आज से मौन व्रत।
एक सप्ताह के लिये। पूर्णिमा को मौन तोड़ने की इच्छा। हालांकि यह खंड मौन अवस्था है।
खंड मौन क्या
इस एक सप्ताह में दो दिवस ऐसे जिसमें आजीविका के लिये
रोटी के लिये सीमित अवधि के लिये मौन तोड़ना अनिवार्य। सो इन दो दिवस मौन टूटेगा।
पर केवल रोटी अर्जन के लिए। अन्य कार्यों के लिये वाक संयम।
रविवार सावन शुक्ल सप्तमी यानि आज तीस अप्रैल 2017 को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है।
पिछले वर्ष इस तिथि को दो आयोजनों में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला था।
प्रातःकाल मेट्रो से नौएडा, वहां से श्री रामवीर सिंह जी और श्री पाराशर जी के साथ ग्राम कलूपुरा पोस्ट झाझर उत्तर प्रदेश में आयोजित तुलसी जयंती और सोरों जी सूकर क्षेत्र गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मस्थल माने जाने वाले तीर्थों में से एक में गोस्वामी जी का सुमिरन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
पर
इस वर्ष आज अपने आवास पर हूँ।
दरअसल सावनशुक्ल प्रतिपदा यानि 24 जुलाई 2017 को अचानक मोबाइल प्रयोग कुछ दिनों के लिये छोड़ने का योग बना और आज से मौन व्रत की इच्छा हुई दो दिन पूर्व।
सो संकल्प हुआ और मौन व्रत जारी।
यह
सौभाग्य नहीं तो और क्या
कि
अपने प्रयोग पर टिक सकूं इसके लिये अनुकूल परिस्थितियां हैं।
जीवनसंगिनी मेरी सनक की शिकार
आत्मज पुत्र सहयोगी
मित्र झेलने को विवश
और
अन्य परिजन पुरजनों के पास
मुझे रोकने का कोई विकल्प नहीं।
।।
जीवन संगिनी हंसती हैं।
कहती हैं
चलो कोई बात नहीं,
तुम मेरे साथ हो
ये कम है क्या
तुम चुप हो
चुप सही
कोई ना कोई रास्ता
मैं निकाल लूंगी
तुम्हारी उपयोगिता का
तुम्हारे साथ का।
और
तुम हो
मेरे साथ
मेरे पास
तो और क्या चाहिये
काफी है साथ
।।
आत्मज पुत्र ने पूछा था बहुत पहले
जब आयु थी कम
और गिनता था अपनी अंगुलियों पर
प्राण नियमन के लिये
मेरे प्रयोगों का साक्षी बन
हर आती जाती सांस पर
अंतस्थ वायु
संपीड़ित हो
बाहर
निकलती अनायास
बन डकार
कहता था
बोलो सॉरी
जितनी डकार की ध्वनि
उतनी बार
सॉरी
उस आयु में निश्चल देख देर तक
मुझे
जब धयान हुआ भंग
पूछा था
पुत्र ने
तो तुम हिमालय चले जाओगे
???
दिया था जवाब मैंने
मुस्कुरा कर
पता नहीं
अभी तो नहीं
।।
इस बार जब हुआ मौन
तो अपने स्कूल के औजारों में से
ढूंढ कर लाया
आधुनिक स्लेट
ह्वाइट बोर्ड मार्कर
और बोला
ठीक है
तुम मत बोलो
पर
लिख कर तो मेरे सवालों का जवाब दे लेना।
।।
जब तप के लिये
संयम के लिये
हो विकल्प
निज
आवास में
तो हिमालय जाना जरूरी क्या
।।
एक सप्ताह का मौन
क्या दे जायेगा
कुछ दिनों का
मोबाइल फोन विहीन जीवन
क्या गुल खिलायेगा
क्यों सोचूं
इस पल
क्षणजीवी हूंँ
आनन्द लेता हूंँ
हर पल का।।
मुस्कान मेल बन्द है।
सोमवार विगत 24 जुलाई रिकार्डिंग के बाद से
आज सातवां दिवस है।
विगत अंक में
विद्या अविद्या के नाम न्यौछावर हुई थी मुस्कान
विद्या क्या
अविद्या पर
दर्ज हुई थी अपनी बयान
और
उसके बाद मौन।
।।
लंबा विराम
।।
मुस्कान मेल फिर शुरु होगा
हूं जानता
कब
नहीं पता।।
पर होगा अवश्य
यह ज्ञात है।
।।
मौन को भी देख लूं
वाक को भी साध कर देखूं
इच्छा बस इतनी सी
।।
जन्म यह एक
सत्य
अगला
पिछला
कौन जाने
।।
इस एक जन्म में
कर लूं इच्छा
पूरी।
।।
दशक पूर्व
संभवतः इसी मास में या अगले माह पूर्णिमा तिथि से
शुरु हुई थी वर्तमान यात्रा
जो बन चुकी
जीवन संकल्प
।। ।।
अब तो
हर पल है
गान
।।
नर्तन
।।
सांसों का
प्राण का प्रयोग प्राण के साथ
पुलक उठे अंग अंग
सिहर उठे गात
मुस्कुरा उठे मन
।।
मुस्कान ऐसी
जो जाये ना
उमंग ऐसी
जो थिरकाये तन बदन
उमगाये मन
बन बसंती पवन
।।
तो फिर प्रयोग
मौन का।
।।
मौन से मौन
जब मिले
तो मुखर हो जाये
जीवन
।।
है ये रहस्य खुला
दशक पूर्व
आरंभिक ओम्कार प्रयोग के साथ
।।
एक ओम्कार सत् नाम
ओम्कार जप
ओम्कार नाद
करता तन को तरंगित
मन को प्रशान्त
।।
सीमित अवधि में होती
हर इच्छा पूरी
ओम्कार जप का प्रभाव
।।
पर खतरा यह
कि
प्रशान्त मन में हिल्लोल हो जाता समाप्त
इच्छायें उठनी हो जाती बंद
।।
इसीलिये ओम्कार जप
नहीं करने का
प्रायः विधान
।।
ओम्कार के प्रभाव को खंडित करने के लिये अन्य पूरक मंत्र का योग
अथवा उद्देश्य अनुकूल
लक्ष्य हेतु
ओम्कार तीर पर
मंत्र
देव हों सवार
।।
सत्य
एक बिन्दु
।।
इस बिन्दु को ढूंढता
प्रयोगकर्ता।।
अपने प्रयोग से बिन्दु का
जितना अंश
प्रत्यक्ष पाता
सत्य
बस इतना सा।
।।
सत्य को प्राप्त कर सकूं
यही तो लक्ष्य
मौन का प्रयोग भी
इसी दिशा में
वाक संयम
का हेतु
भी
यही
।।
सो बढ़ चल मन
तरंगित हो तन
ऊर्जस्वित चेतन
।।
ओम्
एक सप्ताह के लिये। पूर्णिमा को मौन तोड़ने की इच्छा। हालांकि यह खंड मौन अवस्था है।
खंड मौन क्या
इस एक सप्ताह में दो दिवस ऐसे जिसमें आजीविका के लिये
रोटी के लिये सीमित अवधि के लिये मौन तोड़ना अनिवार्य। सो इन दो दिवस मौन टूटेगा।
पर केवल रोटी अर्जन के लिए। अन्य कार्यों के लिये वाक संयम।
रविवार सावन शुक्ल सप्तमी यानि आज तीस अप्रैल 2017 को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है।
पिछले वर्ष इस तिथि को दो आयोजनों में सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला था।
प्रातःकाल मेट्रो से नौएडा, वहां से श्री रामवीर सिंह जी और श्री पाराशर जी के साथ ग्राम कलूपुरा पोस्ट झाझर उत्तर प्रदेश में आयोजित तुलसी जयंती और सोरों जी सूकर क्षेत्र गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मस्थल माने जाने वाले तीर्थों में से एक में गोस्वामी जी का सुमिरन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
पर
इस वर्ष आज अपने आवास पर हूँ।
दरअसल सावनशुक्ल प्रतिपदा यानि 24 जुलाई 2017 को अचानक मोबाइल प्रयोग कुछ दिनों के लिये छोड़ने का योग बना और आज से मौन व्रत की इच्छा हुई दो दिन पूर्व।
सो संकल्प हुआ और मौन व्रत जारी।
यह
सौभाग्य नहीं तो और क्या
कि
अपने प्रयोग पर टिक सकूं इसके लिये अनुकूल परिस्थितियां हैं।
जीवनसंगिनी मेरी सनक की शिकार
आत्मज पुत्र सहयोगी
मित्र झेलने को विवश
और
अन्य परिजन पुरजनों के पास
मुझे रोकने का कोई विकल्प नहीं।
।।
जीवन संगिनी हंसती हैं।
कहती हैं
चलो कोई बात नहीं,
तुम मेरे साथ हो
ये कम है क्या
तुम चुप हो
चुप सही
कोई ना कोई रास्ता
मैं निकाल लूंगी
तुम्हारी उपयोगिता का
तुम्हारे साथ का।
और
तुम हो
मेरे साथ
मेरे पास
तो और क्या चाहिये
काफी है साथ
।।
आत्मज पुत्र ने पूछा था बहुत पहले
जब आयु थी कम
और गिनता था अपनी अंगुलियों पर
प्राण नियमन के लिये
मेरे प्रयोगों का साक्षी बन
हर आती जाती सांस पर
अंतस्थ वायु
संपीड़ित हो
बाहर
निकलती अनायास
बन डकार
कहता था
बोलो सॉरी
जितनी डकार की ध्वनि
उतनी बार
सॉरी
उस आयु में निश्चल देख देर तक
मुझे
जब धयान हुआ भंग
पूछा था
पुत्र ने
तो तुम हिमालय चले जाओगे
???
दिया था जवाब मैंने
मुस्कुरा कर
पता नहीं
अभी तो नहीं
।।
इस बार जब हुआ मौन
तो अपने स्कूल के औजारों में से
ढूंढ कर लाया
आधुनिक स्लेट
ह्वाइट बोर्ड मार्कर
और बोला
ठीक है
तुम मत बोलो
पर
लिख कर तो मेरे सवालों का जवाब दे लेना।
।।
जब तप के लिये
संयम के लिये
हो विकल्प
निज
आवास में
तो हिमालय जाना जरूरी क्या
।।
एक सप्ताह का मौन
क्या दे जायेगा
कुछ दिनों का
मोबाइल फोन विहीन जीवन
क्या गुल खिलायेगा
क्यों सोचूं
इस पल
क्षणजीवी हूंँ
आनन्द लेता हूंँ
हर पल का।।
मुस्कान मेल बन्द है।
सोमवार विगत 24 जुलाई रिकार्डिंग के बाद से
आज सातवां दिवस है।
विगत अंक में
विद्या अविद्या के नाम न्यौछावर हुई थी मुस्कान
विद्या क्या
अविद्या पर
दर्ज हुई थी अपनी बयान
और
उसके बाद मौन।
।।
लंबा विराम
।।
मुस्कान मेल फिर शुरु होगा
हूं जानता
कब
नहीं पता।।
पर होगा अवश्य
यह ज्ञात है।
।।
मौन को भी देख लूं
वाक को भी साध कर देखूं
इच्छा बस इतनी सी
।।
जन्म यह एक
सत्य
अगला
पिछला
कौन जाने
।।
इस एक जन्म में
कर लूं इच्छा
पूरी।
।।
दशक पूर्व
संभवतः इसी मास में या अगले माह पूर्णिमा तिथि से
शुरु हुई थी वर्तमान यात्रा
जो बन चुकी
जीवन संकल्प
।। ।।
अब तो
हर पल है
गान
।।
नर्तन
।।
सांसों का
प्राण का प्रयोग प्राण के साथ
पुलक उठे अंग अंग
सिहर उठे गात
मुस्कुरा उठे मन
।।
मुस्कान ऐसी
जो जाये ना
उमंग ऐसी
जो थिरकाये तन बदन
उमगाये मन
बन बसंती पवन
।।
तो फिर प्रयोग
मौन का।
।।
मौन से मौन
जब मिले
तो मुखर हो जाये
जीवन
।।
है ये रहस्य खुला
दशक पूर्व
आरंभिक ओम्कार प्रयोग के साथ
।।
एक ओम्कार सत् नाम
ओम्कार जप
ओम्कार नाद
करता तन को तरंगित
मन को प्रशान्त
।।
सीमित अवधि में होती
हर इच्छा पूरी
ओम्कार जप का प्रभाव
।।
पर खतरा यह
कि
प्रशान्त मन में हिल्लोल हो जाता समाप्त
इच्छायें उठनी हो जाती बंद
।।
इसीलिये ओम्कार जप
नहीं करने का
प्रायः विधान
।।
ओम्कार के प्रभाव को खंडित करने के लिये अन्य पूरक मंत्र का योग
अथवा उद्देश्य अनुकूल
लक्ष्य हेतु
ओम्कार तीर पर
मंत्र
देव हों सवार
।।
सत्य
एक बिन्दु
।।
इस बिन्दु को ढूंढता
प्रयोगकर्ता।।
अपने प्रयोग से बिन्दु का
जितना अंश
प्रत्यक्ष पाता
सत्य
बस इतना सा।
।।
सत्य को प्राप्त कर सकूं
यही तो लक्ष्य
मौन का प्रयोग भी
इसी दिशा में
वाक संयम
का हेतु
भी
यही
।।
सो बढ़ चल मन
तरंगित हो तन
ऊर्जस्वित चेतन
।।
ओम्
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