रामजी की लीला अद्भुत है। इसे समझना और इसकी व्याख्या कर पाना भी बेहद कठिन है। हम रामजी की
लीला के आज के विचार बिन्दुओं तक पहुंचें उससे पहले आज की तिथि और प्रसंग को समझ लें।
आज सावन शुक्ल द्वादशी तिथि है तदनुसार 15 अगस्त 2016। भारत वर्ष की राजनीतिक आजादी का ऐतिहासिक दिन।
आज हम एकादशी संकल्प शृंख्ला की तीसरी कड़ी पर अपने विचार यहां रख रहे हैं। इन पंक्तियों को पढ़ने वाले दो अन्य पोस्ट पढ़ लें तो पूरा प्रसंग स्पष्ट हो जाएगा। इन दोनों के लिंक इस प्रकार हैं।
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http://dreamdwarka.blogspot.in/2016/08/2-aig.html
श्री रामवीर सिंह जी भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं। सेवा काल में पूरे देश का भ्रमण करने के बाद अब अवकाश प्राप्त जीवन बिता रहे हैं। रामजी के भक्त हैं। रामायणजी के मर्मज्ञ हैं और श्री रामचरित मानस तथा गोस्वामी तुलसी दास के प्रति श्रद्धावान हैं। श्री सिंह साहिब से मेरा परिचय वाट्स एप पर एक समूह के माध्यम से हुआ। बस एक संक्षिप्त सी मुलाकात डा रामअवतार शर्माजी के आयोजन में कांस्टीट्यूशन क्लब में हुई थी। इन्होंने मुझे अपने साथ कलुपुरा चलने का निमंत्रण दिया। इन्हीं के वाहन पर सवार होकर हम मेट्रो स्टेशन के नौएडा सैक्टर 18 से सैक्टर 92 पहुंचे । और कुछ अन्य लोगों के साथ कलुपुरा जाने की योजना के बारे में जानकारी मिली। इसी सेक्टर में श्री सिंह साहेब का आवास भी है ।
गाड़ी में हमें यह जानकारी भी मिली कि सैक्टर 92 नौएडा रेजीडेन्ट वेलफेयर एसोसियेशन के अध्यक्ष और पूर्व न्यायाधीश श्री पी एन पाराशर जी हमारे साथ कलुपुरा और सूकर क्षेत्र की यात्रा पर चलेंगे। रात्रि विश्राम हम इन्ही के सैलई गांव में काम करेंगे। श्री सिंहजी ने एक अद्भुत जानकारी पाराशर जी के बारे में दी। उन्होंने बताया कि श्री पाराशर जी पिछले कुछ वर्षों से हर साल समाज के निर्धन वर्ग के डेढ़ से दो दर्जन कन्याओंं का विवाह करवा रहे हैं। इनका कन्यादान और नयी गृहस्थी की आवश्यक हर वस्तु पिता भाव से दान कर रहे हैं। यह जानकारी सिंह साहेब जब तक मुझे दे रहे थे तब तक श्री पाराशर जी का आवास आ गया और वे हमें जाने के लिए पूरी तरह तैयार मिले।
भारत वर्ष में अतिथि परंपरा क्या होती है ? अतिथि देवो भव क्यों कहा गया है ? इसके साक्षात दर्शन मुझे जीवन में पहली बार पाराशर जी के आवास परिसर में बाहरी बरामदे पर हुए। हालांकि मैं स्वयं मिथिला का हूं और अतिथि परंपरा से परिचित हूं । लेकिन पहली मुलाकात में जिस सौजन्य और विनय के दर्शन हुए वह ब्रजमंडल में ही मिल सकता है और वह भी उस कुल में जहां ये संस्कार कलियुग में भी बचे हुए हों।
श्री पाराशर जी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश हैं। आयु में मुझसे बड़े हैं। पद, ज्ञान और अनुभव मुझसे विशाल है । लेकिन अपने द्वार पर बालक नचिकेता को तीन दिन पाकर यमराज ने आतिथ्य परंपरा का जैसा दर्शन मिथक साहित्य में दिया गया है ,वैसी ही अनुभूति , मुझे पंडित पाराशर जी के द्वार पर हुई। हमें यथा शीघ्र चलना था ताकि हम समय से पहुंच सकें।
लेकिन श्री पाराशर जी ने कहा कि पाठक जी पहली बार आवास पर आए हैं ऐसे ही कैसे चले जाएंगे।
विशाल कोठी में एक सहायक के अलावा और कोई नहीं था। सहायक गाड़ी में सामान रखने में व्यस्त था और वयोवृद्ध पंडित पाराशर जी अपने द्वार पर अकस्मात आए अतिथि की आवभगत में लगे थे। अपने हाथों से घर से ढूंढ कर मिठाई का पैकेट लेकर आए और कहा कि ग्रहण कीजिए आप यहां से ऐसे ही खाली मुँह नहीं जा सकते। ऐसा स्नेह और ये अपनापन मेरे लिए रामजी की लीला से कम नहीं है।
हालांकि यह तो लीला के आरंभिक पल थे ऐसा अब लगता है क्योंकि अनेक ऐसी घटनाएं हुईं अगले 30 घंटों के दौरान जो हम तीन व्यक्तियों आदरणीय श्री रामवीर सिंह जी, आदरणीय श्री प्रेम नारायण पाराशर जी और मेरे लिए जीवन निधि के रूप में सुरक्षित हो गए हैं।
मिठाई खिलाने के बाद अपने हाथों से जल पिलाना और फिर तौलिया अपने हाथों में लेकर मेरे गीले हाथों को स्नेह से पोंछने के लिए तत्पर रहना .............
इतना स्नेह, ये सम्मान अप्रत्याशित था मेरे लिए। मैं एक बेहद दंभी और रूखा व्यक्ति अपने आपको जानता हूं जो किसी की ना तो परवाह करता है और ना ही तवज्जो देता है, तब तक, जब तक उसकी योग्यता की परख अपनी कसौटी पर ना कर ले। कोई भी व्यक्ति किसी पद पर हो, कितना भी धनवान हो , विद्वान हो , प्रख्यात हो मेरे लिए उसकी महत्ता तब तक नहीं है जब तक वह अपने आपको मेरी कसौटी पर प्रमाणित नहीं कर ले।
लेकिन पंडित पाराशर जी कसौटी पर जांचे जाने से पहले ही अपने विनय और सौजन्य से मेरी कसौटी की सीमाओं से ऊपर उठ गए।
रास्ते में कलुपुरा की ओर जाते हुए विविध प्रसंगो पर चर्चा होती रही । अचानक मेरी जीवन संगिनी का फोन आया कि तुम्हारे आंवले के दो पौधे लग गए। एक पौधा स्कूल में लगाया गया और एक मंदिर में लगाया गया। इससे पहले आंवले का एक पौधा मैं अपने हाथों से एक पार्क में लगा आया था। आंवले के कुछ बीज बारिश में विभिन्न स्थानों पर जमा चुका हूं इस उम्मीद के साथ कि इनसे पौधे निकलेंगे, पल्लवित पुष्पित होंगे। मेरी कामना है कि ऐसे जीवन उपयोगी फल - फूल -सब्जियां जो दूर से मंगायी जाती हैं उनका उत्पादन शहरों के सबसे निकटतम क्षेत्र में हो तो हमारा कल्याण होगा ।
आंवले के ये तीन पौधे मामूली नहीं हैं।
दरअसल 20-12-15 को AIG meeting में दिल्ली के रजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन के पास बिकानेर वाला परिसर में डाक्टर अनिल शर्मा ने सुबह में चाय पीने से भी पहले प्रथम आहार के रूप में क्षारीय पदार्थ लेने से पाचन तंत्र बिल्कुल ठीक रहने की सलाह दी थी ।
और कुछ नहीं तो कम से कम एक आंवला या आंवले का मुरब्बा चबाकर खाने और पानी पीकर कुछ देर के बाद चाय पीने की सलाह दी थी । मीटिंग से लौटने के बाद हमने अपने घर में ताजा आंवले मंगाए । आंवले को धो सुखा कर काटा गया । इनके बीज सुखाकर अलग रखे गए। बीज निकले आंवले को पूरी तरह धूप में सुखाकर रखा गया ।
सूखे आंवले का इस्तेमाल प्रतिदिन एक आंवले के बराबर टुकड़ों को पानी में भिगोकर हम कर रहे हैं । कुछ बीज को अपने गमलों में बोया गया । लगभग बीस पौधे निकले । इन्हें अलग अलग गमलों में डाला गया । तीन पौधे बचे । इनमें से एक पौधा दिल्ली नगर निगम के एक प्राथमिक पाठशाला में 10 अगस्त को गोस्वामी तुलसी दास जी की जयंती पर लगाया गया। दूसरा पौधा इसी तिथि को एक मंदिर परिसर में और तीसरा कुछ दिन पहले द्वारका सैक्टर 6 , नयी दिल्ली के एक पार्क में लगाया गया। बाक़ी बचे आंवले के बीज उचित स्थानों पर पौधा निकलने के लिए लगा दिए गए ।
आंवला कल्प वृक्ष माना गया है । हम आंवले का इस्तेमाल तरह तरह से करते हैं । इन्हें दूर दराज के जंगलों और बगीचों से तोड़ कर लाया जाता है । यदि हम अपने आसपास के पार्कों , सड़क के दोनों ओर , सोसाइटी कैम्पस में लगाएँ तो आंवला हमें बाहर से मंगाना नहीं पड़ेंगा। इन आंवलों के नियमित उपयोग से हमारा पाचन तंत्र और यौवन दोनों सुरक्षित रहेगा । च्यवन ऋषि इसी आंवले के प्राश को खाकर फिर से जवान हुए थे । एक आंवला रोज प्रातःकाल हम खाएँ तो चिरयौवन पाएँगे ।
आंवला खाने के लिए अपने आवास के इर्द गिर्द इसका पौधा हम खुद लगाएँ । यह मेरा लक्ष्य है। आंवला ही नहीं अन्य आवश्यक फल - फूल वनस्पतियां भी हमारे इर्द गिर्द हों और हम इनके महत्व को जानें तो अपने तन को स्वस्थ रख सकते हैं। मन को प्रसन्न रख सकते हैं।
मैं अपने हाथों से उगाए आंवले के बीज को कल्पवृक्ष के रूप में मान रहा हूं। अपनी जीवन संगिनी से मैंने आग्रह किया था कि देखो ये पौधे मेरे जन्म दिन के आसपास धरती पर आए हैं । इन्हें गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती पर हम अपने आंगन से उनके स्वगृह में लगाएंगे। तुम अपने हाथों से लगाओ। हम हर साल आंवले के कुछ पौधे, इस तिथि को और अन्य महत्वपूर्ण दिवसों पर लगाएंगे।
जीवनसंगिनी हर पुरुष की शक्ति होती हैं। हमें अपने शक्ति की पहचान करनी चाहिए और उन्हें अपने जीवन में वही स्थान देना चाहिए जिसकी वे हकदार हैं और जिनकी कृपा और सक्रिय सहयोग से हमारा जीवन आनन्दमय रहता है ।
ठीक यही स्थिति नारी तन में जन्म लेने वाली स्त्री की है । विवाहित स्त्रियों को अपने पति को नारायण के रूप में या फिर भोलेनाथ के रूप में अंगीकार करना चाहिए। जिस विवाहिता को इन दो पुरुष रूपों में, अपने पति का जो भी स्वरूप पसंद हो एक को चुन लेना चाहिए। दोनों के अपने सुख और दुख हैं।
दांपत्य में इस तरह की भावना आपसी सुख दुख को समझने और देव ऋण, पितृ ऋण से ऊऋण होने में सहायक होती है।
दरअसल जीव जगत, प्रकृति और ब्रह्म के साथ मेरे प्रयोग बचपन से चल रहे हैं। पेड़ पौधों और वनस्पतियों के साथ मेरे प्रयोग लंबे समय से चल रहे हैं। मेरे इस प्रयोग के अनेकों साक्षी हैं। प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य हैं । एक साक्ष्य तो ब्लाग के इसी तन पर मौजूद है जिसका लिंक दिया जा रहा है।
शनिवार, 2 अप्रैल 2016 वनस्पति और प्राणि जगत के संबंधों के बारे में वर्ष 2016 के दो रोचक उदाहरण
http://dreamdwarka.blogspot.in/2016/04/2016_2.html
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मुझसे आंवले के बारे में जानकारी मिलने के बाद श्री पाराशर जी ने तुरंत अपनी जीवन संगिनी को फोन
लगाया और कहा कि आंवले के जितने पौधे मिले, खरीद लो। उन्हें भी लगाना है।
अब ये रामजी की लीला का अगला चरण है।
श्रीमती पाराशर का फोन कुछ देर बाद आया कि देखो इस नर्सरी में जहां मैं पौधे खरीद रही हूं आंवले नहीं मिल
रहे आप उस नर्सरी से आंवले के पौधे खरीद कर लेते आना जो रास्ते में पड़ेगा। ऐसा ही किया गया।
उसी दिन रात में श्रीमती पाराशर जी के दर्शन हुए और जानकारी मिली कि उन्होंने लगभग तीन हजार पौधे
आज अपने बगीचे में अपने सामने लगवाए हैं। पौधों को लगवाने के बाद श्रीमती पाराशर ने सैलई धाम के
हनुमान जी से कहा कि पौधे तो मैंने लगा दिए लेकिन अब इन्हें पानी देने और जिंदा बचाने की जिम्मेदारी
हनुमानजी की है।
बेशक सावन का महीना है लेकिन नियमित बारिश हो और पौधे लगाने के बाद आसमानी बारिश डिमांड पर हो
ऐसा देखने में कम आता है।
लेकिन सैलई धाम में ऐसा होता है और वाकई श्रीमती पाराशर द्वारा पौधा रोपण के बाद शाम में जो बारिश
शुरु हुई वह सारी रात होती रही और अगले दिन भी रह रह कर बारिश होती रही।
आंवले के दो पौधे श्री पाराशर जी ने हम दो अतिथियों के हाथों से सैलई धाम में रोपण के लिए खरीदे और ये
दोनों पौधे अगले दिन प्रातःकाल लगाए गए।
एक श्री रामवीर सिंह जी ने लगाया और दूसरा मैंने ।
सैलई धाम सिद्ध पीठ है। इस पीठ के बारे में चर्चा फिर कभी।
अभी तो सावन शुक्ल द्वादशी तिथि को 15 अगस्त 2016 को अपना संकल्प दोहराता हूं कि जीवनोपयोगी
फल फूल सब्जी और अन्य वनस्पतियों को महानगरों की सीमा के अंदर लगाने के लिए जन जन को जगाने
का अभियान जारी रहेगा।।
आज सोमवार का दिन है । भोलेनाथ की पूजा का विशेष दिवस है मां पार्वती की उपासना का दिन है। जो भी
इन पंक्तियों को श्रद्धा और विश्वास के साथ जिस किसी दिन पढ़ें उनका अनुराग अपने जीवन साथी में प्रगाढ़
हो, दोनों युगल एक दूसरे के सहयोग से परस्पर पल्लवित पुष्पित हों।
वनस्पतियों के देव चंद्रमा की उन पर कृपा हो और उनके हाथों से लगाए पौधे अमर होकर मानवता की रक्षा करें।
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