रविवार, 31 दिसंबर 2017

मुस्कान मेल पैग़ामः पौष पूर्णिमा पर नवल वर्ष 2018 की हार्दिक मंगल कामना



01-01-2018

सोमवार है आज 
सोम यानि चंद्रमा
आज पूरे शवाब पर है चांद 
पूरनमासी है
व्रत है 
हमारा आज

व्रती की कामना 

आज के चांद की तरह रौशन रहे आपके चेहरे पर हर वक्त नूर
दूज के चांद से पूर्णिमा के चांद की तरह लगतार बढ़ती रहे आपकी आमदनी
साल भर
।।
पूरनमासी के चांद से अमावस की यात्रा की तरह 
घटते रहें 
जीवन के हर दुःख
संताप
साल भर
।।
हम और आप 
मुस्कराते रहें 
साल भर
।।

उछाह ले मन में तरंगे 
सागर की लहरों की तरह
आज के चांद को 
पूर्णिमा के चांद को 
चूमने के लिये
लगा दें पूरा जोर
तन स्वस्थ मन प्रसन्न ले हिलोर
साल भर
।।
नया साल मुबारक हो
जल की तरह
वायु से करें होड़
अग्नि को लें थाम
गगन के विस्तार को दे चीर
धरती समान चलते रहें
सभी संतति को सहेजे
हम और आप
।।
शुभकामना
नव वर्ष की 
मुस्कुराते रहें 
साल भर
हम और आप
मुस्कान मेल पैग़ाम 
मुस्कुराते रहो
साल भर



पुनश्चः 

प्रीव्यू में प्रकाशन पूर्व देखा तो
तिथि 31 दिसंबर 2017
पर द्वारका दिल्ली, भारत में इस वक्त 
प्रातःकाल के दस बज कर दस मिनट हमारी घड़ी अनुसार
अतः नया साल हमारा हो चुका 
मुस्कुराते रहो

शनिवार, 4 नवंबर 2017

कार्तिक पूर्णिमा 2017 पर पुस्तक व्रत विज्ञान सत्य मिथ पाखंड का प्रथम प्रारूप प्रकाशित

व्रत विज्ञान पुस्तक उद्देश्य
यह किताब हम क्यों पढ़ें

व्रत से सत्य की यात्रा आसान नहीं हैं । ये व्रत लेना अपने हाथ में भी नहीं है । सत्य की तलाश की ओर हर व्यक्ति चलता भी नहीं ऐसे में अहम सवाल है यह पुस्तक आप क्यों पढ़ें ?
मेरे लिये भी यही संकट है । अपने व्रत से जो कुछ मुझे मिला वह आप तक मैं क्यों पहुंचाउं ? इससे मुझे क्या लाभ मिलेगा ?
    
   जो कुछ इस पुस्तक में दर्ज किया गया है वह आपके लिये कितना उपयोगी है ? इसमें कहे गये तथ्य कितने भरोसे के लायक हैं ? क्या आपको इन पर विश्वास करना चाहिये ? इनमें कहे तथ्य, स्वयं पर आजमाने से आपके तन और मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
व्रत के प्रति आस्था क्यों रखें ?

आदि आदि ?

अनेक सवाल हैं ?

???

इन सवालों को मन में उठने दीजिये । अपने अंदर से जवाब खोजिये । जिन सवालों का जवाब नहीं मिले वह हमसे अवश्य पूछिये।

मेरी ओर से यह किताब आप तक पहुंचना एक अनिवार्यता है । यह मेरे ही नहीं अपने पूर्वजों के अस्तित्व, गुरुओं के ज्ञान और उनके तप को आप तक पहुंचाने की विवशता है।

जो कुछ स्वाध्याय से , अपने तन पर प्रयोग से, मन और चित्त के विश्वास, आस्था और समर्पण से प्राप्त हुआ है वह इसी जन्म में विसर्जित किये बिना मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।
इसलिये मुझे जो कुछ मिला है वह आप तक पहुंचाना है।

ईशोपनिषद के सभी श्लोक महत्वपूर्ण सूत्र हैं । इनमें से कुछ सूत्र जो मुझ तक अपना अर्थ कह रहे हैं वह मुझे चैन से नहीं जीने देगा जब तक मैं इन्हें आप से बांट नहीं लूंगा ।
विद्यां चविद्यां च यस्तद्वेदोभय ऊँ सह ।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥ ११॥
अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽसम्भूतिमुपासते ।
ततो भूय इव ते तमो य उ सम्भूत्या ऊं रताः ॥ १२॥
अन्यदेवाहुः सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात् ।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे ॥ १३॥
सम्भूतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभय ऊं सह ।
विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्याऽमृतमश्नुते ॥ १४॥

 मेरे अर्थ आप भी स्वीकार करें और अपने जीवन में उतारें यह आवश्यक नहीं है। इसे वही स्वीकार करेगा जिसे इसकी जरूरत होगी । इसे स्वीकार कर वह प्रतिबद्ध होगा / होगी उन विचारों के लिये कर्ममय जीवन बिताने के लिये  जो सबके लिये मंगलकारी हैं।

आज चार नवंबर 2017 है । आज कार्तिक पूर्णिमा है । आज स्नान और संकल्प के साथ व्रत और उत्सव से जुड़े व्यापक आधार पर मनाये जानेवाले अनेक पर्व हैं।

पर आज की तिथि 
औरंगजेब का जन्म दिवस भी है। औरंगजेब जिसने भारतवर्ष में उसके समय में मनाये जाने वाले अनेक पर्व – त्यौहारों को बदल कर एक समाज, एक समूह में बदलने के लिये अथक प्रयास किये ।

अनेक क्रूर कर्म उसके नाम हैं जिसका पूर्ण फल उसे मिला है ।

भारतीय समाज जैसा कल था । वैसा आज भी है । जितने व्रत त्यौहार और उत्सव उसके समय में थे उनमें कुछ बढ़े ही हैं, घटे नहीं हैं।

औरंगजेब भारत वर्ष के लिये नायक है या खलनायक इसकी विवेचना करते हैं ईशोपनिषद के ऊपर दिये गये सूत्र ।

 विद्या और अविद्या दोनों साथ – साथ हर समय कार्यशील और गतिमान रहते हैं । विद्या और अविद्या की उपासना   के फल अलग - अलग हैं पर जो धीर हैं, समझदार हैं वे दोनों की उपासना करते हुए एक दूसरे के सहयोग से अपना लक्ष्य प्राप्त करते हैं।

विद्या होने पर उसे अपने पास रोके रखना मना होता है। अविद्या के साथ चलना मना होता है। संभूति और असम्भूति की उपासना करने वाले और इसके विरोध में चलने वाले दोनों का अस्तित्व बना रहता है।

धीर और विद्वान को संभूति के साथ चलना चाहिये अन्यथा अंधलोक में स्थान मिलता है। ये जो अंधलोक है उससे मुक्त होकर प्रकाश में चलने का पर्व  है आज ।

आज 4 नवंबर 2017 है । देव दीपावली के साथ अनेक भारतीय व्रत, पर्व और उत्सवों के साथ औरंगजेब की जयंती।

प्रकाश पर्व है आज । सिक्खों के आदि गुरु नानक देव की जयंती।

दो महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भारतीय संतान की जयंती पर इस किताब के प्रथम प्रारूप को स्वान्तः सुखाय प्रकाशित किया जा रहा है। 

इसमें संशोधन, परिवर्धन, जोड़ – घटाव की प्रक्रिया अगली पूर्णिमा यानि अग्रहायन पूर्णिमा से पहले तक चलेगी । अगहन पूर्णिमा को इस किताब के अंतिम प्रारूप का   प्रकाशन हो जायेगा।

4 नवंबर 1618 में पैदा हुआ औरंगजेब मुग़ल ख़ानदान का आखिरी सबसे प्रकाशमान चिराग था । इस्लाम धर्म में पैदा हुए औरंगजेब ने पूरी इमानदारी, निष्ठा और समर्पण के साथ व्रत किया ।
अपने धर्म के प्रचार और प्रसार के लिये जो कुछ संभव हो सकता है उसने किया। पर अपने व्रत पर टिके रहने, दीन ईमान पर चलने का उसको क्या फल मिला ?

औरंगजेब विदेशी नहीं था । इसी भारत वर्ष में उसके बाप , दादा - परदादा पैदा हुए जिन्होंने यहां के धर्म, यहां के लोगों की आस्था और विश्वास के साथ तालमेल बनाते हुए अपना जीवन –यापन किया।

उसके पिता शाहजहां के शासन काल में सेना के विभिन्न पदों, दरबार के महत्वपूर्ण पदों और प्रशासनिक इकाइयों में हिंदुओं की तादाद 24 फीसदी थी जो औरंगजेब के शासनकाल में बढ़ कर 33 फीसदी पर पहुंच गयी। ( स्रोत हिंदुस्तान दैनिक समाचार पत्र 04-11-17 दूसरा पृष्ठ )

औरंगजेब अपने बाप, दादा और परदादा से अलग व्यक्तित्व वाला था । आजीवन उसने शराब नहीं पी।  ऐयाशी और अश्लील नाच गाने से दूर रहते हुए उसने अनेक प्रशासनिक सुधार किये जिससे आम लोगों का जीवन बेहतर हो। अपने भरण पोषण के लिये टोपियां सिल कर और तथा कुरान की प्रतिलिपियां तैयार कर बेचने से जो आय होती उसी से निर्वाह करता था। 

 ये ऐतिहासिक तथ्य हैं जिनकी पुष्टि अनेक तत्कालीन संदर्भ ग्रंथों से होती हैं ।

 दूसरी ओर औरंगजेब अपने दीन पर चलने वाला एक अंधा व्यक्ति था जिसने अपनी आस्था और विश्वास में बलपूर्वक दूसरों को दीक्षित करने के लिये भयानक अत्याचार किये।

विद्या और अविद्या को समझने वाले, संभूति और असंभूति के साथ चलने वालों को मिलने वाले फल को समझने के लिये बस एक उदाहरण गुरु तेगबहादुर का यहां प्रासंगिक है।

सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर के पास जब अपने धर्म की रक्षा के लिये कश्मीर से चल कर हिन्दुओं का एक दल औरंगजेब का संदेश लेकर आया तो भरे दरबार में सब सोच विचार में पड़ गये।
क्या था औरंगजेब का संदेश ? धर्म के लिये अपने प्राणों की बलि देने वाला कोई है तो सामने आये । धर्म के नाम पर अपनी आहुति दे ।

आत्म उत्सर्ग का विचार नाचिकेत अग्नि से परिचालित एक बालक गोविन्द राय ने अपने पिता सिक्खों के नवम गुरु तेगबहादुर को दिया।

सनातन भारतीय संस्कृति का वाहक ऋषि वाजश्रवा  विश्वजित यज्ञ के बाद उचित दान नहीं देता है तो उसका बेटा पिता को पापकर्म से बचाने के लिये समुचित दान याचकों को देने का आग्रह करता है। पिता फिर भी नहीं  माने तो बार बार अनुरोध करता है । अंततः उसके सवालों से चिढ़कर पिता  अपने  बेटे नचिकेता को मृत्यु को दान कर देता है।

मृत्यु के स्वामी यमराज को प्राप्त कर नचिकेता सत्य को समझता है और सत्य का प्रसार आजीवन करता है। यह व्रत से ही संभव हुआ।

दस वर्ष के गोविन्द राय उसी नाचिकेत अग्नि से परिचालित भारतीय संतान जिन्होंने अपने पिता को आहूति देने की प्रेरणा दी । अपनी संतानों को आहूति पथ पर अग्रसर किया। आजीवन व्रत पथ पर सत्य संधान करते रहे।

औरंगजेब भी भारतीय । यहीं के पंच तत्वों से तन निर्मित हुआ यहीं खाक में मिल गया। आज उसकी जयंती पर उसे याद करना प्रासंगिक । उसे असंभूति की उपासना का फल मिला।

संभूति यानि अपने समान सबको समझना, उसके सुख दुख की चिंता करना और असंभूति यानि अपने से अलग समझ कर दमन करना और उसे बदलने का प्रयास करना, नष्ट करने के लिये अपनी ऊर्जा का प्रयोग करना ।

संभूति और असंभूति की अनेक व्याख्या अनेक ग्रंथों में अलग अलग विद्वानों की मिलेगी और हर विद्वान अपने सत्य पर अटल मिलेगा।

पर 
सत्य एक बिन्दु है 
जिसके उतने ही अंश को कोई भी प्राप्त कर सकता है जितने का वह योग्य अधिकारी पात्र हो । उससे अधिक सत्य उसे नहीं मिलता ।

अक्षर और अक्षरों से बने शब्द, पद वाक्य का अर्थ हम पर आप पर बस उतना ही खुलेगा जितने की हमें आवश्यकता है , जितने के योग्य पात्र और अधिकारी हम हैं । उससे अधिक नहीं।

एक वैदिक मंत्र है
उत त्वः पश्यन्न ददर्श वाचमुत त्वः शृण्वन्न शृणोत्येनाम ।
उतो त्वस्मै तन्वं विसस्रे जायेव पत्य उशती सुवासाः ।।ऋगवेद 10-71-04

इसका सरल सा अर्थ है हम देख कर और सुन कर भी वाणी का वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाते हैं, हम वह समझते हैं जो समझना चाहते हैं जबकि उसका तात्पर्य बिल्कुल अलग हो।
          
समकाल में प्रतिदिन अनेक तथ्य सत्य – असत्य, कहानियां , सच्ची, झूठी, हमारे पास आ रही हैं। हमारा जीवन इनसे प्रभावित हो रहा है। हमारी आंखो पर टेलीविजन से दिखाया जा रहा सत्य और खबरिया माध्यमों से चलकर आया हुआ तथ्य पहुंच रहा है। इन्हीं से हमारा जीवन परिचालित हो रहा है।
     धर्म, आस्था , विश्वास और परंपरा के नाम पर हम तक पहुंचने वाली सूचनाओं का वास्तविक लक्ष्य जाने बिना हम एक उन्मादी समाज के रूप में बदलते जा रहे हैं।

स्वास्थ्य रक्षा के लिये बाजार के पंडित और मायावी गुरु तरह- तरह के स्वांग रच कर हमें लुभा रहे हैं। स्वस्थ और प्रसन्न जीवन का लक्ष्य हर किसी का है। इसी दावे के साथ प्रत्येक उत्पाद आपको परोसे जा रहे हैं ।

शिक्षा का लक्ष्य केवल पेट भरना और मजे लेना रह गया जिसे प्राप्त कर ना तो हम स्वस्थ रह पा रहें हैं और ना जीवन का आनन्द मिल रहा है।

ऐसे में व्रत विज्ञान सत्य मिथ पाखंड आपको उन्मादी बनने से रोक सके इसलिये आपके हाथों में है। आप स्वस्थ रह सकें और अपने पास उपलब्ध संसाधनों से अपने तन को सबल बना सके इसलिये यह किताब आपके पास पहुंच रहा है।

वसंत के समान सुखद हर मौसम आपके लिये हो,  आप हर दिन उत्सव मना सकें इसलिये यह किताब आपके हाथों में है। आप आनंदित रहे हर पल इसलिये यह किताब आप पास है। ,   
  
  व्रत की परंपरा दुनिया के सभी धर्मों मे है । किसी में कम किसी में ज्यादा । धर्म के बिना रहने वाले लोग आज भी दुनिया की कुल आबादी में मात्र पंद्रह प्रतिशत हैं।

पर ये पंद्रह प्रतिशत भी सनातन भारतीय सोच की दृष्टि से धार्मिक हैं जिनका कोई स्पष्ट देवता नहीं है। उपासना की स्पष्ट पद्धति नहीं है पर ये भी व्रत के सिद्धान्तों से ही परिचालित होते हैं । व्रत इन पर भी लागू होता है।

यह किताब आपको हर तरह के अंधविश्वास से मुक्त होने में सहायता करेगी। आपको अपने धर्म में स्थिर रहते हुए अपने विश्वास और परंपरा के साथ चलते हुए अपने तन को स्वस्थ और मन को प्रसन्न रहने में सहायता करेगी।

   स्वामी विवेकानंद ने आज से लगभग सवा सौ साल पहले कहा था महत्वपूर्ण तथा आश्चर्यजनक सत्य मैंने अपने गुरुदेव से सीखा, वह यह कि संसार में जितने धर्म हैं, वे परस्पर – विरोधी या प्रतिरोधी नहीं हैं – वे केवल एक ही चिरन्तन शाश्वत धर्म के विभिन्न भाव हैं  मात्र हैं। ( स्रोत - मेरी जीवन कथा – स्वामी विवेकानंद,  हैं ।  यही एक शाश्वत धर्म चिरकाल से समग्र विश्व का आधार स्वरूप रहा है और चिरकाल तक रहेगा ; और यही धर्म विभिन्न देशों में विभिन्न भावों में अभिव्यक्त हो रहा है।

स्रोत - मेरी जीवन कथा आत्मकथात्मक उक्तियों का संकलन – स्वामी विवेकानंद प्रथम संस्करण 2014 )
    
  मुझे भी अपने  व्रत से यही सत्य प्राप्त हुआ है। इसी का प्रसार करते हुए मनसा वाचा कर्मणा यह पुस्तक आपके हाथों में है।
आनन्द लीजिये ।
इति शुभम
देव दीपावली

4 नवंबर 2017

यह पुस्तक क्यों पढ़ें इस शीर्षक से यह आलेख आज ही लिखा गया है । पुस्तक में अंतिम प्रकाशन के समय सम्मिलित किया जायेगा।


देव दीपावली आपके लिये मंगलमय हो  

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

ड्रीम द्वारका 29 अक्टूबर 2017 कार्तिक शुक्ल नवमी अक्षय नवमी संदेश


सावन पूर्णिमा 2017 को प्रकाशित  पिछले पोस्ट के बाद आज पुनः हाजिर हैं हम
अपने संकल्प के साथ

संकल्प वही पुराना

ड्रीम द्वारका परियोजना आज कहां है
किस अवस्था में है
कितनी हुई प्रगति

तिथि के अनुसार आज ही के दिन 20 नवंबर को  वर्ष 2015 में हमने अपनी शुरुआत की थी। 
इस तरह आज हमारे लिये तीसरा जन्म दिवस है।  
तीन वर्षों में कहां पहुंचे हम  
कहां पहुंचा हमारा ब्लाग 
वास्तविक ज़मीन पर कितनी हुई प्रगति

आज की ही तिथि यानि अक्षय नवमी के दिन 09 नवंबर  2016 से पांच सौ और एक हजार के नोट चलने बंद हो गये थे । इससे ठीक एक दिन पहले  अक्षयनवमी की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री ने  भारतवर्ष में नोटबंदी का ऐलान किया था और एक सौ से बड़े नोट रद्द करने की जानकारी  दी  थी।

विगत अक्षय नवमी से इस अक्षय नवमी तक व्यापक परिवर्तन देश की अर्थव्यवस्था में आया है। नोटबंदी के समय कालेधन पर निर्णायक प्रहार की कामना की गयी थी। पर यह प्रहार कितना कारगर हुआ हम नहीं जानते।

सकल घरेलू उत्पाद र्थव्यवस्था की गति धीमी पड़ी है। लोगों की नौकिरयां छिनी हैं। बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। असंगठित क्षेत्र में लोग बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं ।

पर
घरेलू शेयर बाजार अपने सर्वोच्च स्तर पर 33 हजार के आंकड़े के ऊपर है। 
अमीर और अधिक अमीर हुए हैं 
गरीब और अधिक गरीब हुए हैं 
इस अवधि में ।

पर ड्रीम द्वारका अभियान कहां है ?

यह अभियान सुप्त नहीं है । धीमी गति से ही चल रहा है। परियोजना ना तो स्थगित हुई है ना आगे बढ़ी है ।
पर ठिठकी अटकी नहीं है।

काल के पहिये पर  गति कभी बेहद धीमी दिखाई देती है कभी बेहद तेज चलती दिखाई देती है।

लेकिन वस्तुतः ना तो धीमे चलना और ना ही तेज चलना प्रगति का सूचक होता है।

प्रगति तब होती है जब कोई वास्तविक परिवर्तन काल के भाल पर अपने निशान छोड़ जाये।

फिलहाल ड्रीम द्वारका परियोजना इसी निशान को खचित करने पर संघर्षरत है।

पहली निशानी

व्रत और उत्सव
या
व्रत से उत्सव की ओर

From Fast to Festival

truth or myth

के हिन्दी पुस्तक रूप का पहला ड्राफ्ट अबसे कुछ दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा 03 नवंबर को प्रकाशित करने यानि स्वांतः सुखाय पहला प्रिंट निकालने के लिये तैयारी चल रही है।

आज की तिथि महत्वपूर्ण रही है मेरे लिये इसलिये यह अभिलेख काल की कसौटी पर दर्ज कर प्रकाशित कर दे रहा हूं ताकि असत्य नहीं साबित होऊं।

जो कहता हूं वह सत्य साबित होना समय पर छोड़ता हूं।

वैसे मेरे सत्य प्रयोगों की पुष्टि 
उपलब्ध तथ्यों से 
इसी ब्लाग पर की जा सकती है। जो चाहे वह यहीं आकर मेरे कथनों की पुष्टि कर ले सकता है।

पिछले वर्ष 2016 में  दीवाली पर हमने पटाखों पर पाबंदी का अनुरोध किया था। 
दीवाली से पहले  शारदीय नवरात्रि पर  हमने टीम एआइजी के साथ कई दिनों तक रावण पुतला दहन का विरोध किया था। मुस्कान मेल के अंक इसके गवाह हैं।
अनेक लोग सहमत हुए थे ।

पर उपलब्धि कितनी रही
महत्वपूर्ण यह नहीं है।

महत्वपूर्ण यह है कि

इस वर्ष देश के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में दीवाली 19 अक्टूबर 2017 से पहले पटाखों की बिक्री पर पूर्ण पाबंदी लगा दी।
पटाखे चलाने पर कोई पाबंदी नहीं थी। पटाखे चलाना लोगों के विवेक पर छोड़ दिया गया। 
संध्याकाल आठ बजे तक धमाके नहीं सुनाई दिये । 

पर 
रात आठ बजे के बाद 
मध्य रात्रि के बाद तक 
पटाखे चले।
खूब पटाखे चले 
पर इनकी बिक्री पर पाबंदी का असर भी दिखा।

जितना जहरीला आसमान पिछले वर्ष था इस वर्ष नहीं दिखा।
पर आसमान में जहर आज तक घुला हुआ है । ओजोन की सतह प्रभावित हुई है। सांस लेने में घुटन का एहसास लोगों को हो रहा है ।

छठ तक यानि 27 अक्टूबर 2017 कार्तिक शुक्ल सप्तमी प्रातःकालीन अर्घ्य तक पटाखे खूब चलाये गये हैं।
 
जाहिर है लोग या तो दुष्परिणामों से अनजान हैं या जानबूझ कर नादान बने हुए हैं । अपने जीवन में दुख उठा रहे हैं जबकि दुख दूर करने के उपाय उनके पास हैं । हमारे पास हैं ।

समझदार लोग कम सही
हैं तो।

मैं समझता हूं
ड्रीम द्वारका के साथ भी यही है।

लोग हैं साथ
पर कम हैं ।

और मैं स्वयं

जब तक एक पुस्तक 
व्रत 
सत्य मिथ पाखंड
व्रत से उत्सव की ओर 

 From Fast to Festival 

Fast: Truth or  Myth 

का प्रथम व्यावसायिक ड्राफ्ट नहीं तैयार कर लेता तब तक 

ड्रीम द्वारका परियोजना धीमी या रुकी दिखेगी
एक बार पुस्तक का स्वरूप हाथ में आ जाये 
फिर गति तेज होती अनायास दिखेगी।

इसलिये

रुका नहीं हूं
मैं 
चल रहा लगातार

तप 
तत को पाने के लिये 
अनवरत
चल रहा है।

ड्रीम द्वारका परियोजना भी चल रही है।

नोटबंदी और कालेधन पर प्रहार के परिणाम
सकारात्मक कब दिखेंगे
प्रतीक्षा शेष है

प्रयास जारी है।

इति  शुभम
        

सोमवार, 7 अगस्त 2017

सावन पूर्णिमा 2017 एक दशक योग यात्रा संदेश : प्राण द्वारा तानिये तन , साधिये मन , पाइये अखंड आनन्द

आज सात अगस्त २०१७ है।
आज रक्षा  बंधन यानि सावन पूर्णिमा  है। वर्ष २००७ में आज यानि पूर्णिमा तिथि से ही मैंने योग के साथ अपने प्रयोग की शुरुआत की थी।
योग जो अब मेरे जीवन का अविभाज्य हिस्सा है।

 सावन शुक्ल द्वादशी से मुस्कान मेल सेवा बंद है। मोबाइल इस्तेमाल भी लगभग बंद है। स्मार्ट फोन का उपयोग पूर्णतः बंद है। 

मौन व्रत का समापन कल हो गया ।
मुस्कान मेल कब से पुनः शुरु करूंगा
खुद नहीं जानता
पर शुरु करूंगा अवश्य ये तय है।

दरअसल जीवन में कई घटनायें क्यों होती हैं हम नहीं जानते । 
बस ये घटित होती हैं। इनका परिणाम हमसे संबंधित सभी पक्षों को भुगतना पड़ता है। 

यह जीवन क्या है मस्ती है 
निर्झर ही इसका पानी है 
सुख दुख के दो राहों से बह रहा राह मनमानी है। 

पुरानी बचपन की पढ़ी कविता है। 

पर सुख दुख की अनुभूति समाप्त है अब। 
या तो असंग हो चुका हूं 
या 
निरमम हो चुका हूं 
जिसमें ना तो सुख की सिहरन है 
ना दुख की पीड़ा है

शेष है तो बस आनन्द 
जो हर अवस्था में तन और मन को बहाये लिये चला जा रहा है।

आनन्द की उपलब्धि सहज नहीं है।
तन को स्वस्थ रखने के लिये  मनपसंद भोजन
और
मन को प्रसन्न रखने के लिये अपने पास उपलब्ध क्षण में मनोनुकूल काम हो
तो आनन्द ही आनन्द ।

पर समस्या मन को लेकर होती है।
मन जो समझ गये उनके लिये समस्या नहीं है।
क्योंकि मनोनुकूल मिलना तभी होता है
जो भी मिला पल में
वही मन को भा जाये।

चेतना को इस धरातल पर लाना ही योग है। 

दस वर्षों की योगयात्रा ने ये तो दिया है मुझे
कि
आज
तन को समझ सकूं
मन को समझ सकूं
और
तन मन को साथ लेकर आनन्द को हर पल प्राप्त रह सकूं।

दो हजार सात  में मई जून में एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल से साल भर के लिये व्रत और त्यौहारों पर कार्यक्रम बनाने का प्रस्ताव मिला था । 

 व्रत की सत्यता समझने के लिये आज ही की तिथि से अगस्त महीने में व्रत की शुरुआत हुई थी। यदि ठीक से याद करूं तो अंग्रेजी कैलेंडर से तारीख थी २८ अगस्त प्रायः क्योंकि कैलेंडर में इसी तिथि को रक्षा बंधन दिखाया जा रहा है। 

यदि अपने संकल्प को याद करूं तो पूर्णिमा तिथि और  अगस्त महीना याद है। जब व्रत और योग दोनों को एक संकल्प के तहत साधने के लिये मैं चला था।

जो परिणाम  दैनिक योगयात्रा और दो या तीन पूर्णिमा को व्रत रख कर प्राप्त हुए थे यानि लगभग तीन महीनों तक नियमित रोज योग अभ्यास के बाद उस अनुभव के आधार पर धारावाहिक कार्यक्रम के अनेक एपिसोड बने और प्रसारित हुए ।

मेरी योग यात्रा जो शुरु हुई  ठीक दस वर्ष पहले  
वह  
आज तक चल रही है।

आनन्द चाहिये
तन का
मन का
तो
तन को तानिये
मन को साधिये 
प्राणों के योग द्वारा 

बिना प्राणों को जाने 
प्राणों के आवागमन के साथ
तन का रमण किये
मन को नहीं जाना जा सकता
और
ना ही तन की सीमाओं का अतिक्रमण किया जा सकता ।

योग का संकल्प लीजिये 
व्रत कीजिये 
हम आपके साथ हैं। 

आइये हम मिल कर चलें 
आनन्द लें जीवन का 
इस पल का 
अगले पल का 
पल पल का 

इति आनन्द गाथा 
शुभम



रविवार, 30 जुलाई 2017

गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती ( 30-07-17 रविवार ) सावन शुक्ल सप्तमी से सावन पूर्णिमा तक एक सप्ताह का खंड मौनव्रत

आज से मौन व्रत।

एक सप्ताह के लिये। पूर्णिमा को मौन तोड़ने की इच्छा। हालांकि यह खंड मौन अवस्था है। 

खंड मौन क्या

इस एक सप्ताह में दो दिवस ऐसे जिसमें आजीविका के लिये
रोटी के लिये सीमित अवधि के लिये मौन तोड़ना अनिवार्य। सो इन दो दिवस मौन टूटेगा।
पर केवल रोटी अर्जन के लिए। अन्य कार्यों के लिये वाक संयम।

रविवार सावन शुक्ल सप्तमी यानि आज तीस अप्रैल 2017 को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है। 

पिछले वर्ष इस तिथि को दो आयोजनों में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला था।
प्रातःकाल मेट्रो से नौएडा, वहां से श्री रामवीर सिंह जी और श्री पाराशर जी के साथ ग्राम कलूपुरा पोस्ट झाझर उत्तर प्रदेश में आयोजित तुलसी जयंती और सोरों जी सूकर क्षेत्र गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मस्थल माने जाने वाले तीर्थों में से एक में गोस्वामी जी का सुमिरन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

पर
इस वर्ष आज अपने आवास पर हूँ।

दरअसल सावनशुक्ल प्रतिपदा यानि 24 जुलाई 2017 को अचानक मोबाइल प्रयोग कुछ दिनों के लिये छोड़ने का योग बना और आज से मौन व्रत की इच्छा हुई दो दिन पूर्व।
सो संकल्प हुआ और मौन व्रत जारी।
यह
सौभाग्य नहीं तो और क्या
कि 
अपने प्रयोग पर टिक सकूं इसके लिये अनुकूल परिस्थितियां हैं।

जीवनसंगिनी मेरी सनक की शिकार
आत्मज पुत्र सहयोगी
मित्र झेलने को विवश
और
अन्य परिजन पुरजनों के पास
मुझे रोकने का कोई विकल्प नहीं।
।।

जीवन संगिनी हंसती हैं।
कहती हैं 
चलो कोई बात नहीं, 
तुम मेरे साथ हो
ये कम है क्या
तुम चुप हो
चुप सही
कोई ना कोई रास्ता 
मैं निकाल लूंगी 
तुम्हारी उपयोगिता का 
तुम्हारे साथ का।
और 
तुम हो 
मेरे साथ
मेरे पास
तो और क्या चाहिये
काफी है साथ
।।
आत्मज पुत्र ने पूछा था बहुत पहले
जब आयु थी कम
और गिनता था अपनी अंगुलियों पर 
प्राण नियमन के लिये 
मेरे प्रयोगों का साक्षी बन 
हर आती जाती सांस पर 
अंतस्थ वायु 
संपीड़ित हो
बाहर
निकलती अनायास
बन डकार
कहता था 
बोलो सॉरी
जितनी डकार की ध्वनि 
उतनी बार 
सॉरी  
उस आयु में निश्चल देख देर तक
मुझे
जब धयान हुआ  भंग
पूछा था
पुत्र ने 
तो तुम हिमालय चले जाओगे 

???

दिया था जवाब मैंने
मुस्कुरा कर
पता नहीं
अभी तो नहीं
।।

इस बार जब हुआ मौन 
तो अपने स्कूल के औजारों में से 
ढूंढ कर लाया
आधुनिक स्लेट
ह्वाइट बोर्ड मार्कर
और बोला
ठीक है
तुम मत बोलो
पर 
लिख कर तो मेरे सवालों का जवाब दे लेना।
।।
जब तप के लिये
संयम के लिये
हो विकल्प
निज
आवास में
तो हिमालय जाना जरूरी क्या
।।

एक सप्ताह का मौन 
क्या दे जायेगा
कुछ दिनों का 
मोबाइल फोन विहीन जीवन
क्या गुल खिलायेगा

क्यों सोचूं
इस पल 
क्षणजीवी हूंँ
आनन्द लेता हूंँ
हर पल का
।।

मुस्कान मेल बन्द है।
सोमवार विगत 24 जुलाई रिकार्डिंग के बाद से
आज  सातवां दिवस है।
विगत अंक में 
विद्या अविद्या के नाम न्यौछावर हुई थी मुस्कान
विद्या क्या 
अविद्या पर 
दर्ज हुई थी अपनी बयान
और
उसके बाद मौन।
।।
लंबा विराम
।।

मुस्कान मेल फिर शुरु होगा
हूं जानता
कब
नहीं पता।।


पर होगा अवश्य
यह ज्ञात है।

।।

मौन को भी देख लूं
वाक को भी साध कर देखूं
इच्छा बस इतनी सी

।।

जन्म यह एक
सत्य
अगला 
पिछला 
कौन जाने
।।
इस एक जन्म में
कर लूं इच्छा
पूरी।

।।

दशक पूर्व
संभवतः इसी मास में या अगले माह पूर्णिमा तिथि से 
शुरु हुई थी वर्तमान यात्रा
जो बन चुकी 
जीवन संकल्प
।। ।।
अब तो
हर पल है
गान
।।
नर्तन
।।
सांसों का 
प्राण का प्रयोग प्राण के साथ
पुलक उठे अंग अंग
सिहर उठे गात
मुस्कुरा उठे मन
।।
मुस्कान ऐसी 
जो जाये ना
उमंग ऐसी 
जो थिरकाये तन बदन 
उमगाये मन
बन बसंती पवन
।।
तो फिर प्रयोग
मौन का।
।।
मौन से मौन
जब मिले
तो मुखर हो जाये 
जीवन
।।

है ये रहस्य खुला
दशक पूर्व
आरंभिक ओम्कार प्रयोग के साथ
।।
एक ओम्कार सत् नाम
ओम्कार जप
ओम्कार नाद 
करता तन को तरंगित 
मन को प्रशान्त
।।

सीमित अवधि में होती
हर इच्छा पूरी
ओम्कार जप का प्रभाव
।।
पर खतरा यह
कि
प्रशान्त मन में हिल्लोल हो जाता समाप्त
इच्छायें उठनी हो जाती बंद
।।

इसीलिये  ओम्कार जप
नहीं करने का
प्रायः विधान
।।

ओम्कार के प्रभाव को खंडित करने के लिये अन्य पूरक मंत्र का योग
अथवा उद्देश्य अनुकूल
लक्ष्य हेतु
ओम्कार तीर पर
मंत्र
देव हों सवार

।।
सत्य
एक बिन्दु 
।।

इस बिन्दु को ढूंढता
प्रयोगकर्ता।।
अपने प्रयोग से बिन्दु का
जितना अंश 
प्रत्यक्ष पाता
सत्य
बस इतना सा।

।।
सत्य को प्राप्त कर सकूं
यही तो लक्ष्य
मौन का प्रयोग भी
इसी दिशा में
वाक संयम
का हेतु
भी
यही
।।
सो बढ़ चल मन
तरंगित हो तन
ऊर्जस्वित चेतन
।।
ओम्


सोमवार, 27 मार्च 2017

चैत्र सोमवती अमावस्या वर्ष २०१७ का ऐलान, रामनवमी पांच अप्रैल से मुस्कान मेल सेवा पुनः शुरु

आज २७ मार्च सोमवार, चैत्र माह की सोमवती अमावस्या है। वर्ष २०१७ है । संवत और तिथियों का ध्यान मैं रखता नहीं। तिथियों को लेकर पंचांग नियंताओं के बीच इतना विवाद है कि किस तिथि  को बिल्कुल ठीक ठीक क्या होना है इसे लेकर मठाधीश लठम लट्ठ करते रहते हैं। और अपनी दिलचस्पी लट्ठ में अब रही नहीं।
ऐसे में मुस्कान मेल का स्थगन हमने लट्ठ की वजह से नहीं किया था । ये तो स्वांतःसुखाय हुआ था। बेशक कारण हमने तात्कालिक परिस्थितियों जीवन के कृष्ण पक्ष को दिया ।

पर क्या वाकई

जब मुस्कान सच्ची वाली मिल जाये एक बार तो फिर ये जाती है क्या 
परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल 
खिलती नहीं रहती है अपने आप हर पल

ऐसे में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का प्रश्न  उठना चाहिये था क्या
मुस्कान को लेकर कोई संशय  रहे 
तो 
फिर यह मुस्कान  
सच्ची वाली है क्या 

मुस्कान मेल स्थगन की सूचना देते हुए
हमने कहा था
कि
जीवन के कृष्ण पक्ष में मुस्कान मेल अल्पकालिक विराम ले रहा है ।

यहां ये सवाल प्रासंगिक बनता है कि क्या जीवन का कृष्ण पक्ष समाप्त हो गया

नितांत वैयक्तिक सवाल है अपने आप से।

जब कभी आप इसे पढ़ें
और
आप की मानसिकता भी
जीवन के कृष्णपक्ष जैसी हो तो अपने आप से सवाल पूछ सकते हैं।

यहां इस कालम में मैं यानि मनोज पाठक बिना किसी राग द्वेष हानि लाभ यश अपयश की चिन्ता किये बिना अपनी अंतरात्मा और विवेक को साक्षी रख कर सत्यनिष्ठा के साथ अपने अनुभव और तथ्य रखता हूँ। इनका उद्देश्य रहता है समान परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति को इन अनुभवों का लाभ हो। 

लाभ नहीं हो तो नुकसान किसी हालत में भी किसी को नहीं हो।

जो इन अनुभवों को सत्य मानकर
स्वयं आगे बढ़े
प्रयोग करे
उसे पूर्ण लाभ हो
और
उसका विश्वास
उस एक मालिक पर दृढ़ हो
जो हम सबका नियंता है।

अखिल ब्रह्मांड का नियंता।।



कौन है अखिल ब्रहांड का नियंता
कौन जाने
जितना हमने जाना, समझा अपने पंच इन्द्रियों के माध्यम से
और पांच इंद्रियों से परे
समझने के लिए जो हो सकता है
उसे
एक ही पाया है।


ऐसे में
मेरे अपने वैयक्तिक जीवन का कृष्णपक्ष और शुक्ल पक्ष क्या मायने रखता है


दरअसल काल का पहिया किस गति से कब स्वयं के चक्र को चलायेगा यह हम कहां समझ पाते हैं।

विगत कुछ समय से काल का ये पहिया आड़ा तिरछा, उल्टा सीधा धीमी तेज कुछ इस गति से चलायमान है कि इसकी रफ्तार समझ पाना कठिन साबित हो गया।

ये काल का पहिया कभी थमता तो है नहीं
ऐसे में इसकी गति और इसकी चाल दोनों को समझना दुरूह

इसका मतलब ये नहीं कि मुस्कान खो गयी है।

मुस्कान है तो खिली हुई 
हर पल मुस्कुराती  
वही शिशु वाली मुस्कान

कभी खिलखिलाती
इतराती,बलखाती  कभी
इठलाती सी मुस्कान

लेकिन
इस खिली मुस्कान को
अलग अलग अंदाज में समेट कर फैलाना अलग अलग लोगों , समूहों के साथ बांटना
एक ही अवधि में कठिन हो गया


समय के वही चौबीस घंटे
सबके पास
इस चौबीस घंटे में जितना निवेश समाज के नाम किया जा सकता है
वह हमने किया


विलासिता को सीमित करना, आवश्यकता की पूर्ति करना 
और 
अनिवार्य का पालन हर हाल में करना

मुस्कान सतत खिलाये रखने का सरल सा सूत्र है।

हमने इस सूत्र को समझा है। 

इसी सूत्र में आपको बांधा है।

इसीलिये कह रहा हूं
आपसे
सिर्फ आपसे
कि
मुस्कान मेल
जो 23 फरवरी से स्थगित है 

वही मुस्कान मेल 
राम नवमी यानि ५ अप्रैल २०१७ से फिर शुरु करने की इच्छा है।

देखिये वर्ष दो हजार सोलह में जानकी नवमी यानि पंद्रह अप्रैल से मुस्कान मेल की  यात्रा शुरु हुई है।
बीच बीच में स्थगित हुई अब फिर रामनवमी से शुरु होगी।

दरअसल नौ फरवरी दो हजार सत्रह से १३ अप्रैल १७ के बीच अयोध्या से रामेश्वरम के बीच मौजूद रामजी के वनगमन से संबंधित तीर्थों के बारे में एक जनजागरुकता अभियान शुरु हुआ। श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के तत्वावधान में यह यात्रा आयोजित हुई। मैं इन तीर्थों को एक सूत्र में पिरोने वाले डॉ रामअवतार शर्मा को विगत एक डेढ़ दशक से जानता हूं। पिछले चालीस वर्षों से वे लगातार इन तीर्थों को एक सूत्र में पिरोने के लिए संकल्पित हैं। 

रामजी हुए या नहीं हम अंतहीन बहस कर सकते हैं पर वाल्मीकि हमारे इतिहास पुरुष हैं इससे इन्कार नहीं कर सकते। कालिदास और तुलसी दास हमारे इतिहास पुरुष हैं इससे मना नहीं कर सकते ।

यदि वाल्मीकि, कालिदास और तुलसीदास जिन स्थलों को रामजी के तीर्थ मानते हैं उन्हें यदि हम अपना तीर्थ नहीं स्वीकार करें तो अपने अस्तित्व के प्रति संदेह करना होगा। 

रामजी की यात्रा नदियों और सरोवरों के  पावन जल में स्नान करते हुए आगे बढ़ी इनके जल को पेयजल के रूप में इस्तेमाल करते हुए हुई।
यदि इक्कीसवीं सदी में हमारी गंगा मैली और यमुना जहरीली हो गयी है तो इसका पाप धोने के लिए हमें ही आगे आना होगा।

मुस्कान मेल ने
अपने इसी दायित्व बोध के अंतर्गत
जब काल का पहिया अनियंत्रित गति और दुरुह चाल का पाया तो खुद को विराम देना उचित समझा।

मुस्कान मेल जिस मंच पर शुरु हुआ उस मंच पर धर्म और धार्मिक गतिविधियों के प्रति अपने दर्शन हैं, अनुशासन हैं उस अनुशासन का सम्मान करते हुए 

जब जीवन के कृष्ण पक्ष में काल की वक्र गति और अनियंत्रित चाबुक का प्रहार हुआ तो 
मुस्कान को राम के नाम समर्पित कर दिया।

राम और मुस्कान एकरूप हो गये। रामजी की वन संबंधी गाथा और लीलाभूमि के साथ मुस्कान मेल संदेश का एकीकरण कर दैनिक प्रातः समाज सेवा चलती रही।

अब रामजी की लीला कहिये
उनकी कृपा कहिये
हम अपनी सांस को तो छोड़ दे सकते हैं
पर 
रामजी को नहीं छोड़ सकते। 

रामजी की कृपा से श्री राम नवमी पांच अप्रैल २०१७ से मुस्कान मेल अपनी प्रातःसेवा सभी मंचों पर शुरु करे ऐसी कामना है।

आज सोमवती अमावस्या है। कल या परसों से अपने गोत्र, कुल और वंश परंपरा के अनुसार लोग चैत्र नवरात्रि पर्व मनायेंगे।

हम भी अपनी इच्छानुसार अपने परंपरानुसार व्रत करते हैं। पूजन भी करते हैं। और संकल्प भी लेते हैं।

मुस्कान मेल की दैनिक धारा फिर प्रवाहित होगी।

पांच अप्रैल
मुस्कुरायें हम 
बार बार
साथ साथ
मुस्कान मेल की यात्रा फिर शुरु 
बहुत जल्द
रामनवमी दो हजार सत्रह
मुस्कुराइये ना
 

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

जीवन के कृष्ण पक्ष में मुस्कान मेल स्थगन , ड्रीम द्वारका परियोजना जारी

ड्रीम द्वारका के पोस्ट सुदीर्घ अवधि से लंबित हैं। 26 दिसंबर के बाद कोई प्रगति रिपोर्ट नहीं है। 

दरअसल काल का पहिया किस गति से कब स्वयं के चक्र को चलायेगा यह हम कहां समझ पाते हैं।

मुस्कान मेल 23 फरवरी से स्थगित है। स्थगन की सूचना देते हुए हमने कहा था कि जीवन के कृष्ण पक्ष में मुस्कान मेल अल्पकालिक विराम ले रहा है ।  श्रोता समाज को यह जानकारी नियमित मेल के साथ आडियो कैप्सूल के बिना दी गयी । यह भी कहा गया कि  पुनः शुरुआत करने से दो दिन पूर्व सूचना दी जायेगी।

मुस्कान मेल पर अपनी प्रतिक्रिया देने वालों में से अधिकांश इसका संज्ञान लेने में चूके परंतु आदरणीय शशिपाल शर्मा शास्त्री जी ने ना केवल प्रतिक्रिया दी अपितु कृष्णपक्ष से उबरने के लिये आशीर्वचन भी दिये, शुभास्ते पंथ ......

आभार

मुस्कान मेल समसामयिक विषयों पर टिप्पणी और सहज होकर जीवन आनन्द लेने की सलाह है। हम कुछ पल शिशु वाली मुस्कान  लायें, सहज हास्य बोध तन मन में पनपने दें यह प्रयास है।

लेकिन संप्रति दो जिम्मेदारियां एक साथ हों , दोनों की प्रकृति एक दूसरे से अलग हो और एक संकल्प अनिवार्य हो जिसे छोड़ना अपनी चेतना के स्तर पर कठिन हो और दूसरा अनिवार्यता नही आवश्यकता और विलासिता के बीच की स्थिति हो तो आवश्यकता को कम किया जा सकता है और विलासिता से मुक्त हुआ जा सकता है। 
मुस्कान मेल के साथ यही स्थिति है। 

मुस्कान मेल एक कार्यक्रम भर है। जिसे गंभीरता से कम लोग लेते हैं। हां मुस्कान के लिये सुनते अनेक लोग हैं। यह भी कम नहीं है। 

लोग सुनते हैं तो अपना उद्देश्य पूरा हो रहा है। 

पर जो समय का दबाव है उसमें दो परस्पर अलग रूचि को एक साथ ले चल पाना कठिन हो गया है। 
ऐसे में मुस्कान मेल का स्थगन लंबा चल सकता है। 
कामना करें कि यह स्थगन शीघ्र समाप्त हो।