सोमवार, 27 मार्च 2017

चैत्र सोमवती अमावस्या वर्ष २०१७ का ऐलान, रामनवमी पांच अप्रैल से मुस्कान मेल सेवा पुनः शुरु

आज २७ मार्च सोमवार, चैत्र माह की सोमवती अमावस्या है। वर्ष २०१७ है । संवत और तिथियों का ध्यान मैं रखता नहीं। तिथियों को लेकर पंचांग नियंताओं के बीच इतना विवाद है कि किस तिथि  को बिल्कुल ठीक ठीक क्या होना है इसे लेकर मठाधीश लठम लट्ठ करते रहते हैं। और अपनी दिलचस्पी लट्ठ में अब रही नहीं।
ऐसे में मुस्कान मेल का स्थगन हमने लट्ठ की वजह से नहीं किया था । ये तो स्वांतःसुखाय हुआ था। बेशक कारण हमने तात्कालिक परिस्थितियों जीवन के कृष्ण पक्ष को दिया ।

पर क्या वाकई

जब मुस्कान सच्ची वाली मिल जाये एक बार तो फिर ये जाती है क्या 
परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल 
खिलती नहीं रहती है अपने आप हर पल

ऐसे में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का प्रश्न  उठना चाहिये था क्या
मुस्कान को लेकर कोई संशय  रहे 
तो 
फिर यह मुस्कान  
सच्ची वाली है क्या 

मुस्कान मेल स्थगन की सूचना देते हुए
हमने कहा था
कि
जीवन के कृष्ण पक्ष में मुस्कान मेल अल्पकालिक विराम ले रहा है ।

यहां ये सवाल प्रासंगिक बनता है कि क्या जीवन का कृष्ण पक्ष समाप्त हो गया

नितांत वैयक्तिक सवाल है अपने आप से।

जब कभी आप इसे पढ़ें
और
आप की मानसिकता भी
जीवन के कृष्णपक्ष जैसी हो तो अपने आप से सवाल पूछ सकते हैं।

यहां इस कालम में मैं यानि मनोज पाठक बिना किसी राग द्वेष हानि लाभ यश अपयश की चिन्ता किये बिना अपनी अंतरात्मा और विवेक को साक्षी रख कर सत्यनिष्ठा के साथ अपने अनुभव और तथ्य रखता हूँ। इनका उद्देश्य रहता है समान परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति को इन अनुभवों का लाभ हो। 

लाभ नहीं हो तो नुकसान किसी हालत में भी किसी को नहीं हो।

जो इन अनुभवों को सत्य मानकर
स्वयं आगे बढ़े
प्रयोग करे
उसे पूर्ण लाभ हो
और
उसका विश्वास
उस एक मालिक पर दृढ़ हो
जो हम सबका नियंता है।

अखिल ब्रह्मांड का नियंता।।



कौन है अखिल ब्रहांड का नियंता
कौन जाने
जितना हमने जाना, समझा अपने पंच इन्द्रियों के माध्यम से
और पांच इंद्रियों से परे
समझने के लिए जो हो सकता है
उसे
एक ही पाया है।


ऐसे में
मेरे अपने वैयक्तिक जीवन का कृष्णपक्ष और शुक्ल पक्ष क्या मायने रखता है


दरअसल काल का पहिया किस गति से कब स्वयं के चक्र को चलायेगा यह हम कहां समझ पाते हैं।

विगत कुछ समय से काल का ये पहिया आड़ा तिरछा, उल्टा सीधा धीमी तेज कुछ इस गति से चलायमान है कि इसकी रफ्तार समझ पाना कठिन साबित हो गया।

ये काल का पहिया कभी थमता तो है नहीं
ऐसे में इसकी गति और इसकी चाल दोनों को समझना दुरूह

इसका मतलब ये नहीं कि मुस्कान खो गयी है।

मुस्कान है तो खिली हुई 
हर पल मुस्कुराती  
वही शिशु वाली मुस्कान

कभी खिलखिलाती
इतराती,बलखाती  कभी
इठलाती सी मुस्कान

लेकिन
इस खिली मुस्कान को
अलग अलग अंदाज में समेट कर फैलाना अलग अलग लोगों , समूहों के साथ बांटना
एक ही अवधि में कठिन हो गया


समय के वही चौबीस घंटे
सबके पास
इस चौबीस घंटे में जितना निवेश समाज के नाम किया जा सकता है
वह हमने किया


विलासिता को सीमित करना, आवश्यकता की पूर्ति करना 
और 
अनिवार्य का पालन हर हाल में करना

मुस्कान सतत खिलाये रखने का सरल सा सूत्र है।

हमने इस सूत्र को समझा है। 

इसी सूत्र में आपको बांधा है।

इसीलिये कह रहा हूं
आपसे
सिर्फ आपसे
कि
मुस्कान मेल
जो 23 फरवरी से स्थगित है 

वही मुस्कान मेल 
राम नवमी यानि ५ अप्रैल २०१७ से फिर शुरु करने की इच्छा है।

देखिये वर्ष दो हजार सोलह में जानकी नवमी यानि पंद्रह अप्रैल से मुस्कान मेल की  यात्रा शुरु हुई है।
बीच बीच में स्थगित हुई अब फिर रामनवमी से शुरु होगी।

दरअसल नौ फरवरी दो हजार सत्रह से १३ अप्रैल १७ के बीच अयोध्या से रामेश्वरम के बीच मौजूद रामजी के वनगमन से संबंधित तीर्थों के बारे में एक जनजागरुकता अभियान शुरु हुआ। श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के तत्वावधान में यह यात्रा आयोजित हुई। मैं इन तीर्थों को एक सूत्र में पिरोने वाले डॉ रामअवतार शर्मा को विगत एक डेढ़ दशक से जानता हूं। पिछले चालीस वर्षों से वे लगातार इन तीर्थों को एक सूत्र में पिरोने के लिए संकल्पित हैं। 

रामजी हुए या नहीं हम अंतहीन बहस कर सकते हैं पर वाल्मीकि हमारे इतिहास पुरुष हैं इससे इन्कार नहीं कर सकते। कालिदास और तुलसी दास हमारे इतिहास पुरुष हैं इससे मना नहीं कर सकते ।

यदि वाल्मीकि, कालिदास और तुलसीदास जिन स्थलों को रामजी के तीर्थ मानते हैं उन्हें यदि हम अपना तीर्थ नहीं स्वीकार करें तो अपने अस्तित्व के प्रति संदेह करना होगा। 

रामजी की यात्रा नदियों और सरोवरों के  पावन जल में स्नान करते हुए आगे बढ़ी इनके जल को पेयजल के रूप में इस्तेमाल करते हुए हुई।
यदि इक्कीसवीं सदी में हमारी गंगा मैली और यमुना जहरीली हो गयी है तो इसका पाप धोने के लिए हमें ही आगे आना होगा।

मुस्कान मेल ने
अपने इसी दायित्व बोध के अंतर्गत
जब काल का पहिया अनियंत्रित गति और दुरुह चाल का पाया तो खुद को विराम देना उचित समझा।

मुस्कान मेल जिस मंच पर शुरु हुआ उस मंच पर धर्म और धार्मिक गतिविधियों के प्रति अपने दर्शन हैं, अनुशासन हैं उस अनुशासन का सम्मान करते हुए 

जब जीवन के कृष्ण पक्ष में काल की वक्र गति और अनियंत्रित चाबुक का प्रहार हुआ तो 
मुस्कान को राम के नाम समर्पित कर दिया।

राम और मुस्कान एकरूप हो गये। रामजी की वन संबंधी गाथा और लीलाभूमि के साथ मुस्कान मेल संदेश का एकीकरण कर दैनिक प्रातः समाज सेवा चलती रही।

अब रामजी की लीला कहिये
उनकी कृपा कहिये
हम अपनी सांस को तो छोड़ दे सकते हैं
पर 
रामजी को नहीं छोड़ सकते। 

रामजी की कृपा से श्री राम नवमी पांच अप्रैल २०१७ से मुस्कान मेल अपनी प्रातःसेवा सभी मंचों पर शुरु करे ऐसी कामना है।

आज सोमवती अमावस्या है। कल या परसों से अपने गोत्र, कुल और वंश परंपरा के अनुसार लोग चैत्र नवरात्रि पर्व मनायेंगे।

हम भी अपनी इच्छानुसार अपने परंपरानुसार व्रत करते हैं। पूजन भी करते हैं। और संकल्प भी लेते हैं।

मुस्कान मेल की दैनिक धारा फिर प्रवाहित होगी।

पांच अप्रैल
मुस्कुरायें हम 
बार बार
साथ साथ
मुस्कान मेल की यात्रा फिर शुरु 
बहुत जल्द
रामनवमी दो हजार सत्रह
मुस्कुराइये ना