रविवार, 14 अगस्त 2016

सावन शुक्ल एकादशी संकल्पः 1- गोस्वामी तुलसी दासजी की जयंती पर कलुपुरा और सूकर क्षेत्र की अविस्मरणीय यात्राः AIG वाट्स एप लोक सेवा का विस्तार ड्रीम द्वारका ब्लॉग के साथ

रामजी की लीला अद्भुत है। इसे समझना और इसकी व्याख्या कर पाना भी बेहद कठिन है। हम रामजी की लीला के आज के विचार बिन्दुओं तक पहुंचें उससे पहले आज की तिथि और प्रसंग को समझ लें।

आज वर्ष दो हजार सोलह की सावन शुक्ल एकादशी तिथि है। तदनुसार रविवार 14-08-2016। संध्या काल साढ़े सात बजे कुछ विचार यहां लिखने शुरु हुए जो लगभग नौ बजे संपनन्न हुए  हैं। इस वर्ष जानकी जयंती से पहले  Dr Gyan Singh Gaudpal द्वारा गठित An Iniative Group AIG टीम के लिए प्रतिदिन अपने विचार प्रातःकाल ऑडियो क्लिप्स के रूप में रखने का अनुरोध हुआ था।  जानकी जयंती 15 अप्रैल 2016 से यह सेवा शुरु हो गयी और मेरी सुविधानुसार नियमित रूप से चल रही है। विविध विषयों पर प्रातःकाल विचार रखे जा रहे हैं । इन पर टीका टिप्पणी भी होती है और जब कभी मुझसे लोग आमने सामने मिलते हैं तो यह बताते हैं कि वे इसे नियमित सुन रहे हैं। इस पर एक स्वतंत्र आलेख लिखा जा चुका है। जिसका लिंक संलग्न है

 http://dreamdwarka.blogspot.in/2016/06/15-2016.html 

आज कलुपुरा उत्तर प्रदेश में कार्यरत  मानस अवलोकन संस्था के श्री संजय शर्माजी द्वारा शुरु वाट्सएप समूह  सुन्दर कांड परिचर्चा समूह में सुंदर कांड की कुछ पंक्तियों की व्याख्या 3 ऑडियो क्लिप्स के माध्यम से करते हुए समर्थ साधक और रामकथा के व्याख्याता डॉ रामगोपाल तिवारी मानस रत्न ने कहा कि इस प्रसंग में श्री हनुमानजी दुविधा में हैं कि लंका जलाऊं या नहीं जलाऊं । उचित होगा इन दो विक्लपों को काल पर छोड़ दूं और जैसी भी परिस्थिति बने उस अनुसार काम करूं। कर्ता भाव से ऊपर उठकर जैसा भी उचित हो उस अनुकूल कर्म करूं

श्री तिवारी जी को जितना सुन पाया हूं और समझ पाया हूं उसमें उनकी दृष्टि साफ लग रही है। रामकथा के व्याख्याता और गवैया अनेक हैं पर रामकथा के मर्म और माया बंधन से मुक्त वाचक बहुत कम हैं। ये संभवतः काल की कसौटी पर उन मुक्त में से एक साबित हों । समय साबित करेगा।

यहां श्री तिवारी जी का यह कथन बेहद मह्त्वपूर्ण है दुविधा में नहीं रहकर काल के प्रवाह पर अपनी जीवन नैया को छोड़ देना और उचित अवसर पर उचित कर्म करना। 

  हम में से कितने लोग हैं जो इस तथ्य को समझ पाते हैं और टिक कर अपने कर्म कर पाते हैं ? यह सवाल हम में से हर उस व्यक्ति को पूछना चाहिए जो अपने आप को समझना चाहते हैं । अपने जीवन लक्ष्य को पाना चाहते हैं।

वाट्सएप पर नियमित ऑडियो क्लिप्स के माध्यम से मेरे विचारों को रखा जाना इसी सवाल की खोज यात्रा है।
वर्ष 1982 में एशियाड के झिलमिलाते प्रसारण को पटना के श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र में देखकर पहली बार मुझे टेलीविजन का भविष्य दिखा था और युवावस्था मैंने इस माध्यम से जुड़ने का फैसला किया था। उस समय यह तय नहीं था कि टेलीविजन का प्रसार इस रूप में होगा। लेकिन जैसा मैंने अपनी युवावस्था  में इसका भविष्य देखा था लगभग वैसा ही आज इसे पा रहा हूं।

इंटरनेट के विविध रूप और वाट्सएप जैसे औजार इसके अगले आयाम हैं जो दिनदिन और मजबूत होंगे ।  इनका विकास टेलीविजन की शक्ति को और बढ़ाएगा। जिस रूप में प्रयोग चल रहे हैं और सफलता मिल रही है उसमें कुछ वर्षों के बाद ऐसे स्मार्ट सेट उपलब्ध हो जाएंगे जिन में रूप और ध्वनि के साथ गंध का भी संगम होगा और लोग फूल को देख कर या किसी खाने के प्रचार को देखकर उसका गंध भी समझ पाएंगे।

 जिस दिन ऐसा होगा उस दिन मानव की तीन इंद्रियों, आंख , कान और नाक पर मशीनों का क़ब्ज़ा होगा । बाजार का अधिकार होगा और अज्ञानी मानव इसके शिकार बनेंगे। अभी सिर्फ दो इंद्रियों आंख और कान पर मशीनों के अधिकार ने मानव को अनेक बीमारियों का शिकार बनाया है। काउच पोटेटो जीवनशैली इसी की देन है और तीनों इन्द्रियों पर कब्ज़े का बाद भयावह परिणाम की बस कल्पना की जा सकती है।

इन अज्ञानियों की रक्षा के लिए , मशीनों के प्रहार और बाजार के हमले से बचाने के लिए प्रयास अभी से शुरु हो जाने चाहिए।

वाट्सएप पर मेरी ओर से जानकी जयंती के अवसर पर ऑडियो मैसेज लोकसेवा की शुरुआत इसीका एक अंग है यह इस पल मुझे लग रहा है।

श्रीराम मेरे आदर्श पुरुष हैं और जानकी आदर्श स्त्री। श्री रामायण जी की गाथा हमारा अतीत है यही हमें भविष्य की समस्याओं से निकालने की क्षमता भी रखता है।

रामजी हुए या नहीं इस पर हम मानव अंतहीन बहस कर सकते हैं लेकिन वाल्मीकि के रूप में एक लेखक हुए इसे कोई खारिज नहीं कर सकता। कालिदास और गोस्वामी तुलसीदास तनधारी मानस के रूप में अवतरित हुए और अपने समय में जनमानस को रामजी से जोड़ा इससे असहमत नहीं हुआ जा सकता।

समकालीन समय में रामजी की कथा कहने वाले कथाकार रामजी की कथा तो कह रह रहे हैं लेकिन सगुण साकार राम के उपासक गोस्वामी तुलसी दास या निर्गुण निराकार राम के उपासक कबीर की तरह अपने तन मन को  स्वस्थ रखने की कला नहीं जानते । 

भारतीय इतिहास के  मध्यकाल के ये दोनों परस्पर एक दूसरे के विरोधी मार्गों के रामभक्तों ने आम लोगों के तन को अपने संगत में स्वस्थ रखना सिखाया ।  मन को प्रसन्न रखने का रास्ता बताया ।  खुद अपने तन को 120 से अधिक वर्षों तक जीवित और स्वस्थ रखकर प्रमाण के साथ साबित किया। आम जनमानस पर प्रभाव ऐसे ही नहीं पड़ता स्थायी छाप ऐसे ही नहीं गहरे उतर कर बैठ जाती है।

हमें समकाल में मनुष्य को स्वस्थ बनाना होगा। रामजी की गाथा और रामजी के जीवन मूल्य इसमें सहायक हो सकते हैं। इनसे सहायता लेकर  मशीनों के हमले और बाजार के प्रभाव से मानव को बचाया जा सकता है।  रामभक्तों को जगा कर यह लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। उनके तन और मन की समस्याओं को दूर करने का रास्ता बताना होगा और रामजी का दिया हुआ ये तन इसका उदाहरण बने यह सावन शुक्ल एकादशी का पहला संकल्प है।

रामजी ही अंगुली पकड़ कर बचपन से चला रहे हैं। उन्हीं के संस्कार से यह तन - मन पल्लवित पुष्पित हुआ है और उन्हीं की कृपा से आनन्दमय तन - मन की अवस्था में प्रतिपल ऊर्जस्वित हो रहा हूँ।

रामजी कृपा करें। मां जानकी सहायक हों। हनुमान जी मार्ग दिखाएं।

यह चर्चा  संकल्प 2 में जारी है।

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