सोमवार, 7 मार्च 2016

महाशिवरात्रि पर्व एक खोज अपने अाप की

आज सोमवार है। वर्ष 2016 का  महाशिवरात्रि पर्व भी आज है।

सोमवार को इस पर्व की तिथि लगभग 12 वर्षों के अंतराल पर आती है। इस तरह आज जैसा योग फिर 12 वर्षों के बाद ही आएगा।

ड्रीम द्वारका योजना के साथ इस तिथि का संयोग क्या अर्थ रखता है ?

दरअसल मैं या हम में से हर वह व्यक्ति अपने अन्तरमन की  खोज की  यात्राएं करता है जो अपने समय की चुनौतियों से टकराता है , इनके समाधान का रास्ता ढूंढने की कोशिश करता है। इन खोज यात्राओं में क्या पाया क्या खोया इसकी छानबीन करता है और छानबीन के नतीजे पर पहुंच कर उनका लाभ वृहत समाज तक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है।

ड्रीम द्वारका धर्म के विज्ञान पर मेरी खोजयात्रा का एक पड़ाव है। जो कुछ अब तक धर्म के माध्यम से समझ पाया हूं उसे वृहत समाज के साथ बांटने का प्रयास है। ड्रीम द्वारका योजना के साथ इस तिथि का संयोग अनायास नहीं है बल्कि एक सोची समझी योजना का वह खंड है जिसे अनेक वर्षों में व्रत के अपने तन और मन के साथ प्रयोगों के माध्यम से मैंने प्राप्त किया है।

व्रत लंबे समय से करता आ रहा हूं। बचपन में भी व्रत खुद भी किए और अपने परिजनों तथा परिचितों को व्रत करते देखा। वर्ष 2007 में अगस्त महीने की पूर्णिमा तिथि से सोच विचार के बाद एक बार फिर से नए सिरे से व्रत करने का फैसला हुआ था।

दरअसल ज़ी टीवी ग्रुप के जागरण समूह के लिए व्रत और त्यौहार नाम से एक साप्ताहिक कार्यक्रम की योजना बनी और मुझे यह कार्यक्रम तैयार करने का अवसर मिला।

ऐसे विषय पर मैं बिना अपने व्यक्तिगत अनुभव के कार्यक्रम नहीं बनाना चाहता था इसलिए मैं वर्ष 2007 के अगस्त महीने में पूर्णिमा तिथि से व्रत करने तथा नियमित योग अभ्यास करने के संकल्प के साथ एक शुरुआत हुई। अब तक यह संकल्प जारी है ।

व्रत और योगअभ्यास अब मेरे जीवन के अंग है और दैनिक अभ्यास निरंतर चल रहा है।

व्रत के साथ अपने प्रयोगों के अंतर्गत  विगत वर्ष 2015 में नवंबर महीने में कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानि दीवाली के बाद आने वाले छठ व्रत को मैंने किया। हालांकि छठ के साथ जुड़े अन्य अंगों जैसे जल में खड़े होकर अर्घ्य देना और प्रसाद चढ़ाना और बांटना मेरे व्रत के साथ नहीं जुड़ा था।

मैंने छठ का व्रत रखा इसका तात्पर्य यह है कि लगभग चार दिवसीय इस व्रत के शुद्ध व्रत पक्ष को जानने समझने की कोशिश मैंने की।

व्रत के पहले चरण में नहा खा यानि स्नान के साथ व्रत का संकल्प, इसके दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन पूर्ण निराहार . जलाहार और इसके अगले दिन प्रातः कालीन उदय हो रहे सूर्य को जलांजलि के साथ व्रत संपन्न किया।    
इसमें ध्यान देने की बात यह है कि मैंने तय किया था कि इस वर्ष जब मैं दिल्ली के द्वारका स्थित सेक्टर 11 स्पोर्ट्स कंप्लेक्स के नजदीक स्थित  छठ घाट पर खड़ा होकर व्रत की समाप्ति पर किसी से प्रसाद नहीं मांगूगा।यह मेरी मनोकामना थी कि मुझे प्रसाद कोई व्यक्ति स्वयं बुला कर दे।

ऐसा ही हुआ । एक नहीं बल्कि दो व्रतियों ने मुझे बुलाकर प्रसाद दिया।

व्रत के साथ मेरे यह प्रयोग पहली बार नहीं थे। इससे पहले भी पराशक्ति के साथ संपर्क साधने की कोशिश और मां प्रकृति के साथ मेरे प्रयोग कई स्तरों पर कई बार हुए और इनमें से अधिकांश में सकारात्मक परिणाम मेरे संकल्पों के अनुसार प्राप्त हुए हैं।

 छठ व्रत के साथ मेरे प्रयोग दरअसल अपने आपकी क्षमताओं को आंकना था कि  व्रत के स्तर पर मेरा तन कितना तैयार है और एक कठिन समझे जाने वाले व्रत को किस रूप में कर पाता है।

मैं अपने तन और मन दोनों की कसौटी पर छठ व्रत में खरा उतरा।

अब महाशिवरात्रि व्रत पर आता हूं।

शिव को अनादि और अनंत माना गया है। कैलाश पर्वत इनका घर माना गया है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा अत्यंत पावन मानी गयी है। आज यानि महाशिवरात्रि तिथि  शिव और पार्वती  की विवाह तिथि है।

आज यह सवाल प्रासंगिक है कि क्या इस तिथि को आज भी विवाह आयोजित करने की परंपरा है ?

क्या श्री राम और सीताजी की विवाह तिथि के अनुरूप इस तिथि को भी क्यों भारतीय जनामनस में विवाह करने के लिए शुभ तिथि नहीं नहीं मानी जाती ?

इस ब्लॉग को पढने वाला कोई भी व्यक्ति इस बारे में मुझे जानकारी दे पाए तो मुझे खुशी होगी।

बहरहाल आज महाशिवरात्रि है और मैंने व्रत रखा हुआ है।

कुछ चित्र मैंने इस ब्लॉग में विभिन्न श्रोतों से लेकर लगाए हैं।

ये चित्र बस यह दिखाने के लिए यहां लगाए जा रहे हैं कि समकाली मानवीय वैज्ञानिक सोच की जो सबसे अधिक उन्नत होने की कल्पना है वह कितनी सतही और अधूरी है।

कैलाश पर्वत के शिखर पर महादेव का आवास माना गया है और आज से बहुत पहले लगभग 1957 में प्रकाशित ग्रंथों में कैलाश के बारे में कहा गया है कि यह अनेक कमल आकार, स्वस्तिक आकार तथा ओम आकार के चक्र से बना हुआ शिखर है जिसके सबसे ऊपर महादेव का आवास है।

गुगल अर्थ से आज भी यदि हम माउंट कैलाश को लोकेट करें तो सुदूर आकाश   से माउंट कैलाश पर्वत एक बड़े से ओम आकार के बीच में बैठा मिलेगा. अनेक स्वस्तिक आकार भी ढूंढे जा सकते हैं और कमल चक्र भी दिख सकते हैं।

इसके अलावा उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के पास ओम पर्वत के नाम से विख्यात चोटी भी है जिसके ऊपर बर्फ से ओम का निर्माण देखा जा सकता है। इसे आदि कैलाश कहा जाता है।

संभवतः आदि कैलाश महादेव का पहला घर है और वर्तमान कैलाश बाद का सुव्यवस्थित घर है।

  
इन दोनों पर फिर कभी विस्तार से चर्चा करूंगा । अभी विषय को विराम देने का समय आ गया है। अगले किसी पोस्ट में इसे फिर से विस्तार दूंगा।

अभी तो बस इन चित्रों को देखिए और सोचिए कि बिना सैटेलाइट फोटो और गुगल अर्थ के चित्रों के और कैमरे का आविष्कार होने से पहले कैलाश और आदि कैलाश के बारे में लगभग ऐसे ही तथ्य किस काल में किस आदमी ने देखे और उन्हें पुराण ग्रंथों में लिख कर बताया कि कैलाश की भौगोलिक स्थिति कैसी है।

वह वर्णन आज उन्नत तकनीक के सहारे कैसे सत्य साबित दिख रही हैं.

बस यही निवेदन करूंगा अपने आप पर गर्व कीजिए। आप धरती के किसी खंड के किसी देश में किसी धर्म जाति और वंश के जीव हों अपने पर गर्व करना सीखिए और हम आप से पहले हमारे आपके पूर्वजों ने किस तरह शिव के रूप में एक ऐसे नायक की कथा लिखी जो सबको साथ लेकर चल सकता है उसे समझ कर अपने जीवन में उतारने का प्रयास कीजिए।

पार्वती ने कितने तप के बाद शिव को पति रूप में प्राप्त किया इसकी याद दिलाती है यह तिथि...

हमारी बेटियां अपने पति को प्राप्त करने के लिए अपने माता पिता के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखती है और आखिरकार उन्हें सहमत कर विवाह करती है उसे याद ताजा करने की तिथि है महाशिवरात्रि......

दांपत्य जीवन के लिए सनातन  भारतीय संस्कृति में  महादेव औऱ पार्वती को आदर्श जोड़ी माना जाता है।
यदि हम अपने दांपत्य जीवन में सुमधुर संबंध चाहते हैं तो इस तिथि की याद बनाएं रखे और इस जोड़ी को अपना आदर्श स्वीकार कर लें।

बस अपने दांपत्य जीवन में शिव पार्वती की असीम कृपा स्वीकारते हुए यह पोस्ट विराम ले रहा है।