शनिवार, 2 अप्रैल 2016

वनस्पति और प्राणि जगत के संबंधों के बारे में वर्ष 2016 के दो रोचक उदाहरण

जीव जगत के दो महत्वपूर्ण सदस्य प्राणि और वनस्पतियों की बीच अंतर्संबंध के बारे में हम अधिकांश मानवों के प्रयोग सतही, निष्कर्ष अधूरे और अनुभव बेहद कम हैं। दरअसल एक जन्म में बिना गहन अभ्यास और प्रयोगों के  लगातार जारी रखे इन संबंधों को समझना कठिन होता है। ना तो हम अपना प्रयोग लगातार जारी रखते हैं और ना ही उनको समझने का प्रयास करते हैं।

 ये प्रयोग हमारे अपने तन - मन और प्राण तथा वनस्पति के तन मन और प्राण के स्तर पर होंगे तभी इनका अंतर्संबंध पकड़ में आना शुरु होता है।

 दूसरों द्वारा किए गए अधकचरे प्रयोग के नतीजों को हम, ना केवल स्वीकार कर लेते हैं बल्कि पूरे विश्वास के साथ इस पर अनंत बहस के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि यह  हमारे सामने विश्वसनीय स्रोतों से आया हुआ दीखता है। यह दीखना अक्सर हमारे भ्रम पर आधारित होता है।

हम भ्रम से मुक्त तब  हो सकते हैं जब दूसरों के किसी भी निष्कर्ष को तब तक नहीं स्वीकारें जब तक वह हमारा अपना अनुभव नहीं बन जाए। अपने प्रयोग की कसौटी पर वह खरा उतरे तभी उसे अपनाएं और आगे बढ़ाएं।

वर्ष दो हजार सोलह के दो प्रयोग हम आपसे यहां साझा कर रहे हैं। इन पर आप भी प्रयोग कर सकते हैं और नतीजों को आजमा सकते हैं। ये दोनों प्रयोग मेरे सामने घटित हैं । मेरे साथ कई अन्य लोग भी इसके साक्षी हैं इसलिए आप चाहें तो इन विचारों की पुष्टि के लिए मेरे अलावा अन्य लोगों से घटनाओं का ब्यौरा ले सकते हैं।

मेरे एक मित्र हैं। देश की राजधानी दिल्ली में द्वारका में उनका कार्यालय है। चौथी मंजिल पर अपने कार्यालय में अपनी कुर्सी के साथ लगी एक खिड़की के बाहर बने चबूतरे पर उन्होंने छोटे - छोटे कई गमलों में पौधे लगा रखे हैं। इन पौधों को पानी देना उनके कार्यालय आने के रूटीन से जुड़ा हिस्सा है। ये गमले वाकई छोटे हैं। इनका व्यास और गहराई छह ईंच से अधिक नहीं है।

वे सिर्फ इन्हें पानी नहीं देते बल्कि जब इन्हें पानी दे रहे होते हैं तब बातचीत भी कर रहे होते हैं। यह बातचीत मूक अवस्था में होती है। इसे आप एकालाप भी कह सकते हैं क्योंकि पौधे का जवाब मानव सुन सकें ऐसी मशीन की व्यवस्था अब तक नहीं हो सकी है। इन पौधों को लगाना और  पानी देना उन्होंने खुद अपने हाथों से किया है इसलिए अन्य कर्मचारियों की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वे इसे पानी दें।

जनवरी 2016 में मेरे इन मित्र को दस ग्यारह दिनों के लिए  बाहर जाना था। जिस दिन वे बाहर जाने वाले थे उससे एक दिन पहले मैं इस कार्यालय में उनके साथ था। अन्य कर्मचारी घर लौट चुके थे। मेरे मित्र ने अपने कार्यालय को बंद करने से पहले पौधों को पानी देने के मसले पर गंभीरता से चर्चा की और मुझसे यह जिम्मेदारी निभाने को कहा। मैंने स्वीकार भी किया और तय हुआ कि उनकी अनुपस्थिति में मैं इन पौधों की खोजखबर लेता रहूंगा। मेरे इस मित्र ने मेरे अलावा कुछ और साथियों से यही आग्रह किया था कि पौधों को समय - समय पर पानी डालते रहें।

लेकिन संयोग ऐसा बना कि इन पौधों को किसी ने पानी नहीं दिया। आप सोच सकते हैं कि लगभग 10 बारह दिनों में उन पौधों को जिन्हें नियमित पानी की आवश्यकता हो उनकी क्या दशा हुई होगी।

जिस दिन वे लौटे मैं उनके कार्यालय में उनके साथ ही पहुंचा और पौधों की दशा देख कर उनका दुख देखने लायक था।

हर गमला सूखा पड़ा था। पानी के अभाव में एक पौधे को छोड़ कर बाकी सब झुलस चुके थे।

पश्चाताप की पराकाष्ठा फूट फूट कर रोने से मानी जाए तो वे बिचारे आंसू तो नहीं बहा रहे थे मगर बिना आंसू बहाए रुदन पूरे दिन जारी रहा था।

बार बार कह रहे थे कि मेरे हाथों इनकी हत्या हो गई। मेरी गलती से ये मौत के शिकार हो गए।

जब पाश्चाताप इस स्तर का होता है तो हत्या होने के बाद भी प्राण लौट सकते हैं वनस्पतियों के इसका साक्षात उदाहरण हमने देखा। उनके गमलों के अधिकांश पौधे आज यानि दो अप्रैल 2016 तक वापस लौट चुके हैं। सिर्फ एक पौधा सूख गया लेकिन बाकी सभी में पिछले सबा  महीने के दौरान जीवन लौट आया है।

इनमें फालसे के एक दर्जन से अधिक पौधे हैं। ये फालसे के पौधे उन बीजों से पनपे जो फल उन्होंने अपने मित्रों के साथ खाए थे और बीज को कूड़े की तरह फेंकने के बदले कागज पर समेट कर रख लिया था और छह इंच व्यास और चार पांच ईंच गहराई वाले गमले में लगा दिया था। ये दस बारह पौधे एक छोटे से गमले में किस तरह इठलाते मुस्कुराते हैं और कैसे पूरी तरह सूखने के बाद फिर से  प्यार -दुलार पाकर पनपे नए पत्तों के साथ झूम रहे हैं आप भी देख सकते हैं उनके कार्यालय में आकर।  

प्राणि और वनस्पतियों के बीच अंतर्संबंध का यह एक ताजा उदाहरण है।

अब दूसरा उदाहरण दूंगा।

द्वारका में ही अपने आवास में हमने गमले में आवंला के कई बीज जनवरी 2016 में  डाले हैं। मन में इच्छा यह है कि इनसे पौधे निकलेंगे। इन पौधों को ड्रीम द्वारका अभियान के तहत विभिन्न सोसाइटी, पार्क में लगाया जाएगा। उद्देश्य यह है कि हम जिन वनस्पतियों, पौधों , वृक्षों के फल फूल औषधियों का उपयोग करते हैं वे हमारे इर्द गिर्द होने चाहिए ताकि परिवहन के साधनों पर कम से कम बोझ पड़े।

हम जिस युग में जी रहे हैं उसमें अपनी समस्याओं को ना तो ठीक से देख पा रहे हैं और जब समस्या ही नहीं देख रहे तो समाधान कहां से निकलेगा ?

दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है दुनिया भर में प्रदूषण बढ़ रहा है मगर प्रदूषण के मुख्य कारणों को पहचानने के बदले हम दंडात्मक उपायों से इसे कम करने का प्रयास कर रहे हैं। दिल्ली में ऑड इवन का प्रयोग हो या फिर डीजल गाडियों के रजिस्ट्रेशन पर रोक या फिर दिल्ली आगमन पर टैक्स का बढ़ता बोझ समस्या के हल नहीं हैं। इन सभी कदमों से बहुत अधिक का अंतर नहीं आएगा।

दिल्ली के प्रदूषण को या दुनिया के किसी नगर के प्रदूषण को कम करना है तो हमें ऐसे साधनों का इस्तेमाल करना होगा जो प्रदूषण नहीं फैलाते हों।

यदि हम अपने उपभोग की अधिकांश सामग्रियां अपने एक सौ किलोमीटर के दाएरे में पैदा करें तो प्रदूषण का निदान बहुत हद तक ढूंढ सकते हैं।

आंवले के बीज गमले में लगाना इसी का प्रयास है । यदि हम अपने दैनिक उपभोग के फल फूल सब्जी अपने आवास के इर्द गिर्द पैदा करने की दिशा में बढ़ें तो अनेक बीमारियों से बच सकते हैं। कीटनाशकों यानि जहर से मुक्त उत्पादों के इस्तेमाल से हमारा स्वास्थ्य बेहतर होगा। और आखिरकार मानव ऑरगेनिक फूड के माध्यम से उसी दिशा में तो आगे बढ़ रहा हैय़
 
 बहरहाल वापस लौटें वनस्पतियों और प्राणियों के अंतरसंबंध पर जो इस पोस्ट का मुख्य विचार बिंदु है।

जनवरी में जो बीज हमने डाले उनमें से कोई पौधा अभी एक सप्ताह पहले तक नहीं निकला था। एक पौधे का अंकुर  जो निकला उसे देख कर हमारे मन में विचार आया कि चलो मुझे जन्मदिन का गिफ्ट शायद मिलने वाला है। लेकिन जब उसके पत्ते फूटे तो साफ हो गया कि वह किसी किस्म का घास है। आंवला नहीं।

मन के किसी कोने में उम्मीद थी कि 31 मार्च से पहले पौधे को आना चाहिए। और ठीक 31 मार्च की सुबह हमारे इस गमले में एक आंवले का पौधा निकल आया। जब हमने इसे देखा तो कितनी खुशी मिली उसे शब्दों में नहीं कह सकता। मुझे लगा मेरी इच्छा का ख्याल रखते हुए ये  वनस्पति रूपी जीव हमारे सपने को साकार करने के लिए आए हैं।


खैर हमने पौधे से आग्रह किया कि देखिए आप अपनी सुरक्षा खुद कीजिए क्योंकि आप इतने नाजुक हैं कि मैं किस रूप में आपको सुरक्षित बचाऊं यह नहीं जानता। इसलिए जब आप मेरे जन्मदिन का उपहार बन कर आए हैं तो सही सलामत रहिए और आगे चल कर विशाल वृक्ष का रूप लीजिए।

इस शिशु रूपी कल्पवृक्ष से हमने प्रार्थना की थी 31 मार्च को और फिर इसे दोहराया एक अप्रैल 2016 की सुबह आठ बजे के आसपास लेकिन शाम में जब मैं गमले को देखने के लिए आया तो ये शिशु जा चुके थे। किसी पक्षी ने या किसी अन्य प्राणी ने उनका जीवन ले लिया था । संभव है वो प्राणी गिलहरी हो या फिर कबूतर क्योंकि इन दोनों का आगमन इस गमले के इर्द गिर्द होते रहता है। आंवले के शिशु पौधे के दो पहले पत्ते नीचे गिरे हुए थे। नाजुक लाल तना मानो लहुलुहान था।

मैं पूरी तरह निराश और हताश हो गया कि ऐसा क्यों हुआ ?

क्या आपके पास है इसका जवाब ?

खैर आंवले का एक या दो और पौधे दूसरे गमलों में निकल आए हैं आज सुबह यानि दो अप्रैल 2016 को।

मैंने इनके चारों ओर पतली - पतली सींक नुमा सुरक्षा घेरा लगा दिया है इस उम्मीद के साथ शायद अब कोई पक्षी या अन्य कोई जीव इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाए।

मैं यह मानता हूं कि मेरे आह्वान पर आंवले के पौधे आएंगे और हमारा ड्रीम द्वारका अभियान आगे बढ़ेगा।

क्या आप इस अभियान में हमारे साथ चलेंगे और हमारा सहयोग करेंगे।    


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