु हो रही है। अगले अक्षय नवमी पर हम अपने काम काज के मूल्यांकन के साथ द्वारका के बाहर विस्तार पर भी ध्यान केन्द्रित करेंगे।

आइए हम मिल कर चलें।